जगदलपुर। दशकों तक नक्सल संगठन में रहते हुए खौफ की जिंदगी जी रहे नक्सली अब समर्पण के बाद बेखौफ होकर परिवार के साथ खुशहाल जिंदगी बसर कर रहे हैं। आंकड़े बताते है कि, एक दशक में नक्सलवाद छोड़ मूलधारा में लौटे 26 नक्सलियों ने रिवर्स नसबंदी कराई और आज बाल बच्चों के साथ उनका भरा-पूरा परिवार है। हरिभूमि ने ऐसे परिवारों से बातचीत की तब पता चला कि अपने होनहार बच्चों को बड़ी शासकीय सेवा में भेजने परिश्रम कर रहे हैं। गौरतलब है कि, जंगल में शादी के लिए तो इंकार नहीं किया जाता है, लेकिन संगठन के टॉप नक्सलियों के फरमान पर बच्चे पैदा करने की इजाजत नहीं दी जाती है और उनका शादी से पूर्व ही नसबंदी करा दी जाती है।
हरिभूमि ने ऐसे ही कुछ समर्पित नक्सलियों से चर्चा की, जिन्होंने जंगल में शादी कर ली थी लेकिन बच्चों की चाह रखते हुए भी बच्चे पैदा नहीं कर पा रहे थे। समर्पण के बाद पुलिस की मदद से उनकी नसबंदी खुलवाई गई और अब दर्जनों नक्सली परिवार के बच्चों के साथ खुशहाल जिंदगी जी रहे हैं।अधिकतर नक्सली अपने बच्चों को निजी व शासकीय स्कूलों में पढ़ा रहे है तथा उनकी तमन्ना अपने बच्चों को डॉक्टर बनाने की है, जिसके लिए आत्मानंद अंग्रेजी स्कूल में भी अपने बच्चों को पढ़ रहे हैं।
बेटी को बनाना चाहते हैं डॉक्टर
नक्सल जोड़ा श्यामलाल व सामबती ने वर्ष 2011 में जंगल में रहते हुए विवाह किया और 2014 में दोनों ने समर्पण कर दिया। समर्पण के बाद उनकी दो बेटी और एक बेटा है, जिन्हें वे अच्छी तालीम देने प्रयासरत है। श्यामलाल व सामबती अपने बड़ी बेटी साक्षी को डॉक्टर बनाना चाहते हैं, जिससे वह देश व बस्तर के लोगों की सेवा कर सके।
खौफ में जीते थे जंगल की जिंदगी, अब जी रहे हैं अपनी जिंदगी
एक अन्य समर्पित नक्सली सोनू व पत्नी गोदी का कहना है कि जंगल की जिंदगी नर्क से कम नहीं थी, हर समय खौफ के साए में जीना पड़ता था। दोनों ने सन 2008 में शादी की, जिसके बाद उनका नसबंदी करा दी गई। एरिया कमेटी मेंबर के पद पर कार्यरत रहते हुए दोनों ने वर्ष 2013 में समर्पण कर दिया। वर्तमान में दोनों का एक बेटा है, जिसे वे निजी स्कूल में पढ़ा रहे हैं।
नर्क की जिंदगी से मिली मुक्ति
समर्पण करने वाले एक अन्य नक्सली सोनू उर्फ सोनसाय ने सामो कोर्राम के साथ वर्ष 2010 में विवाह व नसबंदी की थी। इसके बाद वर्ष 2016 में समर्पण कर दिया। सोनू जहां सेक्सन कमाण्डर के पद पर था तो सामो प्लाटून मेंबर थी। दोनों का कहना है कि जंगल की जिंदगी नर्क से कम नहीं थी, जिससे उन्हे अब मुक्ति मिल चुकी है।
गुरुकुल पर पढ़ रही बेटी
लच्छिन पोयाम संगठन में रहने के दौरान डिप्टी कमाण्डर के पद पर कार्यरत था। संगठन में रहने के दौरान एसीएम चमरी से उसकी मुलाकात हुई और दोनों ने अपने कमाण्डर से परमिशन लेकर वर्ष 2007 में शादी कर ली। इसके एक वर्ष के बाद उनकी नसबंदी करा दी गई। इसके बाद वर्ष 2015 में उन्होंने बारी बारी से समर्पण कर दिया और नसबंदी खुलवाने के बाद वर्ष 2019 में उनकी एक बेटी हुई, जिसे गुरुकुल में पढ़ा रहे हैं।
10 वर्ष में 26 ने समर्पण के बाद नसबंदी हटाने कराया आपरेशन
बस्तर संभाग के पांच जिले बीजापुर, नारायणपुर, कांकेर, दंतेवाड़ा व सुकमा में पिछले एक दशक की बात करें तो 26 समर्पित नक्सलियों ने नसबंदी हटाने अपना आपरेशन करवाया। इनमें बीजापुर जिले में 4, नारायणपुर में 3, दंतेवाड़ा में 3, कांकेर में 7, व सुकमा जिले में 9 शामिल है। वर्तमान में आपरेशन के बाद इन नक्सलियों के दर्जन भर बेटी व बेटे हैं, जिन्हें वह बेहतर परवरिश के साथ शिक्षित करने प्रयासरत है। इनमें सुभाष उर्फधनीराम मंडावी, सोनू कोरसा, पाण्डू उर्फजगत लेकाम, श्यामलाल, लच्छीन पोयाम, मिलाप उर्फनीलाप, सोनू उर्फ सोनसाय, चमरू उर्फ रामसिंग सलाम, दिनेश कड़ती व जीतू सवलम उर्फझितरू शामिल है।
बनाएंगे पुलिस अफसर
समर्पण के बाद मुख्यधारा में शामिल होने व नसबंदी खुलवाकर बच्चों की पैदाइश के बाद अब खुले आसमान के नीचे शान से अपनी जिदगी बसर कर रहे हैं। ऐसे ही नक्सलियों में शामिल चमरू उर्फ रामसिंग व उनकी पत्नी मुकेश्वरी ने बताया कि संगठन में रहते हुए वर्ष 2015 में जंगल में रहते हुए शादी की, लेकिन बच्चे की चाह ने उन्होंने वर्ष 2016 में एक साथ समर्पण कर दिया। इसके बाद वर्ष 2020 में एक बेटी हुई, जिसे अच्छी तालीम देने पढ़ रहे है और उसे पुलिस अफसर बनाने की उनकी ख्वाहिश है।
बेहतर जिंदगी देने सरकार संकल्पित
बस्तर आईजी सुंदरराज पी ने बताया कि, सरकार की मंशानुरूप हम समर्पित नक्सलियों को शासन की पुनर्वास व समर्पण नीति का लाभ दे रहे है। इन नक्सलियों को मुख्यधारा में शामिल करने के बाद बेहतर जिंदगी देने सरकार संकल्पित है। यही वजह है कि समर्पण करने वाले नक्सलियों में लगातार इजाफा हो रहा है और उन्हे हर संभव मदद व योजनाओं का लाभ दिया जा रहा है।