राजिम का त्रिवेणी संगम प्रदूषण की चपेट में : उग आई हैं कटीली झाड़ियां, दूर-दूर तक सफेद रेत की जगह हरी काइयों ने ले ली

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राजिम के त्रिवेणी संगम में नदियां काई का सैलाब एवं कंटीली झाड़ियों से पट गई
छत्तीसगढ़ का प्रयागराज कहलाने वाले राजिम शहर में तीन नदियों का संगम है। यहां बड़ी संख्या में लोग अस्थि विसर्जन करने पहुंचते हैं।

श्यामकिशोर शर्मा-राजिम। छत्तीसगढ़ ही नहीं वरन संपूर्ण भारत एवं देश-विदेश में राजिम की एक विशिष्ट पहचान है। राजिम में त्रिवेणी संगम के साथ-साथ भगवान श्री राजीव लोचन एवं श्री कुलेश्वरनाथ महादेव का मंदिर है। छत्तीसगढ़ में लोगों की आस्था का बड़ा केंद्र होने के साथ ही पर्यटन एवं मृतात्मा के शांति पूजन एवं अस्थि विसर्जन के लिए हजारों लोग रोज यहां आते है। किंतु छत्तीसगढ़ के प्रयाग के नाम से पहचाने जाने वाले राजिम के त्रिवेणी संगम में नदियां काई का सैलाब एवं कंटीली झाड़ियों से पट गई है।

राजिम में तीन नदियों पैरी, सोंढुर और महानदी का संगम है। जो भारत में प्रयागराज के बाद त्रिवेणी संगम के रूप में अपना विशिष्ट पहचान रखता है। इन तीनों नदियों का उद्गम भी छत्तीसगढ़ में ही हुआ है। ये सभी जानते है कि श्रृंगी ऋषि के तप से महानदी का उद्गम सिहावा पर्वत से हुआ है, जो राजिम में आकर दो अन्य नदियों पैरी एवं सोंढुर से मिलकर त्रिवेणी संगम का रूप लेती है। लेकिन इन दिनो संगम पर सबसे ज्यादा प्रदूषण महानदी में देखने को मिल रहा है। नवापारा नगर सोमवारी बाजार जाने वाले पुल से महानदी को देखने पर अत्यंत पीड़ा होती है। नदी की रेत पर छह-आठ इंच की मिट्टी की परत चढ़ गई है उसके ऊपर काई, घास के सैलाब के साथ ही कटीली झाड़ियां उग आई हैं।

Rajim Triveni Sangam polluted

रेत की जगह हरी काई ने ले ली

यही हाल नवापारा से राजिम पुल से जाने वाली त्रिवेणी संगम का है। भगवान श्री कुलेश्वरनाथ मंदिर से उल्टी दिशा पर पुल से देखने पर वही नजारा फिर से दिखता है। फर्क यही है कि वहां त्रिवेणी संगम एकदम सूखी नहीं है पर दलदल में घास, काई एवं झाड़ियां उग आई है। नदी पर हरा रंग चढ़ गया है दूर-दूर तक रेत दिखाई नहीं देता। महानदी एवं त्रिवेणी पर इस प्रदूषण को देखकर प्रकृति प्रेमी एवं अंचलवासी आए दिन चिंता जाहिर करते रहते हैं। 25 साल पहले तक महानदी एवं त्रिवेणी का रेत सोने जैसा चमकता रहता था एवं बहने वाली धार बहुत ही मनमोहक लगती थी। यहां से गुजरने वाले लोग समय निकलकर नदियों में रुककर स्नान करते थे एवं घर के लिए पवित्र जल भी ले जाया करते थे। किंतु आज नदी का जल इतना प्रदूषित है कि लोग उसे बोतल में रखते भी है तो पोखर के जल से भी गाढ़ा कीचड़युक्त लगता है।

अस्थिविसर्जन को बड़ी संख्या में आते हैं लोग

गौरतलब है कि राजिम तीर्थघाट एवं नवापारा नेहरू घाट में प्रतिदिन सैकड़ों लोग अस्थि विसर्जन एवं मृतात्मा की शांति पूजा के लिए देश के कोने-कोने से आते है। मृतात्मा की शांति पूजा कर राजिम तीर्थघाट के त्रिवेणी में प्रदूषित पानी पर डुबकी लगाना मजबूरी है। राजिम प्रयाग त्रिवेणी संगम लोगो की आस्था का प्रमुख केंद्र है साथ ही साथ अस्थि विसर्जन एवं शांति पूजा के लिए नवापारा एवं राजिम के ढेर सारे कौरी माला के दुकानदार, पंडित, नाई का जीवनयापन भी राजिम त्रिवेणी में टीका हुआ है ऐसी स्थिति में राजिम महानदी एवं त्रिवेणी संगम की यह स्थिति चिंताजनक है।

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हर साल लगता है मेला, कार्ययोजना बनाकर सफाई की जरूरत

राजिम में फरवरी माह में माघी पुन्नी मेला के अवसर पर 15 दिनों का मेला हर साल लगता है जिसमें पूरा मेला नदी के बीच में ही रहता है। शासन के विभिन्न स्टॉलों के साथ-साथ छोटी-बड़ी दुकान नदी में रहती है। मेले के बाद राजिम नगरपंचायत एवं नवापारा नगर पालिका द्वारा नदी की सफाई की जाती हैं। समय-समय पर समाजसेवी संगठन एवं जागरूक लोगों द्वारा सफाई अभियान चलाया जाता है किंतु इतने विशाल क्षेत्र में यह सफाई व्यवस्था नाकाफी है। आवश्यकता है शासन द्वारा विस्तृत कार्ययोजना बनाकर संपूर्ण नदी की सफाई की जाए, नदी से मिट्टी की परत हटाई जाए, काई सैलाब एवं कंटीली झाड़ियां को नदी से हटाकर नदी को उसके पुराने वैभव में लाया जाए तब कोई बात होगी।

अब नहीं दिखतीं नदी में मछलियां

आज से 10-12 साल पहले नदी के किनारे डंगनी और गरी लेकर मछली पकड़ते लोगो को देखा जाता था किंतु अब इतना प्रदूषित हो चुका है कि नदी में मछली है ही नहीं। जिससे मछली पकड़ने वाले भी नजर नहीं आते। अब पानी को करीब से देखने पर पोखरनुमा स्थान पर कीड़े तैरते हुए दिखते है। प्रदूषित जल को ये कीड़े और भी प्रदूषित कर रहे है।

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