Delhi High Court News: दिल्ली हाईकोर्ट ने मंगलवार को एक जनहित याचिका (PIL) खारिज कर दी, जिसमें दिल्ली नगर निगम (MCD) के एक निर्वाचित पार्षद ने दिल्ली सरकार द्वारा MCD पार्षदों के लिए आवंटित फंड को बढ़ाकर कम से कम 15 करोड़ रुपये करने का निर्देश देने की मांग की थी।

MCD हाउस में मुद्दा उठाने की सलाह

मुख्य न्यायाधीश मनमोहन और न्यायमूर्ति तुषार राव गेदेला की खंडपीठ ने याचिका पर सुनवाई करते हुए इस मामले पर हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया। कोर्ट ने याचिकाकर्ता को सलाह दी कि वे इस मुद्दे को MCD हाउस में उठाएं। कोर्ट ने टिप्पणी की, "हम खुद दिल्ली हाईकोर्ट के लिए ही फंड जुटाने में संघर्ष कर रहे हैं, तो आपके फंड कैसे बढ़ाने के निर्देश दे सकते हैं?"

बुनियादी सेवाओं में हो रही कमी का दिया हवाला

याचिकाकर्ता ने अदालत में दलील दी कि अपर्याप्त फंडिंग के कारण पार्षदों के लिए जरूरी सेवाएं जैसे पार्क, स्कूल, डिस्पेंसरी, सड़कें, और सामुदायिक केंद्रों का रखरखाव प्रभावित हो रहा है, जिसका दिल्ली के नागरिकों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है। याचिका में कहा गया कि पानी की कमी से पार्कों की स्थिति खराब हो रही है, जिससे बुजुर्गों की सुरक्षा और हरियाली प्रभावित हो रही है।

MCD के स्कूलों और स्वास्थ्य सेवाओं पर भी असर

याचिका में यह भी बताया गया कि MCD द्वारा संचालित स्कूलों का बुनियादी ढांचा कमजोर है, जिससे बच्चों के शिक्षा के अधिकार का उल्लंघन हो रहा है। साथ ही, डिस्पेंसरी, आउटडोर जिम और सामुदायिक केंद्र जैसी जरूरी सेवाओं की हालत दयनीय है, जिससे नागरिकों को स्वास्थ्य और सामाजिक सेवाओं से वंचित होना पड़ रहा है।

फंड आवंटन में असमानता का मुद्दा आया सामने

याचिकाकर्ता वकील शलभ गुप्ता ने आगे बताया कि धन के आवंटन में असमानता है, क्योंकि विधायकों को अपने कर्तव्यों का निर्वहन करने के लिए अधिक धनराशि मिलती है। वहीं याचिका में यह भी कहा गया है कि विधायकों को सालाना 15 करोड़ रुपये मिलते हैं, MCD पार्षदों को सालाना केवल 1 करोड़ रुपये आवंटित किए जाते हैं, जो दशकों से बदला नहीं है। यह धन असमानता और स्थानीय शासन के कामकाज को कमजोर करती है। कई अपील के बावजूद, अधिकारियों ने MCD पार्षदों के लिए फंड नहीं बढ़ाया है।

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