गणेश मिश्रा- बीजापुर। साल 2005, बस्तर का धुर नक्सल प्रभावित जिला बीजापुर में नक्सलियों के खिलाफ स्वस्फूर्त जन आंदोलन की हुंकार उठी। इस हुंकार को नाम दिया गया ‘सलवा जूड़ुम’। इस शब्द का गोंडी भाषा में अर्थ है ‘शांति यात्रा’। यह आंदोलन छत्तीसगढ़ की तात्कालीन भाजपा सरकार के समर्थन से चलाया गया था। इसका उद्देश्य राज्य में नक्सली हिंसा को रोककर शांति स्थापित करना था। साल 2010 में सुको ने इस पर प्रतिबंध लगा दिया।
बीजापुर। उधार की झोपड़ी में अपना भविष्य गढ़ रहे नौनिहाल. @DistrictBijapur #Chhattisgarh @SchoolEduCgGov #Students pic.twitter.com/nv1aDFrTxn
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दरअसल, दक्षिण बस्तर में सलवा जुड़ूम ही वह दौर था जब नक्सलियों ने बीजापुर, सुकमा, दंतेवाड़ा के अंदरूनी इलाकों में संचालित स्कूल, आश्रम, छात्रावासों को निशाना बनाया था। दर्जनों स्कूल नक्सलियों के निशाने पर आए तो कई बढ़ते लाल आतंक के चलते बंद हो गए। दौर बदला तो धीरे-धीरे हालात भी बदलने लगे। तत्कालीन भाजपा सरकार में डेढ़ दशक से बंद पड़े स्कूलों को फिर से संचालित करने की मुहिम शुरू हुई। इस काम को शिक्षा विभाग ने लगन से आगे बढ़ाया। नतीजा ये रहा कि, धुर नक्सल प्रभावित इलाकों में सालों बाद स्कूल की घंटियां बजने लगी। पिछली और मौजूदा सरकार ने इसकी वाह-वाही लूटी, लेकिन वाह-वाही के बीच दर्जनों स्कूलों को उनके हाल पर छोड़ दिया गया। बीजापुर के मुनगा में संचालित संयुक्त स्कूल इसका एक जीवित उदाहरण है।
आजादी के 76 साल बाद भी कोठार में संचालित हो रहे स्कूल
बीजापुर जिला मुख्यालय से लगभग 21 किमी दूर मुनगा पहाड़-जंगल से घिरा छोटा सा गांव है। गांव बेहद ही संवेदनशील है। इसके बावजूद शिक्षा विभाग की कोशिशों से साल 2022 में गांव में दो प्राइमरी स्कूल का संचालन संभव हो पाया। विभाग ने जैसे-तैसे स्कूल तो खोल दिया लेकिन बीते दो सालों के भीतर पढ़ने वाले बच्चों के लिए प्रशासन पक्की स्कूल बिल्डिंग का निर्माण नहीं करा सका। नतीजतन स्कूल पहले कोठार में संचालित हुआ फिर पेड़ और तिरपाल के नीचे लगने के बाद दोबारा अब गांव में ही उधारी की झोपड़ी में संचालित हो रही है।
बीजापुर। आजादी के 76 साल बाद भी बीजापुर जिले के मुनगा पहाड़ गांव में उधार के झोपड़ी में संचालित हो रहा स्कूल. @DistrictBijapur #Chhattisgarh @SchoolEduCgGov #Students pic.twitter.com/346QauYUKo
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पत्राचार के बाद भी शुरू नहीं हुआ स्कूल बिल्डिंग निर्माण का काम
शिक्षक रेहान बताते हैं कि, स्कूल जब से शुरू हुआ है तभी से पक्की बिल्डिंग की जरूरत महसूस की जा रही है। भवन के लिए समय समय पर पत्राचार होता रहा है। निविदा प्रक्रिया पूरी होने की भी जानकारी मिली है। इसके बावजूद बिल्डिंग का काम शुरू नहीं हुआ। नतीजतन बच्चे कोठार में बैठकर पढ़ रहे हैं। मध्यान्ह भोजन भी खुले में पकता है। बरसात और सर्दियों के मौसम में बच्चों को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता है।
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परेशानियों से दो-चार होकर कोठार में भविष्य गढ़ रहे नौनिहाल
इसके अलावा यहां एक नहीं बल्कि दो स्कूल एक साथ संचालित हैं। दोनों स्कूलों को मिलाकर 70 बच्चे दर्ज हैं और कोठार में इतने बच्चों को एक साथ बैठाकर पढ़ा पाना संभव नहीं हैं। कोठार की बल्लियों पर व्हाइट बोर्ड टांगकर किसी तरह बच्चों को पढ़ा रहे हैं, उनका इम्तिहान ले रहे हैं और परेशानियों से दो-चार होकर नौनिहाल भी जैसे-तैसे अपना भविष्य कोठार में ही गढ़ रहे हैं। इस संबंध में जिला शिक्षा अधिकारी धनेलिया ने फोन पर चर्चा में कहा कि, पूरे विषय से अवगत होकर वे जानकारी देंगे।