रायपुर। सर्दियों का मौसम आते ही शक्ल बिगाड़ने वाले गलसुआ (मम्प्स) वायरल की शिकायत राजधानी में बढ़ने लगी है। बच्चों के साथ बड़े भी इसका शिकार होने लगे हैं। यह वायरल संक्रमण लारग्रंथि को प्रभावित करता है और गले से जबड़े के बीच का हिस्सा सूज जाता है। चिंताजनक बात यह है कि बच्चों को लगाए जाने वाले एमआर टीके में इसकी रोकथाम की ताकत नहीं है। चिकित्सकों के अनुसार गलसुआ नामक यह बीमारी आमतौर पर ठंड और बसंत के मौसम में लोगों को अपना शिकार बनाती है। इसके प्रभाव से पेरोटिड ग्रंथियों में संक्रमण फैलने लगता है। इससे गालों और गर्दन के बीच तेज दर्द होता है और कई बार यह पेट दर्द का कारण बन जाता है

आमतौर पर यह संक्रमण सप्ताहभर लोगों को प्रभावित करता है और गंभीर बात यह होती है कि इसका विस्तार एक से दूसरे शख्स तक हो जाता है। पिछले कुछ समय से इस संबंध में शिकायत लेकर मरीज इलाज के लिए उन तक पहुंच रहे हैं। संक्रमण बहुत ज्यादा गंभीर नहीं होता, मगर दर्द की वजह से लक्षण के आधार पर इसकी दवा दी जाती है। चिकित्सकों के अनुसार आमतौर पर छोटे बच्चे इसका इसका शिकार होते हैं। गलसुआ की रोकथाम के लिए मीजल्स-रुबेला के साथ एमएमआर की वैक्सीन लगाई जाती है, मगर यह सुविधा निजी अस्पतालों तक सीमित है। सरकारी अस्पतालों में जो टीका लगाया जाता है, वह एमआर होता है, जो मीजल्स-रुबेला की रोकथाम में कारगर होता है।

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सरकारी सुविधा जरूरी

चिकित्सकों के मुताबिक, एमएमआर टीके की सुविधा सरकारी सेक्टर में दिया जाना आवश्यक है। सरकारी हेल्थ सेंटरों के माध्यम से इस संक्रमण से लड़ने की क्षमता वैक्सीन के जरिए 60 से 80 फीसदी बच्चों में विकसित हो जाएगी। निजी अस्पतालों के माध्यम से इसकी सुविधा 20 से 30 प्रतिशत बच्चों को ही मिल पाती है।

तीन-चार मरीज पहुंचे

आंबेडकर अस्पताल के सीएमओ डॉ. विनय वर्मा ने बताया कि, पिछले कुछ दिनों में मम्प्स की शिकायत लेकर उनके पास तीन-चार मरीज पहुंचे हैं। आमतौर पर यह गले में दर्द का कारण बनता है, मगर कई बार यह पेट और यूरिन सिस्टम को भी प्रभावित करता है। मम्प्स की कोई अलग से दवा नहीं है, इसलिए लक्षण आधारित इलाज किया जाता है। आमतौर यह संक्रमण ज्यादा खतरनाक नहीं होता।

बच्चों में ज्यादा शिकायत

शिशुरोग विशेषज्ञ डॉ. निलय मोझरकर ने बताया कि, आमतौर पर बच्चों में इसकी शिकायत अधिक होती है। आमतौर पर सप्ताहभर के भीतर यह ठीक हो जाता है। गले-गर्दन में सूजन के साथ कई बार यह बुखार, सिर दर्द, भूख न लगना, चबाने और निगलने में दिक्कतें भी पैदा करता है। बच्चों में इस तरह की शिकायत लेकर माता-पिता अस्पताल तक आ रहे हैं।