Delhi Lotus Temple History: भारत की राजधानी दिल्ली में कई ऐसे धार्मिक स्थान हैं, जिसकी अपनी अलग-अलग मान्यता और इतिहास है। उनमें से एक है दिल्ली के नेहरू प्लेस के पास स्थित लोटस टेम्पल। जी हां यह टेम्पल दिल्ली का एक मुख्य आकर्षण का केंद्र है। इस टेम्पल में रोजाना हजारों की संख्या में लोग आते हैं और अपने मन को शांति के लिए कुछ देर बैठते हैं।

इस टेम्पल की खास बात यह है कि यह टेम्पल न तो हिंदू, सिख, मुस्लिम, जैन, बौद्ध और न ही यहूदियों या ईसाइयों का मंदिर है। बल्कि यह बहाई धर्म का मंदिर है। बहाई धर्म में मूर्ति पूजा की परंपरा नहीं है।

Delhi Lotus Temple History

तो आज इस खबर में दिल्ली के लोटस टेम्पल के बारे में विस्तार से जानेंगे जैसे- इस टेम्पल का निर्माण किसने करवाया, कब करवाया गया, इसकी वास्तुकला की खासियत क्या है, इस टेम्पल को बनवाने में कितना का लागत आया होगा इत्यादि।

किसने बनवाया था लोटस टेम्पल

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माना जाता है कि दिल्ली के लोटस टेम्पल का निर्माण बहाई समुदाय के लोगों ने ही करवाया था। बहाई समाज के लोगों का कहना है कि सभी के ईश्वर एक है। इसलिए इस मंदिर में सभी धर्म के लोगों को जाने की इजाजत दी गई है।

कब हुआ था लोटस टेम्पल का उद्घाटन

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दिल्ली के कमल मंदिर यानी लोटस टेम्पल का उद्घाटन 24 दिसंबर 1986 में किया गया था, लेकिन आम जनता के लिए कुछ दिनों तक बंद रहा। बता दें कि आम जनता के लिए लोटस टेम्पल 1 जनवरी 1987 ई. को पूर्ण रूप से खोल दिया गया। कहा जाता है कि इस मंदिर में लोग शांति और सुकून की तलाश में आते हैं। यहां आने के बाद लोग शांति का अनुभव एहसास करते हैं।

क्या है मंदिर का वास्तुकला और लागत

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दिल्ली के लोटस टेम्पल की वास्तुकला ईरानी बहाई आर्किटेक्ट फरीबर्ज सहबा ने बनाया था। उन्होंने कमल के आकार में इस मंदिर का डिजाइन किया था। बता दें कि इस मंदिर को बनाने में करीब उस टाइम में 10 मिलियन डॉलर से भी अधिक की लागत लगी थी।

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लोटस टेम्पल में नौ अंक का बहुत ही अधिक महत्व दिया गया है। लोगों का मानना है कि नौ सबसे बड़ा अंक है। नौ अंक को एकता और अखंडता का एक प्रतीक माना जाता है। इसलिए इस मंदिर में नौ द्वार और नौ कोने हैं। मंदिर के चारों ओर नौ बड़े तालाब है। इस मंदिर में कमल के फूल की तीन क्रम में नौ-नौ कर कुल 27 पंखुड़ियां हैं।

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