Delhi Health Report: दिल्ली में सांस की बीमारियों से होने वाली मौतों में पिछले 18 सालों में लगातार बढ़ोत्तरी हुई है। एक रिपोर्ट के मुताबिक साल 2023 में 8,801 मौतें सिर्फ सांस के रोगों की वजह से हुईं, जो कुल मौतों का 9.93 फीसदी संख्या है। साल 2005 में यह आंकड़ा 4.91 फीसदी था, जिसमें अब तक लगभग दोगुनी बढ़ोत्तरी हो चुकी है। इनमें से 3,606 मौतें निमोनिया से हुईं, 13 मौतें तीव्र ब्रोंकाइटिस और ब्रोंकियोलाइटिस से, जबकि 254 मौतें अस्थमा से हुईं थी।
महामारी के दौरान बढ़ी सांस की बीमारियों से मौतें
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, इन बीमारियों में सांस लेने में संक्रमण, ब्रोंकाइटिस और तीव्र ब्रोंकाइटिस, अस्थमा, इन्फ्लुएंजा, निमोनिया आदि शामिल हैं। डॉक्टरों का कहना है कि ये मौतें बढ़ते प्रदूषण, एंटीबायोटिक प्रतिरोध और संक्रमणों की बढ़ती संख्या के परिणाम के तौर पर हैं। मेडिकल सर्टिफिकेशन ऑफ कॉज ऑफ डेथ (MCCD) की रिपोर्ट 2023 के मुताबिक पिछले साल कुल मौतों में से 5,236 पुरुषों की और 3,563 महिलाओं की मौतें हुईं और दो अज्ञात रहीं। इसके साथ ही 8,801 मौतों में से 3,606 निमोनिया के कारण, 13 तीव्र ब्रोंकाइटिस के कारण और 254 मौतें अस्थमा के कारण हुईं।
डॉक्टरों ने दी ये चेतावनी
एम्स के पल्मोनोलॉजी विभाग के प्रमुख डॉ. अनंत मोहन के मुताबिक, सांस की बीमारियों से हो रही मौतों का यह आंकड़ा एक चेतावनी है कि हमें सांस लेने की परेशानी को गंभीरता से लेना चाहिए। उन्होंने कहा कि बढ़ते प्रदूषण की वजह से सांस की बीमारियों की गंभीरता बढ़ रही है, और इसके लिए अधिक संसाधनों की जरूरत है। इंड्रप्रस्थ अपोलो अस्पताल के वरिष्ठ सलाहकार डॉ. राजेश चावला ने बताया कि आबादी के साथ-साथ प्रदूषण का स्तर भी खतरनाक स्थिति में पहुंच चुका है, जिससे संक्रमण बढ़ रहे हैं और श्वसन रोगों का खतरा बढ़ रहा है।
एंटीबायोटिक रेजिस्टेंस भी बन रहा है बड़ी समस्या
डॉ. चावला के अनुसार, एंटीबायोटिक रेजिस्टेंस भी एक प्रमुख मुद्दा है, जो वायरल संक्रमण और इंटरस्टिशल फेफड़े के रोगों के बढ़ते मामलों से जुड़ा है। इन बीमारियों के बढ़ते मामलों के कारण सांस लेने की बीमारियों से मौत का खतरा अधिक हो गया है। वहीं, डॉ. निखिल मोदी, वरिष्ठ सलाहकार, अपोलो अस्पताल, ने कहा कि प्रदूषण पर नियंत्रण नहीं लगाया गया तो सांस लेने की बीमारी के मामले और बढ़ेंगे। सीओपीडी, फेफड़ों का कैंसर और गंभीर निमोनिया जैसे रोग प्रदूषण की वजह से बढ़ रहे हैं। उन्होंने बताया कि पहले सीओपीडी को केवल धूम्रपान से जोड़ा जाता था, लेकिन अब प्रदूषण भी इसका कारण बन रहा है।
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