हेमन्त वर्मा-धरसींवा। औद्योगिक नगरी सिलतरा इन दिनो प्रदूषण और स्पंज आयरन के काले धुएं को लेकर सुर्खियों में बना हुआ है। कंपनियां अपने उत्पादन को लेकर तो सक्रिय हैं लेकिन यहां फैल रहे प्रदूषण के बारे में चुप्पी साधे हुए हैं। यहां के रहवासियों ने कई बार इस समस्या को अफसरों के सामने रखा, लेकिन समाधान देने की बजाय कंपनी ने खानापूर्ति कर देते हैं। 

धरसींवा, तस्वीर

उल्लेखनीय है कि, आज से 24 साल पहले सिलतरा क्षेत्र में उद्योगों का जन्म हुआ था। तभी से इस क्षेत्र में प्रदूषण भी पैर पसारने लगा। जनता की उम्मीद नेताओं पर थी, लेकिन सत्ता में आते ही सरकार के बदलते तेवर के कारण आज तक इस समस्या का निदान नहीं हो सका है। 

टाढ़ा से मांढर तक सड़कों में काली डस्ट की चादर

टाढ़ा गांव की तरफ यात्रा करने वाले राहगीरों सहित मांढर क्षेत्र के रहवासियों का जीना दुश्वार होता जा रहा है। इसका कारण है कल-कारखानो से निकलने वाली काली डस्ट। इस डस्ट को सड़कों पर बिछाया गया है। इसके अलावा परिवहन के लिए जिन ट्रकों का उपयोग किया जाता है उन्हें भी सड़क किनारे खड़ा किया जाता है। इससे मार्ग बाधित होता है। 

सड़क किनारे खड़े ट्रक

हवा, मिट्टी, पानी सब प्रदूषित

अधिकतर लोग राजधानी के आस-पास की आबोहवा को ही प्रदूषित मानते हैं जबकि वास्तविकता तो यह है कि सिलतरा में हवा, पानी और मिट्टी भी दूषित हो रही है। तेजी से सिलतरा, मुरेठी, टाढा, धरसींवा आसपास का पर्यावरण दूषित हो रहा है। ऐसे में आने वाले दिनों में धरसींवा को भयावह स्थिति का सामना करना पड़ सकता है।

सरकार और प्रशासन इन पर मेहरबान क्यों

अब सवाल यह उठता है कि, झूठे वादों और ग्रीन जोन के सपने दिखाने वाली इन कंपनियों पर आखिर शासन-प्रशासन इतना मेहरबान क्यों है? क्षेत्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अधिकारी संबंधित मामले को लेकर किसी तरह से हरकत में दिखाई पड़ते नहीं हैं। कंपनियों को बेलगाम छोड़ने और उन पर शासकीय मेहरबानी के चलते ही इस क्षेत्र की ऐसी दशा हो गई है। ताज्जुब है कि, प्रदूषण की यह समस्या आए दिन अखबारों में सुर्खियां बटोरने के बाद भी ज्यों की त्यों बनी हुई है। संभव है कि, कंपनियों को राजनीतिक संरक्षण प्राप्त हो और शायद इसीलिए अब तक इस मामले में कोई कार्रवाई नहीं हुई है।