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1984 में बसपा के संस्थापक कांशीराम अपना चुनाव प्रचार करने साइकिल रैली से लेकर छोटी- छोटी सभाओं को संबोधित करते थे।

बिलासपुर। जांजगीर-चांपा लोकसभा क्षेत्र से 1984 में बसपा के संस्थापक कांशीराम उत्तर प्रदेश से यहां आकर निर्दलीय चुनाव लड़े थे। हालांकि इस चुनाव में उन्हें महज 32 हजार 135 वोट मिले और उनका वोट प्रतिशत 8.81 रहा। बसपा की स्थापना इसी दौर में हुई थी, मगर पार्टी को चुनाव आयोग से मान्यता नहीं मिली थी इसलिए उन्हें निर्दलीय चुनाव लड़ना पड़ा। कांशीराम अपना चुनाव प्रचार करने साइकिल रैली से लेकर छोटी- छोटी सभाओं को संबोधित करते थे। इस दौरान उनके साथ बसपा की मायावती भी होती थीं।

इस चुनाव के बाद से जिले में बहुजन आंदोलन की जड़ें मजबूत हुई। 'वोट हमारा, राज तुम्हारा नहीं चलेगा' और 'अब न पचासी धोखा खाओ, देश में अपना शासन लाओ', 'एक वोट और एक नोट' जैसे नारे खूब चले। इससे आने वाले समय में पामगढ़ व जैजैपुर विधानसभा में बसपा के उम्मीदवार जीतते रहे। हालांकि इस बार के विधानसभा चुनाव में बसपा को एक भी सीट नहीं मिली और उसके वोट कांग्रेस की ओर चले गए।

kashiram
 

पांच बार जीतीं महिला उम्मीदवार

जांजगीर चांपा लोकसभा से अब तक पांच बार महिला उम्मीदवार जीतकर संसद पहुंची हैं। इनमें दो बार मिनीमाता, एक बार करूणा शुक्ला और दो बार कमला देवी पाटले चुनाव जीती हैं। यह सीट प्रदेश की हाईप्रोफाइल सीटों में है। यहां भाजपा से दिलीप सिंह जूदेव जैसे दिग्गज नेता दो बार चुनाव लड़ चुके हैं। अविभाजित मध्य प्रदेश के कांग्रेस अध्यक्ष और सहकारिता पुरुष के नाम से विख्यात पंडित रामगोपाल तिवारी भी यहां से सांसद रहे हैं। वहीं 2004 में पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की भतीजी करूणा शुक्ला भी यहां से चुनाव लड़कर जीत चुकी हैं।

 Dilip Singh Judev
Dilip Singh Judev 

जूदेव को मिली हार-जीत दोनों

भाजपा के दिलीप सिंह जूदेव को इस लोक सभा हार-जीत दोनों क्षेत्र में जीत और हार दोनों का सामना करना पड़ा। वर्ष 1989 के चुनाव में दिलीप सिंह जूदेव ने कांग्रेस के प्रभात मिश्रा को पराजित किया था। जूदेव ने कांग्रेस उम्मीदवार को 98 हजार 893 वोटों से पराजित किया था। नगर 1991 के मध्यावधि चुनाव में उन्हें हार का सामना करना पड़ा। इस चुनाव में कांग्रेस के भवानी लाल वर्मा ने दिलीप सिंह जूदेव को 29 हजार 425 वोट से हराया। पहला चुनाव जीतने के बाद जूदेव का क्षेत्र में दौरा कम होता था। इसलिए उन्हें जनता की नाराजगी झेलनी पड़ी और वह दूसरा चुनाव हार गए। जबकि पहले चुनाव में युवा मतदाता उनका रक्त तिलक लगाकर जगह-जगह स्वागत करते थे। इतना ही नहीं दिलीप सिंह जूदेव की तरह मूंछ रखना उन दिनों क्रेज हो गया था।

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