किसमें कितना है दम : कांग्रेस ने ओबीसी प्रत्याशी पर खेला दांव, मुकाबला हुआ दिलचस्प

अंगेश हिरवानी- नगरी- सिहावा। छत्तीसगढ़ के नगरी नगर पंचायत में भाजपा - कांग्रेस के बीच मुकाबला टक्कर का होता हुआ दिखाई दे रहा है। ओबीसी बहुल नगरी में सिर्फ कांग्रेस ने ही अध्यक्ष पद के अधिकृत प्रत्याशी पेमन स्वर्णबेर को मैदान में उतारा है ऐसे में ओबीसी वर्ग का विश्वास कांग्रेस की तरफ बढ़ता हुआ दिखाई दे रहा है। पेमन पिछले कई अरसे से राजनीति में सक्रिय है वे पूर्व वे ग्राम पंचायत के समय उपसरपंच भी रह चुके हैं।
एक दशक पहले भाजपा- कांग्रेस दोनों प्रमुख पार्टियों ने पिछड़ा वर्ग को साधते हुए एक ही समाज के दो प्रत्याशी को मैदान में उतारा था। उस समय एक निर्दलीय प्रत्याशी ने विजय का परचम लहराया। जो ओबीसी वर्ग का ही था लेकिन इस बार की स्थिति ऐसी नहीं है। नगर पंचायत नगरी में भाजपा ने सामान्य वर्ग से प्रत्याशी तो, वहीं कांग्रेस ने यहां से पिछड़ा वर्ग के प्रत्याशी को मैदान में उतारा है।
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अनारक्षित मुक्त हुआ नगरी
नगरी नगर पंचायत में काफी चर्चा थी कि, यहां अध्यक्ष पद के लिए ओबीसी वर्ग को मौका मिलेगा लेकिन आरक्षण के कारण निराशा ही हाथ लगी। यहां अध्यक्ष का पद अनारक्षित मुक्त हो गया। इसी से नाराज पिछड़ा वर्ग के लोगों ने प्रदर्शन भी किया था लेकिन कोई रास्ता नहीं निकल सका। साथ ही इसके उलट ओबीसी वर्ग का आरक्षण खत्म हो गया। जिससे समाज में शासन के खिलाफ आक्रोश भी देखा गया।
कांग्रेस ने ओबीसी समाज से बनाया प्रत्याशी
माहौल को भांपते हुए बीजेपी के बड़े नेताओं को यह कहना पड़ा कि, जहां जहां अनारक्षित मुक्त हुआ है वहां हम ओबीसी वर्ग के लोगों को टिकट देकर वहां प्रतिनिधित्व देंगे। लेकिन असल में ऐसा कुछ नहीं दिखाई दिया। कांग्रेस पार्टी ने समाज की मांग को देखते हुए ओबीसी वर्ग के साहू समाज से प्रत्याशी का चयन किया। जिससे कांग्रेस पार्टी के प्रति ओबीसी समाज का विश्वास बढ़ा है।
अध्यक्ष पद में आरक्षण नहीं मिलने से ओबीसी में आक्रोश
ओबीसी समाज अपने वर्ग के प्रत्याशी के समर्थन में एकजुट होकर जीत दिलाएंगे या सिर्फ एक गीदड़ भभकी तक ही सीमित रह जायेगा। इस बार सफल नहीं हुए तो भविष्य में शायद ही ओबीसी अध्यक्ष बने। वहीं कुछ विश्लेषकों का मानना है कि, यह चुनाव ओबीसी समाज के लिए अहम है क्योंकि ओबीसी समाज ने चुनाव से कुछ समय पहले ही अपनी मांगों के लिए शक्ति प्रदर्शन किए हैं। जिनमें उनकी बात नहीं सुने जाने के कारण आक्रोश है।
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