हसन खान -मैनपुर। तहसील मुख्यालय मैनपुर से लगभग 70 किमी दूर कांदाडोंगर पहाड़ी प्राकृतिक अनुपम छटा समेटे हुए है। यहां की खूबसूरती और घने जंगल लोगों को अपनी ओर आकर्षित करता है। इस पवित्र पहाड़ी के उच्च शिखर पर कई गुफाएं हैं, जिसमें से कुछ गुफाओं के दरवाजे अदृश्य हो चुके हैं, लेकिन कई गुफाओं में आज भी श्रद्धालु पहुंचते हैं। अपने भीतर अनेक रहस्यों को समेटे कांदाडोंगर पहाड़ी क्षेत्र प्रमुख देव स्थल के रूप में जाना और माना जाता है।

ऐसे पड़ा नाम
त्रेतायुग में जब रावण ने माता सीता का हरण किया गया, तब भगवान श्रीराम और भाई लक्ष्मण माता सीता की खोज में कांदाडोंगर की पहाड़ी पर पहुंचे थे। यहां गुफा में तपस्यारत ऋषि से भेंटकर माता सीता के संबंध में जानकारी लिया था, भगवान श्रीराम और लक्ष्मण ने अपने वनवास काल के कुछ समय इस पहाड़ी क्षेत्र में बिताए थे और यहां जंगल से कंदमूल भी खाए थे, जिसके चलते इस पहाड़ी को कांदाडोंगर कहा जाता है।

 

प्रमुख धार्मिक आस्था का केन्द्र
मैनपुर ब्लॉक के ग्राम गोढियारी स्थित कांदाडोंगर पहाड़ी अपनी प्राकृतिक खूबसूरती के लिए प्रसिद्ध है। चारों तरफ घने जंगल हरे भरे पेड़ पौधे श्रद्धालु पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करती है। यह आध्यात्मिक केन्द्र के रूप मे जाना जाता है और प्रमुख आस्था का केन्द्र है। मां कुलेश्वरी देवी और मां खम्बेश्वरी देवी के दरबार में जो भी मुरादे मांगी जाती है, वह अवश्य पूरी होती है। इस पहाड़ी क्षेत्र में अनेक देवी देवता के प्रमुख स्थान है, जहां आदिवासी समाज के साथ सभी समाज के लोग पूरी आस्था के साथ पहुंचते हैं और पूजा अर्चना करते हैं।

शरभंग ऋषि का आश्रम में पहुंचे थे प्रभु श्री राम
चार्य युवराज पांडेय ने हरिभूमि को चर्चा में बताया कि कांदाडोंगर की पहाडी में शरभंग ऋषि तपस्या किये है और वहां उनका आश्रम है, जोगी मठ के नाम से इस जगह को जाना जाता है, जहां पर शरभंग ऋषि तपस्या और यज्ञ करते थे, वहां आज भी राख विद्यमान है। वैज्ञानिकों ने भी इसकी जांच किया है, आचार्य युवराज पांडेय ने बताया भगवान श्रीराम और भाई लक्ष्मण कांदोडोंगर की पहाड़ी में पहुंचे थे।

 

नहीं सूखता यहां का जल
इस पहाड़ी में विशेष लिपि में कई आलेखों का उल्लेख है, जिसके बारे में लोग अनेक प्रकार के जानकारी देते हैं। बहरहाल कांदाडोंगर की पहाड़ी में लक्ष्मण झूला, हनुमान झूला और ऋषि मुनियों की तपस्थली जोगी मठ के नाम से आज भी प्रसिद्ध है। यहां देवी शक्ति से उत्पन्न एक जलकुंड है, जहां का पानी कभी नहीं सूखता है। भगवान श्रीराम और भाई लक्ष्मण इसी मार्ग से भद्राचलम होते हुए लंका की ओर प्रस्थान किए थे। बताया जाता है कि जब प्रभु श्रीरामचंद्र ने लंका विजय किया, इसकी जानकारी कांदाडोंगर मे विराजमान देवी मां कुलेश्वरी एवं मां खम्बेश्वरी को लगी तो कांदाडोंगर गढ़भर के देवी देवताओं ने अपने ध्वज पताका के साथ इस पहाड़ी में एकत्र होकर विजयदशमी का पर्व धूमधाम के साथ मनाया था। तब से लेकर आज तक असत्य पर सत्य की जीत की खुशी में कांदाडोंगर में विजयदशमी का पर्व मनाते आ रहे है, जिसमें लगभग एक लाख से अधिक लोगों की भीड़ लगती है।

भद्राचलम होते हुए लंका की ओर प्रस्थान किया था भगवान राम ने
गरियाबंद के मैनपुर विकासखंड के घने जंगल और कांदाडोंगर की पहाड़ी में माता सीता की खोज करते प्रभु श्रीराम और भाई लक्ष्मण पहुंचे थे। उन्होंने कुछ समय इस पहाड़ी पर बिताया था, जिसका प्रमाण आज भी इस पहाड़ी में मिलता है। यहां लक्ष्मण झूला, हनुमान झूला के साथ ऋषि मुनियों द्वारा तप किए किए स्थल आज भी मौजूद हैं, जो धार्मिक आस्था के केन्द्र हैं।