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हरियाणा के फतेहाबाद व सिरसा में भाजपा की एंटी इनकम्बेसी लोकसभा चुनाव के बाद भी कायम रही। विधानसभा के चुनाव परिणाम आए तो फतेहाबाद व सिरसा जिले में भाजपा का पूरी तरह सफाया हो गया। फतेहाबाद में 3 कांग्रेस व सिरसा में 3 कांग्रेस व 2 पर इनेलो का कब्जा।

सुरेन्द्र असीजा, फतेहाबाद: पिछले 10 सालों से भारतीय जनता पार्टी की सरकार की एंटी इनकम्बेसी लोकसभा चुनाव के बाद भी कायम रही। मंगलवार को 15वीं विधानसभा के चुनाव परिणाम आए तो फतेहाबाद व सिरसा जिले में भाजपा का पूरी तरह सफाया हो गया। फतेहाबाद जिले की तीनों सीटों पर कांग्रेस तो सिरसा की 5 सीटों में से 3 पर कांग्रेस व 2 पर इनेलो ने अपना परचम फहराया। सीमा पर स्थित इन दोनों जिलों में किसान आंदोलन भाजपा की नैया ले डूबा। इसके अलावा स्थानीय विधायकों व पूर्व सांसद की लोकल नाराजगी भी जनता के प्रति कम नहीं हो सकी।

पुराने वर्करों की अनदेखी बनी हार का कारण

भाजपा के पुराने वर्करों की अनदेखी यहां कोढ में खाज का काम कर गई। असल में इस बार सिरसा व फतेहाबाद में अनख वाले नेताओं को सबक सिखाने में जनता ने कोई कसर नहीं छोड़ी। भाजपा ने फतेहाबाद में दुड़ाराम पर दांव खेला तो टोहाना में पूर्व मंत्री देवेन्द्र बबली को टिकट देकर भारी रिस्क अपने खाते में कर लिया। रही सही कसर, रतिया (आरक्षित) सीट पर पूरी हो गई। यहां पर भाजपा ने मौजूदा विधायक लक्ष्मण नापा का टिकट काटकर सुनीता दुग्गल को दे दिया। यहां बता दें कि सुनीता दुग्गल के विरोध व उनकी नेगेटिव रिपोर्ट के चलते लोकसभा चुनाव में उनका सिरसा से टिकट काट दिया गया था।

दुड़ाराम पर लगे चुके थे आरोप

दुड़ाराम पर फतेहाबाद में विकास न करवाने, नगरपरिषद में भारी हस्तक्षेप करने और उनके ही स्टाफ द्वारा नौकरी के नाम पर पैसे लेने के आरोप लग चुके हैं। फतेहाबाद से मेडिकल कॉलेज शिफ्ट होने का मुद्दा भी कम नहीं था। बात करें टोहाना की तो पूर्व मंत्री देवेन्द्र बबली का ई-टेंडरिंग विवाद पूरे प्रदेश में सरपंचों को अपने विरोध में कर गया। देवेन्द्र बबली को यहां सरपंचों के भारी विरोध का सामना करना पड़ा। लोकसभा चुनावों के बाद विधानसभा चुनावों में भी गांवों में उनका तीव्र विरोध हुआ। रतिया के विधायक लक्ष्मण नापा का टिकट काटकर दुग्गल को देने पर भाजपा के वर्कर नाराज दिखे।

गोपाल कांडा से था अघोषित गठबंधन

सिरसा में हलोपा उम्मीदवार गोपाल कांडा का भाजपा के साथ अघोषित गठबंधन था। लोगों का भाजपा के प्रति आक्रोश इतना था कि उन्होंने गोपाल कांडा को भी सबक सिखाने की ठानी। गोपाल कांडा के विरोध के कारण ही कांग्रेस के गोकुल सेतिया के सिर जीत का सेहरा बंधा। ऐलनाबाद में अभय सिंह चौटाला का स्वयं का विरोध था। हालांकि भाजपा ने उनकी मदद के लिए एक नए उम्मीदवार को मैदान में उतारा, लेकिन लोगों ने अभय सिंह के खिलाफ कांग्रेस के भरत सिंह बैनीवाल को जिता दिया। कालांवाली सीट पर शीशपाल केहरवाला भाजपा की एंटी इनकम्बेसी का फायदा ले गए।

रणजीत चौटाला को मिली हार

डबवाली से भाजपा ने आदित्य चौटाला को भाव नहीं दिया तो इनेलो ने उसे कैच कर लिया और यह सीट इनेलो के खाते में गई। रानियां में भाजपा के रणजीत चौटाला के प्रति लोगों में काफी नाराजगी थी। जब भाजपा ने टिकट नहीं दी तो रणजीत सिंह आजाद चुनाव लड़े। रणजीत को सबक सिखाने के लिए लोगों ने अर्जुन चौटाला को विधायक बनाया। इस सब कारणों से पता चलता है कि लोग अपने नेताओं की गर्दन में सरिया निकालना जानते हैं। इस बार सिरसा व फतेहाबाद में लोगों ने अनखी नेताओं की अनख तोड़कर रख दी।

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