Delhi Schools Admission 2023-24: दिल्ली के निजी स्कूलों में आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (EWS) के तहत अभी भी खाली रहने वाली सभी सीटों में से लगभग आधी सीटों पर कोई आवेदन नहीं आया है। इस साल, नर्सरी, किंडरगार्टन और कक्षा 1 में प्रवेश के लिए  EWS वर्ग के तहत उपलब्ध 35,000 से ज्यादा सीटों में से 6,000 से अधिक सीटें अभी भी खाली हैं। इनमें से 3040 सीटों पर किसी ने आवेदन नहीं किया था।

विधानसभा को सौंपा गया डेटा

विपक्ष के नेता रामवीर सिंह बिधूड़ी द्वारा पूछे गए एक सवाल के जवाब में यह डेटा दिल्ली विधानसभा को सौंपा गया। हर साल ईडब्ल्यूएस सीटें खाली होना दिल्ली सरकार के लिए एक समस्या रही है। सीटें भरने के प्रयास में हर साल कई ड्रॉ आयोजित किए जाते हैं। इस साल, कम से कम पांच ऐसे ड्रा निकाले गए हैं।

दिल्ली उच्च न्यायालय का आदेश

दिल्ली उच्च न्यायालय ने इस महीने की शुरुआत में सरकार को ईडब्ल्यूएस श्रेणी के तहत स्कूलों में प्रवेश के लिए सालाना पारिवारिक आय की सीमा 1 लाख रुपये (8,333 रुपये प्रति माह) से बढ़ाकर 5 लाख रुपये (41,667 रुपये प्रति माह) करने का आदेश दिया था। इससे सरकार को उम्मीद है कि खाली सीटों को भरने का समाधान हो सकता है। इस साल 2001 निजी स्कूलों में 25% कोटा के तहत 35,000 सीटों के लिए लगभग 2.09 लाख विद्यार्थियों ने आवेदन किया था।

25% सीटें आरक्षित करना अनिवार्य  

शिक्षा का अधिकार अधिनियम के अनुसार, सभी निजी स्कूलों को प्रवेश स्तर (नर्सरी, किंडरगार्टन और कक्षा 1) में अपनी 25% सीटें आरक्षित करनी होती हैं। शिक्षा विभाग के अधिकारियों के अनुसार, हालांकि इसे बनाने की दौड़ कठिन है, लेकिन स्कूलों का एक वर्ग ऐसा भी है जिसे कोटा के तहत आवेदन प्राप्त नहीं होते हैं। अधिकारी ने बताया कि ये ऐसे स्कूल हैं, जहां फीस 1,500 रुपये से 2,500 रुपये प्रति माह के बीच है। ये स्कूल वास्तव में सरकार से मिलने वाली प्रतिपूर्ति पर निर्भर है क्योंकि प्रति बच्चा प्रतिपूर्ति लगभग 2,400 प्रति महीने है। यह भीड़ केवल 75-100 टॉप स्कूलों के लिए है।

क्या है सीट खाली रहने का कारण

निश्चित रूप से, आवेदन की कमी सीटें खाली होने का एकमात्र कारण नहीं है। अन्य कारणों से माता-पिता द्वारा उन्हें सौंपे गए स्कूलों में प्रवेश नहीं लेना और दस्तावेज उपलब्ध या सत्यापित नहीं होने पर स्कूलों द्वारा आवेदन खारिज करना शामिल है।

दिल्ली सरकार के एक सूत्र ने बताया कि ऐसे कई मामले सामने आए हैं, जहां स्कूलों का कहना है कि माता-पिता ने अपने बच्चों को आवंटित स्कूल में प्रवेश नहीं लिया, लेकिन वास्तव में स्कूल ने भी उन्हें सपोट नहीं किया है। कई बार माता-पिता अपने अधिकारों के बारे में जागरूक नहीं होते हैं, इसलिए वे शिकायत नहीं करते हैं।