विमलशंकर झा - भिलाई। दुर्ग लोकसभा क्षेत्र की खासियत यहां स्थित एशिया के सबसे बड़े एकीकृत सार्वजनिक उपक्रम भिलाई इस्पात संयंत्र के कारण औद्योगिक विकास के साथ राजनीतिक जागरुकता की भी रही है। बावजूद इसके यह सीट भी प्रदेश के बहुतेरे क्षेत्रों की तरह जातीय समीकरण से अछूती नहीं है। सियासी दृष्टि से कुर्मी जातीय बहुल इस संसदीय क्षेत्र से पहली बार साहू प्रत्याशी चुनाव मैदान में उतारने का श्रेय भाजपा को जाता है, जिसके बाद ही इस जाति के लोगों में राजनीतिक जागरुकता आई और लोकसभा के साथ विधानसभाओं में साहू जाति के उम्मीवार बनाए जाने का सिलसिला चल पड़ा। देश को दो तीन केंद्रीय मंत्री और दो मुख्यमंत्री देने वाले दुर्ग संसदीय क्षेत्र में शुरु से कुर्मी और साहू जाति के लोगों की बहुलता रही है। इन दोनों जाति के लोगों की संख्या पांच लाख से ऊपर है। यही वजह है कि आज यहां कुर्मी और साहू समाज के लोगों का प्रतिनिधित्व सबसे ज्यादा है। लेकिन तीन दशक पहले इस संसदीय क्षेत्र में कुर्मी समाज के लोगों का ही वर्चस्व था।

राजनीति में साहुओं को मुख्यधारा में लाने का किस्सा दिलचस्प तो है ही, रणनीतिकारों के चुनाव जीतने की राजनीतिक चातुर्य का भी प्रतीक है। राजनीतिक पंडितों के मुताबिक दुर्ग जिला में 1971 से 95 तक कुर्मी जाति के लोगों का ही वर्चस्व था। चाणक्य के नाम से प्रसिद्ध वासुदेव चंद्राकर 25 साल तक रिकार्ड जिला कांग्रेस दुर्ग के अध्यक्ष रहे। चंदूलाल चंद्राकर 1977 में सांसद मोहन भैया को छोड़कर 71 से 96 तक लगातार सांसद थे, फिर पुरुषोत्तम कौशिक भी सांसद रहे। 1991 के लोकसभा चुनाव के समय लक्ष्मण चंद्राकर साडाध्यक्ष थे, प्रतिमा चंद्राकर को जिला पंचायत अध्यक्ष बनाने कांग्रेस की तैयारी थी। भाजपा की रणनीति थी कि यदि कांग्रेस वासुदेव चंद्राकर की पत्नी बोधनी बाई को विधानसभा लड़ाएगी तो भाजपा डॉ साहू की बहू को उनके खिलाफ प्रत्याशी बनाएंगे। 1991 के लोकसभा चुनाव में भाजपा के सामने यह बड़ी चिंता थी कि 4 बार के सांसद चंदूलाल चंद्राकर की लोकप्रियता वाले कांग्रेस के इस अभेद्य गढ़ को कैसे ढहाया जाए। 

साहू-कुर्मी मतदाता बाहुल्य है दुर्ग लोकसभा क्षेत्र

प्रत्याशी के सवाल से जूझ रहे शीर्ष नेतृत्व को तत्कालीन शिक्षा राज्य मंत्री प्रेमप्रकाश पांडेय ने सुझाया कि दुर्ग को फतह करने क्यों ने कांग्रेस को उसी के जाति कार्ड से मात दिया जाए। यानी कुर्मी बहुल दुर्ग सीट से दूसरे नंबर के साहू जाति के उम्मीदवार को प्रत्याशी बनाया जाए। उन्होंने प्रदेश भाजपाध्यक्ष लखीराम अग्रवाल, गोविंद सारंग और कुशाभाउ ठाकरे के मार्फत शीर्ष नेतृत्व को दुर्ग से बीएसपी के मैनेजर और लिटररी क्लब के अध्यक्ष डॉ. मनराखन लाल साहू का नाम सुझाया। कांग्रेस प्रत्याशी चंदूलाल चंद्राकर की तरह डॉ. साहू की छवि भी साफ सुधरी थी और कुर्मियों की तरह साहू जाति के लोगों की भी संख्या पांच लाख से ऊपर थी। डॉ. साहू के नाम पर मुहर लगने के बाद अविभाजित मध्यप्रदेश में भाजपा की सरकार होने के चलते लोकसभा चुनाव में कांग्रेस व भाजपा में टक्कर की स्थिति बन रही थी, लेकिन ऐन मतदान के वक्त देश में हुए बड़े हादसे ने दुर्ग में भाजपा जीतते जीतते हार गई।

राजीव गांधी की हत्या से पलटी बाजी

91 के लोकसभा चुनाव में प्रदेश में भाजपा की सरकार होने से दुर्ग सीट पर भी यहां पार्टी के रणनीतिकार नेताओं को 77 जैसा अपने पक्ष में माहौल लग रहा था। राष्ट्रीय अध्यक्ष लाल कृष्ण आडवाणी सहित कई दिग्गज राष्ट्रीय नेताओं की उपस्थिति में अग्रसेन भवन भिलाई में हुए भाजयुमो के राष्ट्रीय सम्मेलन की अगुवाई करते हुए मंत्री बृजमोहन अग्रवाल, प्रेमप्रकाश पांडेय, लीलाराम भोजवानी सम्मेलन के साथ धुआंधार चुनाव की कमान संभाले हुए थे। आला नेताओं को पुरजोर जीत का भरोसा भी दिला रहे थे, लेकिन अचानक मतदान के 2 दिन पहले 21 मई को पैरांबूर आंध्र में चुनावी सभा में हालिया पीएम पद से निवृत हुए राजीव गांधी की हुई हत्या से मतदान स्थगित कर दिया गया। पखवाड़ेभर बाद जब अगले चरण का यहां मतदान हुआ तो सहानुभूति लहर में कांग्रेस प्रत्याशी चंदूलाल चंद्राकर फिर से जीते, जो 9% तक सांसद रहे। चुनाव के कुछ दिनों बाद डॉ. साहू चल बसे थे।

जिले में साहू प्रतिनिधित्व का सिलसिला शुरु

91 के संसदीय चुनाव में भाजपा नेता प्रेमप्रकाश पांडेय द्वारा दुर्ग से पहली बार डॉ. मनराखन लाल साहू का बतौर प्रत्याशी नाम सुझाए जाने के बाद साहू जाति के लोगों में सियासत में भागीदारी को लेकर जागरुकता बढ़ी। 1996 में सांसद चंदूलाल चंद्राकर के आकस्मिक निधन के बाद हुए चुनाव में भी भाजपा ने डॉ. साहू की तरह प्रदेश भाजपाध्यक्ष ताराचंद साहू को अपना प्रत्याशी बनाया, जो 2004 तक सांसद रहे। ताराचंद के बागी होकर अपनी पार्टी छग स्वाभिमान मंच से लड़ने के बाद 09 में भाजपा से सरोज पांडेय के जीतने के बाद 2014 में कांग्रेस ने भी साहू जाति के यानी ताम्रध्वज साहू को अपना प्रत्याशी बनाया जो 2019 तक सांसद रहे। अभी 2024 के चुनाव में भी कांग्रेस ने राजेंद्र साहू को प्रत्याशी बनाया है। 91 में डॉ. साहू के बाद दुर्ग संसदीय क्षेत्र के विभिन्न विधानसभा क्षेत्रों से भी घनाराम साहू, दयाराम साहू, वीरेंद्र साहू, रमशीला साहू विधायक रहे। अभी साजा से भी साहू विधायक हैं। यानी साहुओं को टिकट देने का सिलसिला 91 के बाद ही शुरु हुआ।