रायपुर। उच्च रक्तचाप की समस्या की वजह से 52 साल के मरीज की महाधमनी फट गई। स्टेंट डालकर मरीज को राहत देने में लकवा का खतरा था। ऐसे में हार्ट, चेस्ट एवं वैस्कुलर सर्जरी विभाग के डाक्टरों ने जोखिम उठाकर एओर्टिक आर्च डिब्रांचिंग सर्जरी कर मरीज को स्टेंट डालने लायक बनाया। मध्य भारत में पहली बार सीटीवीएस के डाक्टरों की टीम ने इस सर्जरी को पूरा करने का श्रेय हासिल किया। जांजगीर में रहने वाले 52 साल के मरीज की छाती और पीठ में तेज दर्द और हल्की खांसी की समस्या थी।
स्थानीय डॉक्टरों ने इसे सामान्य समस्या मानते हुए इलाज किया मगर आराम नहीं मिला जिस पर उसे आंबेडकर अस्पताल के टीबी एवं चेस्ट विभाग भेजा गया। जांच के दौरान पता चला कि मरीज की हृदय की मुख्य नस गुब्बारा जैसे फूल गया और उसकी आंतरिक दीवार में छेद हो गया है जिससे खून भर गया है। मरीज को एंडोवैस्कुलर स्टॅटिंग के लिए रेडियोलॉजी विभाग भेजा गया मगर स्टेंट लगाने के दौरान बड़ा जोखिम था। रेडियोलॉजी विभाग के डॉक्टरों ने मरीज को सीटीवीएस विभागाध्यक्ष डॉ. कृष्णकांत साहू के पास भेज दिया जहां मध्य भारत में पहली बार इस सर्जरी को अंजाम देकर मरीज की जान बचाई गई और उसके स्टेंट डालने लायक बनाया गया। मरीज का इलाज मुख्यमंत्री विशेष स्वास्थ्य सहायता की योजना के तहत निःशुल्क किया गया।
जोखिम ज्यादा, कई विशेषज्ञों से मदद
मरीज की जांच के बाद इलाज के लिए डिब्रांचिंग सर्जरी की आवश्यकता महसूस हुई। यह ऑपरेशन संस्थान में पहली बार किया जाना था इसलिए विभागाध्यक्ष डॉ. कृष्णकांत साहू ने दूसरे बड़े संस्थानों के विषय विशेषज्ञों से इसके लिए मदद ली। डा. साहू ने बताया कि इस ऑपरेशन में गले की दायी धमनी को काटकर एवं विशेष प्रकार के ग्राफ्ट से बायीं गले की धमनी और बायें गले की धमनी को बायें हाथ की धमनी से जोड़ा गया। इससे पूरे मस्तिष्क। एवं बायें हाथ को दायें गले की नस से ही खून की सप्लाई मिलने लगी।
15 दिन बाद स्टेट डाला गया
इस सर्जरी की सफलता के 15 दिन बाद रेडियोलॉजी विभाग के चिकित्सकों ने पैर के रास्ते स्टेट लगाकर महाधमनी में आए छेद को बंद किया। चिकित्सकों के अनुसार डिब्रांचिंग सर्जरी के बिना महाधमनी में स्टेंट लगाया जाता तो मस्तिष्क और बायें हाथ में जाने वाली धमनी में रुकावट आ जाती, जिससे मरीज को लकवा हो जाता एवं बायां हाथ काला पड़ जाता। इस सफल सर्जरी के पांच दिन बाद मरीज को अस्पताल से छुट्टी दे दी गई।