CAG Report: दिल्ली में भाजपा सरकार का गठन होते ही लंबे समय से पेंडिंग पड़ी CAG की 14 रिपोर्ट्स एक-एक कर सामने आने लगी हैं। सबसे पहले शराब नीति घोटाला मामले की रिपोर्ट सदन के पटल पर रखी गई। इसके बाद एक-एक कर सभी सीएजी रिपोर्ट सदन के पटल पर रखी जाएंगी और उन पर चर्चा की जाएगी। वहीं अब स्वास्थ्य विभाग को लेकर भी सीएजी रिपोर्ट का खुलासा हो गया। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, CAG की रिपोर्ट से पब्लिक हेल्थ इन्फ्रास्ट्रक्चर और स्वास्थ्य सेवाओं के प्रबंधन की खामियों का भी खुलासा हुआ है।
सरकारी अस्पतालों का खस्ताहाल
बता दें कि स्वास्थ्य विभाग की सीएजी रिपोर्ट में दिल्ली के सरकारी अस्पतालों का खस्ता हाल और लचर प्रबंधन का भी खुलासा हुआ है। इस रिपोर्ट ने कथित दिल्ली के वर्ल्ड क्लास स्वास्थ्य सेवाएं मुहैया कराने के दावों पर भी सवाल खड़ा किया है। जानकारी के अनुसार, हर साल सरकारी अस्पतालों में मरीजों को दी जाने वाली जरूरी दवाओं की लिस्ट तैयार करना जरूरी है लेकिन पिछले 10 सालों में केवल तीन बार ही रिपोर्ट तैयार की गई।
इन रिपोर्ट्स में पाया गया कि दिल्ली सरकार के अस्पतालों में जरूरी दवाएं और उपकरण मुहैया कराने के लिए सेंट्रल प्रोक्योरमेंट एजेंसी (CPA) को जिम्मेदारी दी गई थी लेकिन CPA इसमें नाकाम रही। इस कारण 2016-17 से 2021-22 के बीच दिल्ली के अस्पतालों को 33 से 47 फीसदी दवाएं खुद सीधे सप्लायरों से खरीदनी पड़ीं। इतना ही नहीं रोजमर्रा की दवाइयों की पूर्ति के लिए कई अस्पतालों को लोकल केमिस्टों से दवाइयां खरीदनी पड़ीं। रैबीज और हीमोफीलिया जैसी दुर्लभ/जानलेवा बीमारियों के इंजेक्शन भी अस्पतालों में शॉर्ट पाए गए।
मोहल्ला क्लीनिकों में भी गड़बड़ियों का खुलासा
सीएजी रिपोर्ट में मोहल्ला क्लीनिकों को लेकर भी खुलासा हुआ है। मोहल्ला क्लीनिक में कई तरह की गड़बड़ियां पाई गईं। साल 2016 से 2023 के बीच मोहल्ला क्लीनिक को बनाने के लिए 35.16 करोड़ रुपये खर्च करने के लिए रखे गए थे लेकिन इनमें से केवल 28 फीसदी रकम ही मोहल्ला क्लीनिकों के लिए खर्च की गई, जो मात्र 9.78 करोड़ रुपए रहा। 31 मार्च 2023 तक दिल्ली में 1000 मोहल्ला क्लीनिक खोलने का लक्ष्य रखा गया था लेकिन केवल 523 मोहल्ला क्लीनिक ही खुल सके। सीएजी रिपोर्ट में पाया गया कि दिल्ली के चार जिलों में 218 में से 41 मोहल्ला क्लीनिकों में डॉक्टरों की कमी और स्टाफ के छुट्टी पर होने के कारण महीने में 15 में से 23 दिन बंद रहे। इसके अलावा मोहल्ला क्लीनिकों में बुनियादी सुविधाओं और उपकरणों के साथ ही दवाइयों की भी कमी पाई गई।
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अस्पतालों के इंफ्रास्ट्रक्चर का काम रहा सुस्त
वहीं सीएजी रिपोर्ट में ये भी खुलासा हुआ कि अस्पतालों में इन्फ्रास्ट्रक्चर को मजबूत बनाने का काम भी काफी सुस्त तरीके से चला। वित्त वर्ष 2016-17 के बजट के समय दी गई स्पीच में प्रस्ताव रखा गया था कि सरकारी अस्पतालों में 10 हजार बेड जोड़े जाएंगे लेकिन 2016-17 से लेकर 2020-21 तक मात्र 1357 बेड ही जोड़े गए। जून 2007 से दिसंबर 2025 के बीच स्वास्थ्य विभाग ने नए अस्पताल और डिस्पेंसरी बनाने के लिए लगभग 648 करोड़ रुपए में 15 प्लॉट लिए। हालांकि पजेशन लेने के बाद भी उन प्लॉट्स का इस्तेमाल नहीं किया जा सका।
वहीं जब अस्पतालों की ऑडिट की गई, तो पता चला कि निर्माणाधीन 8 नए अस्पतालों में से केवल 3 का ही काम पूरा हो सका है। वो भी तब जब इन अस्पतालों का निर्माण कार्य पहले से ही 6 साल देरी से चल रहा है। सबसे बड़ी बात ये है कि दिल्ली के इन 8 अस्पतालों को बनाने के लिए पर्याप्त फंड मौजूद था और इसके बावजूद अस्पतालों के निर्माण कार्य में देरी हुई।
सीएजी रिपोर्ट में दिल्ली के अस्पतालों में पाई गईं ये खामियां
- सीएजी ऑडिट के तहत पाया गया कि दिल्ली सरकार के स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग में मार्च 2022 तक 28 अस्पतालों/मेडिकल कॉलेजों में ओवरऑल स्टाफ की संख्या, तय मानकों से 21 फीसदी कम थी।
- अस्पतालों में 30 फीसदी टीचिंग स्टाफ की कमी थी और 28 फीसदी नॉन टीचिंग स्टाफ की कमी थी। वहीं दिल्ली के अस्पतालों में 9 फीसदी मेडिकल ऑफिसर्स की भी कमी थी। इसके अलावा 38 फीसदी पैरामेडिकल स्टाफ, 21 फीसदी नर्स और नेशनल हेल्थ मिशन के तहत योजनाएं लागू करने वाले 36 फीसदी स्टाफ की कमी थी।
- LNJP अस्पताल के सर्जरी विभाग में बड़ी सर्जरी के लिए इंतजार करने वालों का औसत वेटिंग टाइम दो से तीन महीने पाया गया। वहीं बर्न एंड प्लास्टिक सर्जरी विभाग में 6 से 8 महीनों का वेटिंग टाइम रहा।
- वहीं 12 में से 6 राजीव गांधी सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल और जनकपुरी सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल के सभी 7 मॉड्यूलर ऑपरेशन थिएटर स्टाफ की कमी के कारण खाली पड़े, धूल खाते रहे।
- LNJP अस्पताल के मेडिसिन और गाइनी डिपार्टमेंट में डॉक्टर के साथ मरीज का औसत कंसल्टेशन टाइम केवल 5 मिनट पाया गया।
- लोकनायक अस्पताल और राजीव गांधी सुपर स्पेशलिटी अस्पताल के ICU वार्ड और इमरजेंसी वार्ड में उपकरणों की कमी और दवाइयों की कमी पाई गई।
- LNJP के 24 घंटे आपातकालीन सेवाओं के लिए ट्रॉमा सेंटर तक में स्पेशलिस्ट डॉक्टर और सीनियर रेजिडेंट डॉक्टरों का स्थाई इंतजाम नहीं रहा।
- रेप विक्टिम के लिए बनाए गए वन स्टॉप सेंटर में भी कोई स्थाई स्टाफ नहीं था।
- कैट्स एंबुलेंस के बेड़े में शामिल कई ऐसी एंबुलेंस पाई गईं, जो बिना जरूरी उपकरणों और साधनों के चल रही थीं।
- LNJP अस्पताल में मरीजों को रेडियोलॉजिकल डायग्नोस्टिक सेवाओं के लिए भी लंबा इंतजार करना पड़ रहा है। वहीं अन्य बड़े अस्पतालों में स्टाफ की कमी के कारण उपकरणों का सही इस्तेमाल नहीं हो पा रहा।
- दिल्ली के बड़े सरकारी अस्पतालों में मरीजों और स्टाफ की सुविधा के लिए एटॉमिक एनर्जी रेगुलेटरी बोर्ड की गाइडलाइंस का सही से पालन नहीं किया जा रहा।
- वहीं जनकपुरी और राजीव गांधी सुपर स्पेशलिटी अस्पताल में डायटीशियन भी नहीं हैं, जिसके कारण वहां मिलने वाले खाने की क्वालिटी तक चेक नहीं की जा रही है।
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