Delhi Loknayak Hospital: आने वाले कुछ महीनों में ही दिल्ली में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। ऐसे में दिल्ली सरकार की तरफ से लगातार दावे किए जा रहे हैं कि उन्होंने दिल्ली को चमका दिया है और दिल्ली के सरकारी स्कूलों और अस्पतालों की रंगत बदल दी है। हालांकि दिल्ली के सरकारी अस्पतालों का जमीनी स्तर पर क्या हाल है, इसको लेकर जनता का कुछ और ही कहना है।

सस्ती दवाएं तो मिलती हैं, लेकिन महंगी नहीं

दरअसल, दिल्ली का लोकनायक अस्पताल एक बड़ा और सरकारी अस्पताल है, जहां पर दिल्ली-एनसीआर के अलग-अलग इलाकों से इलाज के लिए रोजाना हजारों मरीज आते हैं। यहां डॉक्टर के पास जांच के बाद मुफ्त में दवाएं देने का दावा किया जाता है। हालांकि मरीजों का कहना है कि पिछले चार महीनों से यहां पर सस्ती दवाएं तो दे दी जाती हैं, लेकिन महंगी दवाएं बाहर से लेने के लिए कहा जाता है।

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अस्पताल के बाहर से दवा खरीदने को मजबूर मरीज

कैंसर, डायबिटीज, हड्डी, स्त्री रोग से जुड़ी दवाएं और यहां तक आयरन की गोलियां भी अस्पताल में नहीं दी जा रही हैं क्योंकि इनकी कीमत थोड़ी ज्यादा होती है। वहीं एंटीबायोटिक, सिरप कैल्शियम और ट्यूब समेत 10 रुपए और 20 रुपए की गोलियां अस्पताल में मिल रही हैं। इसके अलावा जिन जवाओं की कीमत 400, 500 या उससे ज्यादा है, उन दवाओं को अस्पताल से बाहर खरीदने के लिए मरीज मजबूर हैं। 

क्या कहता है प्रशासन

जिन लोगों की आर्थिक स्थिति खराब है, वो काफी परेशान हो रहे हैं। हालांकि इस मामले में मेडिकल डायरेक्टर डॉक्टर सुरेश कुमार का कहना है कि सीपीए नाम की एजेंसी यहां दवाएं सप्लाई करती है और सप्लाई में देरी होने के कारण ऐसा हुआ होगा लेकिन अब अस्पताल में सभी दवाएं मौजूद हैं। वहीं इस मामले में अस्पताल में इलाज करा रहे मरीज कुछ और ही बताते हैं। 

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नहीं मिलती महंगी दवाई

महेश कुमार नामक व्यक्ति की बेटी को दौरे पड़ते हैं और महंगी दवाई न मिलने के कारण वे अस्पताल में बाहर बैठे रो रहे थे। वे पेशे से एक मजदूर हैं। उन्होंने बताया कि सस्ती दवाएं तो दे दी गई हैं, लेकिन 400 रुपए की सिरप की शीशी बाहर से खरीदने के लिए कहा गया और जब उन्होंने शिकायत करने की बात कही तो एक शीशी दे दी गई और कहा गया कि अब इस महीने दवाई नहीं आएगी। हालांकि बेटी के इलाज के लिए महीने में दो सिरप लगती हैं और एक ही दी गई है।

मरीजों का हाल-बेहाल

वहीं डायबिटीज के पेशेंट मोहम्मद अंसारी ने बताया कि उन्हें पिछले चार महीने से यहां से दवाई नहीं मिली है। कैंसर पेशेंट फातिमा ने कहा कि यहां पर कैंसर की कुछ दवाईयां मिल जाती हैं और कुछ बाहर से लेनी पड़ती हैं। वहीं कई अन्य मरीजों ने भी यही कहा कि सस्ती दवाईयां तो यहां से मिल जाती हैं, लेकिन महंगी दवाई उन्हें बाहर से लेनी पड़ती है।  

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