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Delhi History: आप के राष्ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल को चिढ़ाने के लिए उनके विरोधियों ने सरजी की उपाधि दे रखी है, लेकिन दिल्ली के असली सरजी की कहानी जानेंगे तो सलाम किए बिना नहीं रह पाएंगे।

Delhi History: अगर आप गुगल पर दिल्ली सरजी शब्द को सर्च करेंगे तो अरविंद केजरीवाल से जुड़ी खबरें सामने आ जाएंगी। इनमें से ज्यादातर खबरें केजरीवाल पर तंज कसने वालों की होगी। दरअसल, अरविंद केजरीवाल को सरजी की उपाधि उनके विरोधियों ने तंज कसने के लिए दे रखी है। लेकिन, आज हम इन खबरों से इतर एक ऐसे रियल 'सरजी' की कहानी बताने जा रहे हैं, जिनका नाम दिल्ली से लेकर लाहौर तक आज भी अदब से लिया जाता है। तो चलिये देर किए बिना बताते हैं कि इस रियल सरजी के बारे में...

दिल्ली के असली 'सरजी' कौन

दिल्ली के रियल सरजी का पूरा नाम सर गंगाराम है। उनका जन्म 1851 में पाकिस्तान के लाहौर से 65 किलोमीटर दूर मंगवाला गांव में हुआ था। गंगाराम के पिता दौलत राम मूल रूप से उत्तर प्रदेश के रहने वाले थे, लेकिन जूनियर इंस्पेक्टर की नौकरी के चलते लाहौर जाना पड़ा था। कुछ समय बाद यह परिवार पंजाब के अमृतसर आ गए। यहां पर गंगाराम ने सरकारी स्कूल से पढ़ाई शुरू की। दसवीं पास करने के बाद गंगाराम ने नौकरी करने का फैसला किया, लेकिन यहां पर एक शख्स ने ऐसा तंज कस दिया, जिसके चलते गंगाराम ने नौकरी करने की बजाय पढ़ाई जारी करने का फैसला ले लिया।

सर गंगाराम पर किसने और क्या तंज कसा

गंगाराम नौकरी करने के लिए अपने रिश्तेदार के पास गए, जहां वो उनकी कुर्सी पर बैठ गए थे। वहां मौजूद एक शख्स ने उन पर तंज कसते कुर्सी से उठा दिया। कहा कि तुम इंजीनियर नहीं हो, जो इस कुर्सी पर बैठ गए हो। इस तंज से गंगाराम बेहद आहत हो गए और फैसला लिया कि वो भी इंजीनियर बनेंगे। अपनी धुन के पक्के गंगाराम ने उत्तराखंड के फेमस थॉमसन इंजीनियरिग कॉलेज में दाखिला ले लिया।

इंजीनियरिंग की डिग्री हासिल करने के बाद गंगाराम लाहौर पहुंच गए। यहां उन्होंने लाहौर के मशहूर इंजीनियर राय बहादुर कन्हैया लाल के पास नौकरी करनी शुरू कर दी। बेहद छोटे अंतराल में उनका नाम लाहौर के मशहूर इंजीनियरों में शुमार होने लगा। बताया जाता है कि उन्होंने लाहौर में कई सरकारी इमारतों का नक्शा तैयार किया, जिसके बाद लाहौर को आधुनिक लाहौर के रूप में पहचाना जाने लगा।

गंगाराम इंजीनियर से कैसे बन गए

सरजी साल 1917 गंगाराम के लिए बेहद अहम साल साबित हुआ। इस साल गंगाराम ने अंबाला में आयोजित हिंदुओं की बैठक में हिस्सा लेकर विधवाओं के पुनर्विवाह का प्रस्ताव रखा, लेकिन यह पास नहीं हो सका। गंगाराम इससे पहले भी सामाजिक कार्यों में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते रहे, लेकिन इसके बाद गंगाराम ने एक ट्रस्ट बनाने का फैसला किया।

गंगाराम ने अपनी जेब से 2000 रुपये खर्च करके विधवा विवाह संघ की स्थापना कर दी। यही नहीं, 1921 में विधवाओं के लिए आश्रम भी बनवाया, जिस पर ढाई लाख रुपये की लागत आई थी। उस वक्त 2000 रुपये को भी पूरी रकम मानी जाती थी, आश्रम पर ढाई लाख रुपये खर्चा देखकर हर कोई हैरान था। गंगाराम के सामाजिक कार्यों की भनक अंग्रेजों तक पहुंची, तो ब्रिटिश शासन ने उन्हें सर की उपाधि से नवाजने का फैसला ले लिया।

गंगाराम का नाम हो गया हमेशा के लिए अमर

गंगाराम ने 1923 में ऐसा काम कर दिया, जिसे याद कर आज भी उनका नाम अदब से लिया जाता है। उन्होंने 1923 में गंगाराम ट्रस्ट की स्थापना की थी। इस ट्रस्ट ने लाहौर के सेंटर प्वाइंट पर सर गंगाराम फ्री हॉस्पिटल की नींव रखी। 1927 में गंगाराम का निधन हो गया, लेकिन उनके ट्रस्ट ने जनहित कार्यों को जारी रखा। नतीजा रहा कि सर गंगाराम फ्री हॉस्पिटल वक्त के साथ अत्याधुनिक होता चला गया।

दिल्ली के सर गंगाराम हॉस्पिटल को किसने बनवाया

भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने 1948 में सर गंगाराम के पौत्र धर्मवीर को निजी सचिव की जिम्मेदारी सौंपी थी। पाकिस्तान से भारत आए शरणार्थियों की देखभाल की जिम्मेदारी धर्मवीर ने बाखूबी निभाई। उन्होंने सरकार के सामने 11 एकड़ जमीन आवंटित करने का प्रस्ताव रखा। भारत सरकार ने इस प्रस्ताव को मंजूरी दे दी। इसके बाद यहां हॉस्पिटल का काम शुरू हो गया।

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जवाहर लाल नेहरू ने अप्रैल 1951 में स्वयं आकर इस हॉस्पिटल का उद्घाटन किया था। 80 के दशक तक दिल्ली का सर गंगाराम हॉस्पिटल देश का दूसरा बड़ा अस्पताल बन गया। उधर, पाकिस्तान की बात करें तो बंटवारे के बाद सर गंगाराम हॉस्पिटल का नाम बदलने का प्रयास किया। उसके विस्तारित ढांचे का नाम फातिमा जिन्न मेडिकल यूनिवर्सिटी का नाम कर दिया गया, लेकिन लोगों के विरोध के बाद मूल अस्पताल के नाम में किसी प्रकार का बदलाव नहीं किया गया। यही वजह रही कि आज भी सर गंगाराम का नाम बेहद अदद से लिया जाता है।

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