दामिनी बंजारे - रायपुर। रायपुर के शंकर गोड़ की उम्र उस वक्त 25 साल थी। जवानी का जोश था। आदतें भी खराब। जोश में हत्या हो गई। सजा हुई। 15 साल 8 महीने 19 दिन की सजा काटी। जेल में रहते हुए अहसास हुआ कि करनी का फल भुगतना ही होता है। सो सब छोड़ आध्यात्म में लीन हो गए और खुद को ईश्वर के हवाले कर दिया। निकल पड़े साइकिल लेकर 12 ज्योतिर्लिंग की यात्रा के बाद रविवार को 8 महीने और 5 दिन की साइकिल यात्रा के बाद रायपुर लौटें हैं जहां पूरे लक्ष्मण नगर के लोगों ने गाजे-बाजे के साथ स्वागत किया। 12 ज्योतिर्लिंग के दर्शन कर लौटने के बाद उनकी मां संगीत धूव (गोड़) की आंखों में खुशी के आंसू थे। मां कहती है-जब बेटे ने मर्डर किया, तब मैं गुस्सा थी। लेकिन अब उसे अध्यात्म की राह पर चलता देख गर्व होता है।
जंगलों के रास्ते से होकर गुजरे, गूगल मैप की मदद ली
शंकर गोड़ ने अपनी 12 ज्योतिर्लिंग की यात्रा के दौरान एक बुक मेंटेन की है. जिसमें उन्होंने अपनी हर दिन की यात्रा और पूरे मैप का जिक्र किया है. वे कहते है रोजाना करीब 100 किलोमीटर की यात्रा करते थे। सुबह 6 बजे से दोपहर 12 बजे तक और फिर 3-4 घंटे आराम करने के बाद और 3 घंटे वे पुनः साइकिल चलाते और फिर रात में जहां भी मंदिर मिलता वहां आराम कर लेते थे।
ये था उनका रूट मैप
शंकर कहते है कि रायपुर से वे सबसे पहले उज्जैन में महाकाल के दर्शन करने पहुंचे। इसके बाद ओमकारेश्वर, घृष्णेश्वर, फिर भीमाशंकर इसके बाद नासिक के त्रयंबकेश्वर, सोमनाथ, नागेश्वर होते हुए काशी फिर बैद्यनाथ पहुंचे। इसके बाद वे वैष्णोदेवी के दर्शन करते हुए केदारनाथ, बद्रीनाथ और फिर वहां से सीधे तिरूपति पहुंचे. इसके बाद वे श्रीशैलम और फिर रामेश्वर के बाद विशाखापट्नम होते हुए रविवार को शाम करीब 7 बजे रायपुर पहुंचे।
याद रखिए करनी का फल भुगतना होगा
शंकर का कहना है कि, जीवन में हमेशा याद रखें कि करनी का फल भुगतना पड़ता है। आज नहीं तो कल। संभव है कि कुछ देरी हो जाए लेकिन भुगतना तो पड़ेगा। मेरा कहना है कि नशे से दूर रहिए। बुरी संगत से दूरी बनाकर रखिए। इनका प्रभाव जीवन पर नकारात्मक ही होता है। यह कभी भी आपको गलत रास्ते पर ले जाएंगी और उसका परिणाम भयावह ही होगा। मैंने भुगत लिया है, सबसे कहता हूं और सबको चेताता हूं कि आप उस रास्ते पर मत चलिए। शंकर बताते है कि जब वे रायपुर के सेंट्रल जेल में सजा काट रहे थे तभी 21 नवंबर 2016 को जेल के अंदर ही मर्डर हुआ. ये मर्डर बेदू साहू नाम के सजा याफता कैदी का हुआ था और मर्डर भी कैदी नरेंद्र उर्फ राजेंद्र साहू ने किया. इसके बाद रायपुर जेल से करीब 190 लोगों को अलग-अलग जेलों में शिफ्ट किया गया था, जिसमें उन्हें जगदलपुर जेल भेज दिया गया था. अब जेल से छुटने के बाद शंकर भक्तिभाव में लीन और उन्हें उनकी मां ने ये वचन दिलाया है कि वे अब जीवन में कभी किसी भी प्रकार का नशा नहीं करेंगे।
मंदिर निर्माण के विवाद में हो गई थी हत्या
शंकर बताते है कि, 11 अप्रैल 2006 को उन्होंने नशे में अपने ही दोस्त की हत्या कर दी थी। लक्ष्मण नगर में मैसासुर/महिषासुर मंदिर के निर्माण के दौरान पानी को लेकर कुछ विवाद हुआ था, जिसके कारण उन्होंने तैश में आकर इस वारदात को अंजाम दिया और हत्या के बाद वे सीधे थाने में सरेंडर होने पहुंचे। वे 12 अप्रैल 2006 को जेल गए और इसके बाद 3 नवंबर 2021 को जेल से सजा काटकर रिहा हुए. वे बताते है कि जेल से जमानत पर भी कभी घर नहीं आए थे और उसे जेल में उनकी मां लगातार मिलने आया करती थी। रिहा होने के बाद उन्होंने जीवन को सार्थकता प्रदान करने के लिए यात्रा और दर्शन का का रास्ता चुना।