विकास चौबे-बिलासपुर। चूहों पर सफल प्रयोग के पश्चात अब केन्द्र सरकार से मानवीय मॉडल पर परीक्षण की अनुमति मांगी गई, छत्तीसगढ़ में धान की तीन पारंपरिक किस्मों में कैंसर रोधी क्षमता पाई गई है। धान की गठवन, महाराजी व लाइचा में फेफड़े व स्तन कैंसर की कोशिकाओं को खत्म करने के गुण मिले हैं। भाभा एटामिक रिसर्च सेंटर और इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय ने धान की इन प्रजातियों के औषधीय गुणों का अध्ययन करने के लिए चूहों पर इसका प्रयोग किया जो सफल रहा। वैज्ञानिकों के मुताबिक इन प्रजातियों के धान की भूसी में कैंसर रोधी तत्व पाए गए हैं।

चूहों पर सफल प्रयोग के पश्चात भाभा एटामिक चू रिसर्च सेंटर ने केंद्र सरकार को प्रस्ताव भेजकर मनुष्यों पर इसके प्रयोग की अनुमति मांगी है। इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय के अनुसंधान संचालक विवेक त्रिपाठी का कहना है कि इसका मानवीय माडल पर परीक्षण की अनुमति मिलते ही इसका परीक्षण किया जाना है। यह परीक्षण टाटा मेमोरियल हॉस्पिटल के सहयोग से होगा। इसके बाद इसके व्यावसायिक उपयोग के बारे में भी सोचा जाएगा। इसे दवा के रूप में या भोजन के रूप में लांच करना है, उसके बाद ही तय किया जाएगा। धान का कटोरा कहे जाने वाले छत्तीसगढ़ में धान की कई परंपरागत प्रजातियां मिलती हैं। इंदिरा गांधी कृषि विवि में धान की लगभग 23250 प्रजातियां हैं। इनमें से बहुत में औषधीय गुण भी है।

ऐसी ही 13 प्रजातियों को विवि ने चिन्हित किया था। इनमें से तीन प्रजातियों में कैंसर रोधी गुण पाए गए है। ये किस्में है गठवन, महाराजी व लाइचा। यह देसी परंपरागत वैराइटी है। कृषि वैज्ञानियों के अनुसार इन तीनों प्रजातियों में कैंसर की कोशिकाओं का प्रगुणन रोकने और उन्हें खत्म करने में प्रभावी है। इस अनुसंधान से कैंसर के उपचार में आशा की नई किरण जगी है।

कैंसर की कोशिकाओं की वृद्धि को रोका, नष्ट भी किया

वैज्ञानिकों के मुताबिक इन तीनों ही धान की प्रजातियों के एक्सट्रेक्ट का प्रयोग स्तर मानव बेस्ट कैंसर सेल्स (एमरीएफ -7) एवं मानव लंग कैन्सर सेल्स (ए-549) के प्रगुणन को रोकने के लिए किया गया था। अनुसंधान से पता चलता है कि इन तीनों प्रजातियों में मेथेनॉल में बने एक्सट्रेक्ट ने ब्रेस्ट कैंसर की कोशिकाओं की वृद्धि को न केवल रोक दिया बल्कि इन्हें नष्ट भी कर दिया। इसमें गठवन, महाराजी और लाइचा की धान प्रजाति बेस्ट कैंसर सेल को नष्ट करने में सबसे प्रभावी साबित हुई।

इस तरह किया गया रिसर्च

1. कृषि विवि और भामा सेंटर के विशेषज्ञों ने प्रारंभिक शोध में कैसर सेल और स्वस्थ सेल पर इन चावलों के एक्सट्रैक्ट का उपयोग किया। इसमें पाया गया कि चावल के तत्वों ने न सिर्फ कैंसर सेल की वृद्धि को रोका बल्कि इसे काफी हद तक नष्ट भी किया। साथ ही राष्ट्रीय संस्थान से शोध होने पर यह काम आगे बढ़ा और इसके तहत जीवित प्राणी या जानवर पर टेस्टिंग जल्द हो सकेगी।

2. इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय के राइस जर्मप्लाज्मा बैंक से धान की यह तीनों प्रजातियां ली ठाई। शोध में पाया गया कि इनमें फेफड़े के कैंसर का इलाज करने का गुण है और वह भी सामान्य कोशिकाओं को नुकसान पहुंचाए बिना। दावा है कि मरीज अगर रोज 200 ग्राम इन चावलों का सेवन करें तो शरीर में कैसर रोकने वाले तत्वों की पर्याप्त मात्रा पहुंच जाएगी।

दो प्रमुख शोध संस्थानों के साथ अनुबंध

इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय के एसोसिएट डायरेक्टर (रिसर्च) डा. धनंजय शर्मा ने बताया कि रिसर्च में यह साफ हो गया है कि चावल की इन किस्मों में ऐसे तत्व है, जो कैसर की कोशिकाओं को तेजी से खत्म करते हैं। खासकर बेस्ट और लंग्स कैंसर में यह काफी प्रभावी निकले हैं। इन तत्वों का पता लगाने के लिए कृषि विश्वविद्यालय ने देश के दो प्रमुख शोध संस्थानों इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ केमिकल बायोलॉजी और इंस्टीट्यूट ऑफ फॉर्मेकोलॉजी के साथ अनुबंध किया है। यह संस्थान इन तत्वों का पता लगाने के बाद कैंसर की दवाई बनाने पर भी काम करेंगे।

जल्द ही किसानों को उपलब्ध होगा बीज

वैज्ञानिकों के मुताबिक इन तीनों धान की किस्मों की ऊंचाई अधिक है, इसके चलते यह पकने के बद भार ज्यादा होने से गिर जाती है। बताया जा रहा है कि इन प्रजातियों की ऊंचाई को कम करने के लिए या बौना करने के लिए म्यूटेशन ब्रीडिंग का प्रोग्राम भी भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र मुंबई के साथ चल रहा है। अभी इस पूरी प्रक्रिया में साल भर का समय लग सकता है। इसके बाद किसानों को बीच उपलब्ध कराए जाएंगे। बीज उत्पादन करने के लिए भी केन्द्र की अनुमति जरूरी होगी जिसके लिए इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय की ओर से राज्य शासन की सहमति के बाद प्रस्ताव केन्द्र के पास जाएगा।

प्रयोग सफल रहा

धान की तीन पारंपरिक किस्मों में कैंसर निरोधी क्षमता पाई गई है। गठवन, महाराजी व लाइचा में फेफड़े व स्तन कैंसर की कोशिकाओं को खत्म करने के गुण मिले हैं। भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर और इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय ने धान की इन प्रजातियों के औषधीय गुणों का अध्ययन करने के लिए चूहों पर इसका प्रयोग किया जो सफल रहा। इस अनुसंधान से कैंसर के उपचार में आशा की नई किरण जगी है। -संजय नायर, जनसपंर्क अधिकारी, इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय