कोरबा। कहते हैं कि, अतीत हमेशा परछाई की तरह साथ चलता है। वह कभी भी हमारा पीछा नहीं छोड़ता। यूं तो हमारा देश भारत मंगल ग्रह तक पहुंच चुका है। चांद में जीवन की खोज जारी है। ऐसे में जमीनी हकीकत विचार करने पर विवश करती है। आज भारत की छवि जहां एक तरफ वर्ल्ड लीडर की है वहीं कुछ कुरीतियां, सामाजिक बुराइयां, बढ़ते अपराध और भ्रष्टाचार भारत को आगे बढ़ने से रोक रहे हैं। 

ऐसी ही एक घटना कोरबा जिले से सामने आई है। एक ओर जहां शिक्षा का विस्तार हुआ है वहीं दूसरी ओर इसे नकारा भी जा रहा है। बाल विवाह को लेकर भारत में कड़े कानून हैं। बावजूद इसके कोरबा के मोरगा चौकी के ग्राम गिधमुडी में परिजन बच्चों का बाल विवाह करवा रहे थे। 

पुलिस की टीम पहुंची

बच्चों की कराई जा रही थी शादी 

मंडप सजा हुआ था। 15 साल की दुल्हन 19 साल के दूल्हे के साथ फेरे लेने ही वाली थी  कि, इसी दौरान 112 की टीम, चाइल्ड लाइन और महिला बाल विकास विभाग की टीम वहां पहुंची और इस विवाह को रुकवाया। 

दी समझाइश, यह अपराध 

टीम ने ग्राम के सरपंच और जनपद के सहयोग से विवाह में शामिल दोनों पक्षों के परिजनों को समझाइश देते हुए कहा कि, लड़का-लड़की दोनों की उम्र कानून के अनुसार, विवाह के लायक नहीं है। विवाह के लिए युवती की उम्र 18 वर्ष, वहीं युवक की उम्र 21 वर्ष निर्धारित है। जब तक दोनों बालिग नहीं होते शादी अपराध की श्रेणी में आता है। दोनों के बालिग होने के बाद ही विवाह करवाया जाए। 

बच्ची के परिजनों को समझाइश देते हुए पुलिस

समझाइश के बाद मान गए परिजन  

समझाइश के बाद परिजनों ने विवाह को रोक दिया और विवाह में लगे मंडप को भी हटा दिया। निश्चित रूप से बाल विवाह समाज की जड़ों तक फैली बुराई, लैंगिक असमानता और भेदभाव का ज्वलंत उदहारण है। यह आर्थिक और सामाजिक ताकतों की परस्पर क्रिया-प्रतिक्रिया का परिणाम है। जिन समुदायों में बाल विवाह की प्रथा प्रचलित है वहां छोटी उम्र में लड़की की शादी करना उन समुदायों की सामाजिक प्रथा और दृष्टिकोण का हिस्सा है। जबकि यह लड़कियों के मानवीय अधिकारों की निम्न दशा दर्शाता है। 

1929 में बना था इसपर पहला कानून 

बाल विवाह पर रोक संबंधी कानून सबसे पहले सन् 1929 में पारित किया गया था। बाद में सन् 1949, 1978 और 2006 में इसमें संशोधन किया गया। इस समय विवाह की न्यूनतम आयु बालिकाओं के लिए 18 वर्ष और बालकों के लिए 21 वर्ष निर्धारित की गई है।