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जमीनों की धोखाधड़ी के मामलों में कमी लाने के लिए राजस्व विभाग ने ऐसी कवायद शुरू की है। अब आधार कार्ड की तरह जमीन के हर प्लाट का होगा यूनिक नंबर, एक क्लिक पर मिलेगी पूरी जानकारी। 

बिलासपुर। राजस्व एवं भूमि सुधार विभाग के अनुसार इस यूनिक नंबर में खाता नंबर, थाना नंबर, मौजा का नाम, अंचल व जिला के नाम के साथ उसके स्वामित्व की जानकारी सार्वजनिक हो जाएगी। यही नहीं यदि उस प्लॉट पर यदि कोई विवाद का मुकदमा है तो उसकी भी जानकारी एक क्लिक करते मिल जाएगी। कुल मिलाकर हर जमीन का आधार कार्ड की तरह एक नंबर होगा। राज्य के साथ ही बिलासपुर में खास तौर पर जमीन की बड़ी गड़बड़ियां है। खसरा और बटांकन में हेरफेर के कारण जमीनों की धोखाधड़ी की सैकड़ों शिकायतें भी हैं। ऐसी गड़बड़ियों को दूर करने के उद्देश्य से जियो रिफ्रेशिंग के जरिए खसरा और बटांकन किया जाएगा। इसका सत्यापन करने के बाद सिस्टम से संबंधित प्लॉट का नंबर जनरेट होगा। इस तरह खसरा नंबर में हेरफेर कर जमीन की खरीद-बिक्री नहीं की जा सकेगी।

दरअसल, जमीन-जायदाद के वाद-विवाद, भूमि अधिग्रहण, सीमांकन, बटांकन सहित भूमि सर्वेक्षण के अन्य मामलों के लिए लाइट डिटेक्शन एंड रेजिंग (लिडार) तकनीक लागू की जा रही है।तकनीकी एजेंसी की मदद से शहर व गांव में हर छोटे-बड़े जमीन के प्लॉट का जियो रिफ्रेशिंग के जरिए खसरा व बटांकन दर्ज किया जाएगा। इस नंबर के जरिए सारी जानकारी हासिल की जा सकेगी। इससे जमीन की धोखाधड़ी के मामलों में कमी आएगी। केंद्र सरकार के डिजिटल इंडिया रिकार्ड माडर्नाइजेशन प्रोग्राम (डीआइएलआरएमपी) के अंतर्गत राज्य सरकार को सर्वेक्षण के लिए 300 करोड़ रुपए की प्रशासकीय स्वीकृति भी मिली है। साथ ही राज्य सरकार ने इस प्रोजेक्ट के लिए बजट में 50 करोड़ रुपए का प्रावधान किया है।

इस तरह काम करेगा लिडार तकनीक

लिडार उपकरणों में लेजर, स्कैनर और एक जीपीएस रिसीवर होता है। किसी बड़े क्षेत्र के आंकड़े प्राप्त करने के लिए विमान, ड्रोन, हेलीकाप्टर का उपयोग किया जाता है। इस तकनीक में पृथ्वी की सतह पर लेजर प्रकाश डाला जाता है और प्रकाश के वापस लौटने के समय की गणना से वस्तु की दूरी, ऊंचाई, लंबाई, चौड़ाई सहित अन्य गणनाओं त्रि-आयामी (थ्रीडी) मानचित्र तैयार किया जाता है। अधिकारियों के मुताबिक देखा जाए तो वर्तमान में किसी भी राज्य में पूरी तरह जमीनों का सर्वेक्षण लिडार तकनीक से नहीं किया गया है। छत्तीसगढ़ में भी यह प्रोजेक्ट अभी शुरू नहीं हो पाया है, लेकिन प्रशासकीय स्वीकृति के बाद शीघ्र ही प्रोजेक्ट शुरू होने की उम्मीद है अधिकारियों के मुताबिक प्रदेशभर में भूमि के सर्वेक्षण करने में कम से कम तीन वर्ष का समय लगेगा। कहा जा रहा है कि इस तकनीक से निजी व सरकारी जमीनों की सुरक्षा सुनिश्चित हो सकेगी।

जमीनों की मिलेगी सटीक जानकारी

अधिकारियों के मुताबिक इस अत्याधुनिक तकनीक से न सिर्फ भूमि सर्वेक्षण में मदद मिलेगी, बल्कि आम आदमी के लिए यह बहुउपयोगी साबित होगा, जिसमें आम आदमी अपनी जमीन के विशेष पहचान नंबर के जरिए लंबाई-चौड़ाई और कुल क्षेत्रफल की सटीक जानकारी प्राप्त करेगा। मकान, भवन, आस-पास पेड़ों की संख्या, ऊंचाई की भी जानकारी इससे प्राप्त हो सकेगी। यह आधुनिक तकनीक रिमोट सेसिंग से आधार पर कार्य करेगा। राज्य सरकार के भू-अभिलेख विभाग के मुताबिक प्रदेशभर में इस तकनीक को लागू करने के पहले हाइटेक मशीनों के जरिए हेलीकाप्टर और ड्रोन से सर्वे किया जाएगा। इसके बाद साफ्टवेयर में जानकारी एकत्रित की जाएगी।

300 करोड़ की मिली है स्वीकृति

कमिश्नर, भू अभिलेख विभाग रमेश शर्मा बताते हैं कि, लिडार तकनीक से संबंधित सर्वेक्षण के लिए केंद्र सरकार से 300 करोड़ रुपए की स्वीकृति मिली है। राज्य सरकार को सर्वेक्षण के लिए प्रस्ताव भेजा गया है। यह एक ऐसी व्यवस्था है, जिसमें शहर व गांव में हर छोटे-बड़े जमीन के प्लॉट का जियो रिफ्रेशिंग के जरिए खसरा व बटांकन दर्ज किया जाएगा। -

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