Iconic gurudwara in Delhi: दिल्ली एक ऐसा शहर है, जो अपने ऐतिहासिक धार्मिक स्मारकों, स्थलों और मंदिरों के लिए भी काफी प्रसिद्ध है। आम तौर पर लोग दिल्ली स्थित बंगला साहिब गुरुद्वारा जरूर जाते हैं। लेकिन, क्या आपको पता है कि दिल्ली में 9 ऐतिहासिक गुरुद्वारे हैं। ये दिल्ली के खूबसूरत और अद्भुत गुरुद्वारों में शामिल हैं। यहां आपको एक बार जरूर जाना चाहिए। इस आर्टिकल में हम इन्हीं 9 गुरुद्वारे के बारे में चर्चा करेंगे।
गुरुद्वारा शीशगंज साहिब
गुरुद्वारा शीशगंज साहिब 1783 में पंजाब छावनी में सैन्य जनरल बघेल सिंह द्वारा निर्मित है। यह नौवें सिख गुरु, गुरु तेग बहादुर की शहादत स्थल है। यह पुरानी दिल्ली के चांदनी चौक इलाके में स्थित है। कहा जाता है कि गुरु तेग बहादुर को इस्लाम में बदलने से इनकार करने पर 11 नवंबर 1675 को मुगल सम्राट औरंगजेब के आदेश पर मार दिया गया था। उन्हीं के शहादत स्थल को गुरुद्वारे के रूप में बदल दिया गया।
बंगला साहिब गुरुद्वारा
बंगला साहिब गुरुद्वारा सिख जनरल सरदार भगेल सिंह द्वारा 1783 में बनाया गया था। दिल्ली के बंगला साहिब गुरूद्वारे को लेकर कई मान्यताएं हैं। कहा जाता है कि ये गुरुद्वारा पहले जयपुर के महाराजा जयसिंह का बंगला था। साथ ही, यहां पर सिखों के आठवें गुरु हर किशन सिंह रहा करते थे। गुरुद्वारा बंगला साहिब दिल्ली के सबसे प्रमुख धार्मिक और पर्यटन स्थलों में से एक है।
गुरुद्वारा बाला साहिब
बाला साहिब गुरुद्वारा प्रतिष्ठित गुरुद्वारा माता सुंदरी और सिखों के 8 वें गुरु, गुरु हरकृष्ण सिंह जी का क्रीमेशन ग्राउंड है। कहा जाता है कि उनके उपचार स्पर्श ने दिल्ली के लोगों को हैजा से बचाया था।
माता सुंदरी गुरुद्वारा
माता सुंदरी गुरुद्वारे का नाम गुरु गोबिंद सिंह जी की पत्नी के नाम पर रखा गया है। यह गुरुद्वारा वह स्थान है, जहां माता सुंदरी जी ने 1747 में अंतिम सांस ली थी। उन्होंने 40 साल तक अपने अनुयायियों की देखभाल की। माता सुंदरी के पार्थिव शरीर का अंतिम संस्कार गुरुद्वारा बाला साहिब जी में किया गया था।
दमदमा साहिब गुरुद्वारा
दमदमा साहिब गुरुद्वारा 10वें गुरु, गुरु गोबिंद सिंह जी को श्रद्धांजलि देने के लिए बनाया गया था। यह गुरुद्वारा हुमायूं के मकबरे के पास स्थित है। गुरुद्वारा 1783 में सरदार बघेल सिंह जी द्वारा बनाया गया था और बाद में महाराजा रणजीत सिंह के शासन में इसका पुनर्निर्माण कराया गया।
गुरुद्वारा मोती बाग
1707 में जब गुरु गोबिंद सिंह जी पहली बार दिल्ली आए, तब वह और उनकी सेना गुरुद्वारा मोती बाग साहिब में ही रुके थे। कहा जाता है कि यहीं से गुरु गोबिंद सिंह जी ने लाल किले पर अपने सिंहासन पर बैठे मुगल सम्राट औरंगजेब के पुत्र राजकुमार मुअज्जम की दिशा में दो तीर चलाए थे। दिल्ली का यह गुरुद्वारा सफेद संगमरमर से बनाया गया है।
गुरुद्वारा मजनू का टीला
अब्दुल्ला मजनू जब वह 1505 में गुरु नानक देव जी से मिला क्योंकि अब्दुल्ला मजनू भगवान के नाम पर लोगों को यमुना नदी के पार नि: शुल्क ले जाते थे, इसी बात ने गुरु नानक जी के दिल को छू लिया। उन्होंने टीले में रहने का फैसला किया, इसी दौरान मजनू उनका शिष्य बन गया। दिल्ली के सबसे प्रतिष्ठित गुरुद्वारों में से एक पहले और छठे गुरुओं के ठहरने का प्रतीक है गुरुद्वारा मजनू का टीला।
गुरुद्वारा नानक प्याऊ साहिब
सिख धर्म के संस्थापक, गुरु नानक देव जी ने 1505 में साथी यात्रियों और राहगीरों को उपदेश देते हुए मुफ्त भोजन और पानी परोसने वाले एक बगीचे में डेरा डाला था। बगीचे के मालिक ने उस स्थान एक गुरुद्वारा स्थापित किया, जिसे मूल रूप से प्याऊ साहिब कहा जाता है। जो आज नानक प्याऊ साहिब गुरुद्वारा के नाम से जाना जाता है।
गुरुद्वारा रकाब गंज साहिब
गुरु तेग बहादुर जी उर्फ 'हिंद दी चादर' 1675 में कश्मीरी पंडितों की रक्षा करते हुए मारे गए। औरंगजेब ने इस्लाम में परिवर्तित होने से इनकार करने के लिए उनका सिर कलम कर दिया। उनके शिष्यों ने उनके सिर रहित शरीर का अंतिम संस्कार करने के लिए अपना घर जला दिया, जहां पर आज रकाब गंज गुरुद्वारा स्थित है। उनका सिर उनके पुत्र गुरु गोबिंद सिंह जी के पास ले जाया गया था।