दामिनी बंजारे - रायपुर।  दो साल पहले यूनीसेफ ने नेक काम किया। पैसे खर्च कर नगर निगम मुख्यालय में ब्रेस्ट फीडिंग कार्नर बनाया। उद्देश्य था कि सार्वजनिक स्थान पर मां अपने बच्चों को सुकून के साथ बिना झिझक दूध पिला सकें। कार्नर शानदार बना। उसमें बच्चों के खिलौने भी रखे गए। सबकुछ स्तरीय। लेकिन सिस्टम कैसे बदलता। मकसद यह भी था कि इस तरह के कार्नर बस स्टैंड हो, पार्क हो या मार्केट सिटी में भी तैयार किए जाएं ताकि महिलाओं को असहज स्थिति में बच्चों को दूध न पिलाना न पड़े। लेकिन सिस्टम कैसे बदलता। 

इसमें 2 साल से उसमे भी ताला लटका हुआ है। अफसरों से जब कारण पूछा तो उन्होंने कहा यह रोज खुलता है। फिर हरिभूमि ने लगातार तीन दिन वहां जांच की। घड़ी में समय दिखाकर ताले के साथ फोटो भी कराए, ताकि अफसरों को महसूस हो कि यह खुलता नहीं, हमेशा बंद रहता है ।

अफसरों ने कहा खुलता है, फिर हमने तीन दिन लगातार जांच की

हरिभूमि की टीम ने रायपुर नगर निगम के स्तनपान सेंटर पहुंची तो वहा ताला लटका हुआ था, हमने निगम के जिम्मेदारों से इसे खुलवाया, जिसके बाद पता चला की वहां पर रखें खिलौने जस के तस हैं। निगम के अधीक्षण अभियंता राजेश शर्मा का कहना हैं कि ये रोज खुलता हैं, और छुट्टी के दिन बंद रहता हैं। हमने लगातार तीन दिन तक रोज जांच की। जिस दिन दफ्तर खुले, उस दिन भी कार्नर बंद मिला।

ये होता है ब्रेस्ट फीडिंग कॉर्नर

ब्रेस्ट फीडिंग कॉर्नर मां का दूध पिलाने का कोना या स्थान होता है. किसी भी सार्वजनिक स्थान या संस्थान में इसे विशेष तौर पर बच्चे को ब्रेस्ट फीड कराने के लिए डिजाइन किया जाता है। मां अपने शिशु को यहां आराम से शांतिपूर्ण और पूरी निजता के साथ दूध पिला सकती है।

2 साल से नगर निगम में नहीं हुआ इसका इस्तेमाल

राजधानी रायपुर में नगर निगम पालिका जहां पर लोगों की संख्या  सर्वाधिक होती हैं। प्रथम तल पर महिलाओं के लिए लाखों खर्च कर के यूनिसेफ के सहयोग से स्तनपान केंद्र बनाया तो गया लेकिन इसके बावजूद यहां ताला लगा हुआ हैं, स्थित यह हैं अगस्त में 1 से 7 तारीख तक विश्व स्तनपान सप्ताह मनाया जाता हैं। लेकिन नगर निगम में 2022 में शुभारंभ के बाद से पोस्टर को भी बदला नहीं जा सका। यहां तक कि सांकेतिक निशान भी दर्शाया नहीं गया, वहीं यहां के लोगों का कहना हैं की अधिकांश वक्त यहां पर ताला लगा होता है।

कॉर्नर न होने के नुकसान

शिशुरोग विशेषज्ञ डॉ अशोक भट्टर ने बताया कि, शिशुरोग विशेषज्ञ डॉ अशोक भट्टर कहते हैं कि सार्वजनिक जगहों या संस्थानों पर ब्रेस्ट फीड कॉर्नर न होने के कई नुकसान मां और बच्चे को झेलने पड़ते हैं। आरामदायक और सहजता न होने की वजह से मां अपने बच्चे को सही प्रकार से फीड नहीं करा पाती है जिससे बच्चे का पेट पूरा नहीं भर पाता है। उसका पोषण अधूरा रह जाता है वहीं बच्चा लगातार चिडचिडा बना रहता है।