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दिल्ली के सिरी फोर्ट में उस्ताद जाकिर हुसैन ने सरोद वादक उस्ताद अमजद अली खान के साथ एक यादगार प्रस्तुति दी थी। यह कंसर्ट भारतीय शास्त्रीय संगीत के दो दिग्गजों का मिलन था, मौके पर मौजूद लोगों ने तारीफ में वाह ताज बोल उठे थे।

Ustad Zakir Hussain memories from Delhi: तबला के दिग्गज और संगीत के महारथी उस्ताद जाकिर हुसैन का दिल्ली से खास जुड़ाव रहा है। उनकी संगीत न केवल देश की राजधानी में कई ऐतिहासिक मौकों पर गूंजा, बल्कि दिल्ली की सांस्कृतिक विरासत का अभिन्न हिस्सा रहा है। कल राचत उस्ताद का सैन फ्रैंसिसको में 73 साल की उम्र में निधन हो गया। उनकी यादें, उनकी धुनें और उनका कला प्रेम हमेशा दिल्लीवासियों के दिलों में जिंदा रहेगा।  

सिरी फोर्ट में ऐतिहासिक कॉन्सर्ट

दिल्ली के सिरी फोर्ट में उस्ताद जाकिर हुसैन ने सरोद वादक उस्ताद अमजद अली खान के साथ एक यादगार प्रस्तुति दी थी। यह कंसर्ट भारतीय शास्त्रीय संगीत के दो दिग्गजों का मिलन था, जिसने श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया। मौके पर मौजूद लोगों ने तारीफ में वाह ताज बोल उठे थे। इसके साथ ही राष्ट्रीय एकता गीत में दिल्ली की भूमिका रही है, देश के प्रतिष्ठित एकता गीत 'मिले सुर मेरा तुम्हारा' में उस्ताद जाकिर हुसैन अपने पिता अल्ला रक्खा के साथ नजर आए थे। यह गीत, जो दूरदर्शन पर पहली बार प्रसारित हुआ, राष्ट्रीय एकता का प्रतीक बना और दिल्लीवासियों के लिए गौरव का विषय रहा है।  

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'वाह ताज' और दिल्ली की पहचान 

उस्ताद जाकिर हुसैन को दिल्ली में भी पहचान दिलाने वाला उनका 1988 का ताज महल चाय का विज्ञापन था। इस विज्ञापन में उनके तबला वादन ने 'वाह ताज' को हर घर का प्रिय वाक्य बना दिया। दिल्ली में एक खास कार्यक्रम के दौरान उन्होंने अपने गुरुओं को श्रद्धांजलि दी थी। सरस्वती पूजा के मौके पर श्री सत्य साईं ऑडिटोरियम, लोधी रोड में आयोजित इस कार्यक्रम में उन्होंने दर्शकों को अपने गुरु अहमद जान थिरकवा को समर्पित एक भावपूर्ण प्रस्तुति दी थी।  

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दिल्ली में संगीत प्रेमियों की भीड़ और भावनाएं

उनके कंसर्ट में संगीत प्रेमियों की भीड़ और उनके वादन के प्रति उमड़ा जनसैलाब यही दिखाता था कि कैसे उस्ताद जाकिर हुसैन दिल्ली के दिल में बसते हैं। यह शहर उनके तबले की गूंज का गवाह बना है और उनकी विरासत यहां की सांस्कृतिक धरोहर का हिस्सा बनी रहेगी। दिल्ली, उस्ताद जाकिर हुसैन के लिए सिर्फ एक मंच नहीं, बल्कि संगीत साधना का एक साक्षी रहा। उनकी यादें और उनके तबले की थाप हमेशा दिल्लीवासियों के दिलों में अमर रहेगी।

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