बेमेतरा- छत्तीसगढ़ के बेमेतरा में छत्तीसगढ़ी भाषा, संस्कृति और विकास को लेकर पांच दिवसीय प्रशिक्षण कार्यशाला शुरू हुआ है। जिसमें कुल 100 शिक्षक और शिक्षिकाओं ने भाग लिया है। कार्यक्रम का शुभारंभ संस्थान के प्राचार्य जे.के. घृतलहरे ने मां सरस्वती की पूजा-अर्चना के साथ किया है। इस कार्यशाला को सम्बोधित करते हुए उन्होंने छत्तीसगढ़ी भाषा और संस्कृति को बनाए रखने पर जोर दिया। 

आज की जनरेशन संस्कृति और भाषा को भूल रही है...

प्राचार्य जे.के. घृतलहरे ने कहा कि, आज हम लोग और हमारे बच्चे छत्तीसगढ़ की संस्कृति, भाषा को भूलते जा रहे हैं। उन्हें हमारी संस्कृति के बारे में बताने की आवश्यकता है। कक्षा पहली से लेकर कक्षा बारहवीं तक के बच्चों को संस्कृति का स्मरण करने की आवश्यकता है। संस्कार के अभाव में आज के बच्चे गलत कदम उठा रहे हैं। इसलिए छत्तीसगढ़ की सुंदर संस्कृति और संस्कार ही उन्हें सही मार्ग पर ला सकते हैं। यह कार्य बच्चों के माता-पिता के अलावा सिर्फ शिक्षक ही कर सकते हैं। 

संस्कृति के प्रति जागरूक करना...

जिला नोडल अधिकारी थलज कुमार साहू ने बताया कि, छत्तीसगढ़ी भाषा और संस्कृति हमारी आत्मा है। हमें स्कूली बच्चों को स्थानीय बोल-चाल की भाषा और संस्कृति के प्रति जागरूक करना है। जिसमें छत्तीसगढ़ी बोली, लोक गीत,  लोक कला,  लोक चित्रकला,  लोकनाट्य,  लोक नृत्य,  लोरिक चंदा,  ढोला मारु,  पंडवानी,  नाचा गम्मत,  सुआ गीत,  करमा,  ददरिया,  राऊत आदि के बारे में विस्तार से जानकारी दी है। 

मास्टर शीतल बैस ने क्या कहा...

मास्टर ट्रेनर्स शीतल बैस ने छत्तीसगढ़ की संस्कृति रहन-सहन, वेशभूषा, पहनावा खान-पान, गहना, रुपया, ऐंठी, सुतिया, नागमोरी, बिछिया, करधन,  छत्तीसगढ़ के विविध प्रकार के खेलकूद जैसे डंडा पिच रंगा, सुर, गेड़ी दौड़,  छत्तीसगढ़ के व्यंजन खुरमी, ठेठरी, चीला अईरसा, गुलगुल भजिया, इडहर कढ़ी, फरा, पताल के झोझो, अउ मही बसी, बासी चटनी जिमिकांदा कढ़ी, सोहारी, आदि के बारे बताया है। साथ ही सप्ताह में एक दिन स्कूली छात्रों के बीच गतिविधि कराई जाए, जिससे बच्चों को खुला मंच मिल सके और स्थानीय बोली और संस्कृति को समझ सके। 

छत्तीसगढ़ की माटी की महक के बारे में बताया...

इतिहासकार डॉ, बसुबंधु दीवान ने अपने उद्बोधन में छत्तीसगढ़ की माटी की महक को संरक्षित और संवर्धन करने की दिशा में जोरदार प्रयास करने पर बल दिया। हमें छत्तीसगढ़ी बोलने पर गर्व का अनुभव होना चाहिए। छत्तीसगढ़ी हमारी मातृभाषा है छत्तीसगढ़ी भाषा में वह ताकत है, जो बच्चों के बीच अपनेपन का एहसास कराता है। आज हम सब लोग अपनी छत्तीसगढ़ की सुंदर संस्कृति को भूलते जा रहे हैं। अगर इस संस्कृति को जीवित रखना है हमें बच्चों के बीच ले जाने की अत्यंत आवश्यकता है और यह कार्य हमारे शिक्षक बखूबी कर सकते हैं। 

लोकगीत और लोक कथा के बारे में...

मास्टर ट्रेनर्स ईश्वर लाल साहू ने साहित्य की 5 विधा लोकगीत, लोक कथा और लोक गाथा, इतना ही नहीं लोकनाट्य और लोक सुभाषित के बारे में विस्तार से जानकारी दी। मास्टर ट्रेनर्स गजानंद शर्मा ने छत्तीसगढ़ी भाषा के महत्व और उनको बच्चों से जोड़ने के लिए प्रेरित किया है। अपनी छत्तीसगढ़ी कविता के माध्यम से छत्तीसगढ़ ही भाषा की खुशबू और छत्तीसगढ़ की माटी का वर्णन किया। 

प्रतिभागी इस कार्यशाला में आनंद ले रहे हैं...

मास्टर ट्रेनर शांत कुमार पटेल ने छत्तीसगढ़ के गांवों का नामकरण, चौक चौराहे का, व्यक्ति के नामकरण पर विस्तार से चर्चा की। प्रतिभागी इस कार्यशाला का भरपूर आनंद ले रहे हैं। संस्थान के वरिष्ठ व्याख्याता तुकाराम साहू ने छत्तीसगढ़ी भाषा बोली संस्कृति के विकास और उसकी महत्ता, उपयोगिता को स्कूली बच्चों तक कैसे पहुंचाएं, इस पर अपने विचार रखें। 

कार्यक्रम में ये रहे मौजूद...

इस प्रशिक्षण कार्यशाला को सफल बनाने के लिए जिला नोडल अधिकारी थलज कुमार साहू व्याख्याता डाइट बेमेतरा, मास्टर ट्रेनर्स ईश्वर लाल साहू व्याख्याता परसबोड़, भुवन लाल साहू व्याख्याता लावातारा, गजानंद शर्मा व्याख्याता मटका, शीतल बैस सहायक शिक्षिका मगरघटा, शांत कुमार पटेल सहायक शिक्षक लालपुर का विशेष योगदान रहा। इस कार्यशाला में प्राचार्य जे के घृतलहरे डाइट बेमेतरा, व्याख्याता जी.एल खुटियारे,  राजकुमार वर्मा, जिला प्रशिक्षण नोडल श्री थलज कुमार साहू,  श्रद्धा तिवारी, सुश्री उषा किरण पांडे, कीर्ति घृतलहरे, यमुना जांगड़े अमिंदर भारती, तुकाराम साहू सहित चारों विकासखंड के प्रतिभागी उपस्थित थे।