रायपुर। नियुक्ति आदेश के आधार पर ज्वाइनिंग लेने वाले राज्य के 749 डॉक्टर एक ही स्थानों पर सालों से ड्यूटी कर रहे हैं। कई जिला अस्पताल और चिकित्सा महाविद्यालयों में चिकित्सकों की कमी की बाते सामने आई, मगर इनका तबादला नहीं हुआ। तबादला नहीं होने की वजह तगड़ी सेटिंग अथवा प्राइवेट प्रेक्टिस का मोह माना जा रहा है। राज्य में चिकित्सा विशेषज्ञ और चिकित्सा अधिकारी के करीब डेढ़ हजार पद खाली हैं। इसकी वजह से कई दूरवर्ती जिलों के अस्पतालों में उपचार सुविधा की कमी रहती है।
वहीं चिकित्सा महाविद्यालयों की मान्यता पर खतरा मंडराता रहता है। इसकी भरपाई के लिए विभागीय स्तर पर कई बार तबादले किए जाते हैं, मगर उसकी जद से कई डाक्टर बाहर रहते हैं। ऐसे ही 749 डॉक्टरों की ज्वाइनिंग जिला अस्पताल और मेडिकल कालेज में हुई और उसके बाद सालों गुजरने के बाद उन्हें दूसरे स्थान पर नहीं भेजा गया। उल्टे सेवा में रहने के दौरान कईयों को पदोन्नति का लाभ भी मिल गया। सूत्रों का कहना है कि ट्रांसफर का नियम इन डॉक्टरों पर लागू नहीं होने की वजह विभागीय स्तर पर तगड़ी पहुंच है। इसके अलावा एक ही स्थान पर रहते हुए क्षेत्र में बड़े अस्पताल अथवा निजी क्लीनिक से होने वाली बड़ी आय का मोह भी उन्हें दूसरे जिलों में जाने से रोकता है।
20 फीसदी एनपीए एलाउंस
जानकारी के अनुसार, सरकारी अस्पतालों में सेवा देने के बाद निजी अस्पताल नहीं जाने वाले डॉक्टरों को एनपीए एलाउंस देने का सिस्टम है। यह भत्ता बेसिक सैलेरी का बीस प्रतिशत होता है। यह राशि नहीं लेने वाले डॉक्टरों को अपनी ड्यूटी के बाद तीन घंटे प्राइवेट प्रेक्टिस करने की छूट है, मगर शिकायत यह मिलती रहती है कि डाक्टर सरकारी अस्पताल के बजाए अपने निजी हॉस्पिटल में ज्यादा सक्रिय दिखाई देते हैं।
131 की प्राइवेट प्रेक्टिस
सरकारी आंकड़ों के अनुसार, इन साढ़े सात सौ डॉक्टरों में केवल 131 डॉक्टर प्राइवेट प्रेक्टिस करते हैं। आंकड़े चौंकाने वाले हो सकते हैं, क्योंकि सरकारी अस्पतालों, हेल्थ सेंटरों में काम करने वाले 80 फीसदी से ज्यादा चिकित्सक अपनी सरकारी ड्यूटी के बाद मरीजों का इलाज निजी अस्पताल अथवा अपनी क्लीनिक के माध्यम से करते हैं।