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91 वर्ष की आयु, जर्जर शरीर, थरथराती आवाज, लेकिन अयोध्या और श्रीराम जन्मभूमि की बात सुनकर आंखों में वही पुरानी चमक।

गौरव शर्मा- रायपुर।अरुण कुमार शर्मा वह शख्स हैं, जिन्होंने अयोध्या के विवादित स्थान में हिंदू मंदिर होने के पुरातात्विक प्रमाण जुटाए। उन साक्ष्यों को पहले हाईकोर्ट फिर सुप्रीम कोर्ट ने स्वीकार किया और रामलला विराजमान के पक्ष में फैसला भी आया। इस फैसले से आज हिंदुओं के सबसे की वजह से बड़े आराध्य प्रभु श्रीराम टेंट से निकलकर भव्य मंदिर के गर्भगृह में विराजमान होने जा रहे हैं। अरुण कुमार शर्मा कहते हैं, राम मंदिर के साक्ष्य को कोर्ट में पेश करना और रामलला विराजमान के पक्ष में फैसला आना मेरे जीवन का सबसे सुखद क्षण था। क्योंकि खुदाई शुरू होने से पहले कोई यह मानने को ही तैयार नहीं था कि यहां हिंदू मंदिर हो सकता है। हमें हमेशा लगता था कि जो स्थान प्रभु श्रीराम को प्रिय है, वहां मंदिर जरूर होगा। खुदाई से मिले अवशेषों ने सबकी आस्था को प्रमाणित कर दिया और वह बहुप्रतीक्षित फैसला आया, जिसने करोड़ों हिंदुओं के सपने को हकीकत में बदल दिया।

 हर प्रदेश की राजधानी में बने राम मंदिर

अयोध्या में भव्य राम मंदिर का निर्माण होते देखकर डॉ. अरुण कुमार शर्मा कहते हैं, मैं चाहता हूं अब हर प्रदेश की राजधानी में राम मंदिर का निर्माण हो। पूरा देश राम नाम से गूंज सके। वे अयोध्या जाकर रामलला के दर्शन करने के सवाल पर कहते हैं, अभी भी मुझे कोई लेकर जाए, तो मैं अयोध्या जाना चाहूंगा। हालांकि रामलला को मुझसे जो काम लेना था, उन्होंने ले लिया।

अरुण शर्मा ने जुटाए थे सबूत

पद्मश्री डॉ. अरुण कुमार शर्मा की आयु अब 91 वर्ष की हो चली है। उनकी सेहत भी अब पहले की तरह नहीं है, लेकिन अयोध्या केस उनकी स्मृतियों में अब भी है। वे बताते हैं, वहां खुदाई में सबसे पहले एक सिंहासन का टुकड़ा मिला। इससे स्पष्ट हो गया कि रामलला का मंदिर यहां था। इसके बाद लगातार कई पत्थर मिलते गए, जिसपर स्वस्तिक, त्रिशूल, कमल, चक्र जैसे चिन्ह थे। खुदाई से मिले इन्हीं अवशेषों ने कोर्ट में यह सिद्ध किया कि विवादित स्थान पर मंदिर ही था। यूं तो यह किसी फिल्मी कहानी सी लगती है, लेकिन यह छत्तीसगढ़ के प्रख्यात पुरातत्वविद पद्मश्री अरुण कुमार शर्मा की सबसे बड़ी उपलब्धि है, जो 22 जनवरी को श्रीराम मंदिर के रूप में अयोध्या में साकार होने जा रही है।

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