Delhi AAP Politics आनंद राणा: आम आदमी पार्टी में सिसोदिया का नंबर दो का दर्जा फिर से बहाल होगा या नहीं? मनीष सिसोदिया के जेल से बाहर आने के बाद तिहाड़ में बंद आम आदमी पार्टी के मुखिया अरविंद केजरीवाल को अब इस पर फैसला लेना है। दिल्ली सरकार में उपमुख्यमंत्री रहे मनीष सिसोदिया निर्विवादित तौर पर आप के गठन के समय से ही पार्टी में केजरीवाल के बाद दूसरे नंबर के नेता रहे हैं।
दरअसल, पिछले साल 26 फरवरी को जब सिसोदिया जेल गए तो वे एक प्रकार से दिल्ली सरकार की बागडोर संभाले हुए थे क्योंकि अरविंद केजरीवाल भले ही सीएम थे पर उनके पास कोई विभाग नहीं था। संगठन में भी केजरीवाल के बाद सिसोदिया का ही सिक्का चलता था। सिसोदिया के जेल में रहते जब केजरीवाल को भी जेल जाना पड़ा तो सरकार और संगठन में एक खालीपन पैदा हो गया। आतिशी को सबसे ज्यादा और महत्वपूर्ण विभाग सौंप दिये गये और वे एक प्रकार से सरकार का फेस बन गई। लेकिन इस बीच एकाएक अरविंद की पत्नी सुनीता केजरीवाल दिल्ली और देश में आप की सबसे बड़ी नेता के तौर पर आगे की गई।
सुनीता ने मुख्यमंत्री निवास से जब अपने पति द्वारा जेल से भेजे गए संदेश सोशल मीडिया के जरिये प्रसारित करने शुरू किये तो वे अपने पति की कुर्सी पर बैठकर उन संदेशों को पढ़ती थी। इसके साथ ही वे दूसरे राज्यों में भी अपनी पार्टी के कार्यक्रमों में शामिल होने लगी और अघोषित तौर पर उन्हें प्रथम दर्जा दिया जाने लगा। इंडिया गठबंधन में शामिल कुछ पार्टियों ने भी सुनीता केजरीवाल को ही अहम माना और दिल्ली आने पर कई बड़े नेता उनसे मिलने मुख्यमंत्री के सरकारी निवास आने लगे। शुक्रवार शाम को जब मनीष सिसोदिया जेल से बाहर आये तो वे भी केजरीवाल के परिवार से मिलने पहुंचे।
इसमें कोई दो राय नहीं कि केजरीवाल और सिसोदिया के तिहाड़ में बंद होने के दौरान दिल्ली सरकार और दिल्ली नगर निगम के कामकाज की रफ्तार धीमी पड़ गयी। सरकार पर नौकरशाही इस कदर हावी है कि अफसर मंत्रियों के आदेशों को कोई अहमियत देते दिखाई नहीं पड़ रहे हैं। मुख्य सचिव के साथ मंत्रियों का तालमेल पटरी से उतरा हुआ है। राजेन्द्र नगर कोचिंग सेन्टर में जलभराव के चलते हुए जानलेवा हादसे के बाद दिल्ली सरकार और दिल्ली नगर निगम कठघरे में हैं।
अगले साल होंगे दिल्ली के विधानसभा चुनाव
अगले साल फरवरी-मार्च में दिल्ली विधानसभा के चुनाव होने हैं। संगठन और सरकार दोनों मोर्चों पर आम आदमी पार्टी कमजोर दिखाई पड़ रही है। इस साल हुए लोकसभा के चुनाव में भाजपा ने आप-कांग्रेस के गठबंधन को दिल्ली की सभी सातों सीटों पर धूल चटाकर यह साबित कर दिया कि इस बार विधानसभा का चुनाव एकतरफा नहीं होने वाला है। आप नेतृत्व भी यह अच्छी तरह जानता है कि अगर जल्दी से पकड़ मजबूत नहीं की गई तो जीत हाथ से फिसल सकती है।
केजरीवाल किसे सौंपेगे आप की बागडोर
इससे इंकार नहीं किया जा सकता कि सिसोदिया का जमानत पर जेल से बाहर आना आप के लिए राहत का एक बड़ा झोंका है। पर सवाल उठता है कि विधानसभा चुनाव को बामुश्किल छह महीने बचे हैं ऐसे में सिसोदिया को पार्टी और सरकार में बागडोर सौंपी जाएगी या फिर सुनीता केजरीवाल को ही आगे रखा जाएगा। दिल्ली की राजनीति को समझने वाले जानते हैं कि सीएम केजरीवाल भावुक होकर कोई फैसला नहीं करते हैं। वे पार्टी और सरकार दोनों पर अपनी एकतरफा पकड़ रखने के लिए जाने जाते हैं। पार्टी में सिसोदिया के ताकतवर होने का मतलब वे भलिभांति जानते हैं लिहाजा सुनीता केजरीवाल को वे पार्टी में अपना अघोषित उत्तराधिकारी बनाये रखने का दांव जारी रख सकते हैं।
आम आदमी पार्टी में चल रही ये चर्चा
आम आदमी पार्टी के भीतर चर्चा है कि अगर अगले कुछ दिनों में मुख्यमंत्री केजरीवाल सिसोदिया को दिल्ली सरकार में फिर से उपमुख्यमंत्री बनाने का फैसला लेते हैं तो ठीक वरना यहीं माना जाएगा कि अप्रत्यक्ष तौर से बागडोर सुनीता के हाथ में है। उपमुख्यमंत्री नहीं बनाये जाने की सूरत में क्या सिसोदिया को पार्टी संगठन की कमान दी जाएगी। इसे लेकर भी कयास लगाये जा रहे हैं। आम आदमी पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल हैं और यह संभव नहीं लगता है कि वे अपने पद पर किसी दूसरे को बैठायेंगे।
एक रास्ता ये हो सकता कि केजरीवाल पार्टी का कार्यकारी राष्ट्रीय संयोजक सिसोदिया को बना दें या फिर विधानसभा चुनाव को देखते हुए उन्हें दिल्ली प्रदेश आप का संयोजक बना दिया जाए। ये सब इस बात पर निर्भर करेगा कि अरविंद केजरीवाल का पुराने साथी मनीष सिसोदिया पर भरोसा बरकरार है या फिर उसमें कुछ कमी महसूस कर रहे हैं।
आम आदमी पार्टी में खड़ा हो सकता है विवाद
चर्चा यह भी है कि जेल में बंद केजरीवाल के लिए मनीष सिसोदिया की दिल्ली सरकार या पार्टी संगठन में नियुक्ति से जुड़े कागजात पर केन्द्र सरकार के साथ छत्तीस के आंकड़े के चलते हस्ताक्षर करना इतना आसान नहीं होगा। तमाम अटकलों के बीच यह देखना रोचक रहेगा कि मनीष सिसोदिया को सरकार या संगठन में कोई बड़ा पद मिल पाता है या नहीं। अगर सिसोदिया को खाली हाथ रखा गया तो आम आदमी पार्टी के भीतर विवाद खड़ा हो सकता है।