गुरुग्राम। जातिगत समीकरणों का महत्व हर चुनाव में होता है और हर राजनीतिक दल के साथ हर एक प्रत्याशी की तरफ से कोशिश की जाती है कि इसे भली तरीके से साधा जाय। ऐसे अनेक उदाहरण हैं जिनमें जाति के आधार पर ही हार-जीत देखने को मिली है। हरियाणा की बात करें तो विधानसभा चुनाव में गुरुग्राम सीट इस समय सबसे हॉट बनी हुई है। इस विधानसभा चुनाव में यहां बीजेपी ने पहली बार ब्राह्मण चेहरा उतारकर एक नया प्रयोग किया, लेकिन यह दांव पूरी तरह उलटा पड़ता नजर आ रहा है।
बीजेपी ने अपने मूल कैडर वैश्य समाज की अनदेखी की जो उसे यह भारी पड़ता दिखलाई देता है। वैश्य समाज अब बीजेपी से बागी होकर निर्दलीय चुनाव लड़ रहे नवीन गोयल के पक्ष में खुलकर सामने आ गया है। वहीं 36 बिरादरी का भी पूरा साथ नवीन गोयल को मिलने से उन्होंने विपक्षी नेताओं व पार्टी की नींद उड़ा रखी है।
प्रदेश में 32 परसेंट पंजाबी वोट हैं और यह वोट बैंक अब बीजेपी से दूर होता दिख रहा है। हाल में हुए लोकसभा चुनाव में पंजाबी वोट बैंक बीजेपी के हाथ से निकल गया था और इसी के चलते बीजेपी 10 में से 5 सीट ही जीत पाई थी।
गुरुग्राम में पिछले दो चुनाव व 10 साल से वैश्य विधायक बने हैं और इस बार टिकट के प्रबल दावेदार नवीन गोयल थे। वह पिछले 11 साल से पार्टी से जुड़े हुए थे और जो भी टास्क पार्टी ने उन्हें दिया उसे सफलता पूर्वक पूरा भी किया। इसी के चलते वह आखिरी समय तक टिकट की रेस में रहे लेकिन बीजेपी के खिलाफ बगावती सुर अपनाने वाले मुकेश शर्मा को बीजेपी ने टिकट देकर शायद अपने ही पैरों पर कुल्हाड़ी मार ली। मुकेश शर्मा के साथ ना तो ब्राह्मण समाज दे रहा है ना ही संगठन व संघ। इसका पूरा फायदा नवीन गोयल को मिल रहा है और वह लगातार मजबूत होते नजर आ रहे हैं।
मुकेश शर्मा ने 2014 में बादशाहपुर सीट से बीजेपी प्रत्याशी के खिलाफ निर्दलीय चुनाव लड़ा था और हारे थे। इसके बाद उन्होंने बीजेपी शीर्ष नेतृत्व के साथ ही केंद्रीय मंत्रियों पर जमकर भड़ास निकालते हुए अभद्र टिप्पणी की थी। जबकि 2009 में बीजेपी ने उनको बादशाहपुर से टिकट भी दी थी और फिर भी वह चुनाव हार गए थे। अब इस बार वह गुरुग्राम से टिकट तो ले आए लेकिन यहां पर 11 साल से सक्रिय नवीन गोयल की टिकट पर कैंची चलाकर बीजेपी अब खुद ही फंसती नजर आ रही है। नवीन गोयल यहां लगातार सक्रिय रहकर लोगों के हितों की लड़ाई लड़ने के साथ ही उनकी बुनियादी सुविधाओं की जंग भी लड़ रहे थे। इसी के चलते शहर की हर बिरादरी को नवीन गोयल को समर्थन मिल रहा है।
भावनात्मक जुड़ाव
नवीन गोयल पिछले 5 साल से शहर के हर एरिया, हर समाज व हर वर्ग की समस्याओं को लेकर लड़ाई लड़ रहे थे। लोगों की समस्याओं को दूर करने के लिए वह खुद धरातल पर सक्रिय होते थे। एक प्रकार से वह गुरुग्राम नगर निगम के बराबर लोगों की समस्याओं को दूर करने में जुटे हुए थे। जब बीजेपी ने उनकी टिकट काट दी तो लोगों में बीजेपी को लेकर नाराजगी व्याप्त हो गई। लोगों ने एकजुट होकर नवीन गोयल को निर्दलीय चुनाव लड़ने का प्रेशर बनाया और अब लोगों की भावना उनको मजबूत प्रदान कर रही है। जातपात के बजाए नवीन गोयल शायद एकमात्र ऐसे प्रत्याशी हैं जिनकों हर वर्ग, समाज का साथ मिल रहा है। टिकट कटने के बाद लोगों की भावनाएं नवीन गोयल को मजबूती बनाती नजर आ रही हैं।
अलग—अलग समुदाय के लोगों में एकजुटता
नवीन गोयल के पक्ष में बीजेपी सहित कई राजनैतिक पार्टियों के लोगों ने त्यागपत्र देकर नवीन गोयल को समर्थन दिया है। दो बार की पार्षद सीमा पाहूजा जहां पंजाबी समाज को नवीन गोयल के पक्ष में एकजुट कर रही हैं, तो बीजेपी से आप की नेता अनुराधा शर्मा ब्राह्मण समाज को नवीन के पाले में कर रही हैं। वहीं बीजेपी के बड़े दलित नेता सुमेर सिंह तंवर ने बीजेपी छोड़ने के बाद दलित वोट बैंक को नवीन गोयल के पक्ष में करने का अभियान शुरू कर रखा है।
वहीं कई मुस्लिम संस्थाओं सहित कई दूसरे समाज व वर्ग ने नवीन गोयल को आशीष देकर इस बार चंडीगढ़ भेजने का मन बना लिया है। सामाजिक तानेबानी की बात करें तो उसमें नवीन गोयल सबसे आगे चल रहे हैं। उनकी सभाओं व प्रोग्राम में जिस प्रकार लोगों का हुजूम उमड़ रहा है उससे साफ पता चल रहा कि गुरुग्राम की जनता इस बार बदलाव करने के मूड में है।
जातीय समाज का साथ नहीं
कांग्रेस ने भले ही गुरुग्राम सीट के सबसे अधिक वोटर वाले पंजाबी समाज के चेहरे को मैदान में उतारा है लेकिन 2019 के चुनाव में दूसर नंबर पर रहने वाले मोहित ग्रोवर इसके बाद लोगों से दूर हो गए थे। यहां तक लोकसभा चुनाव में भी वह सक्रिय नहीं रहे। उनकी पंजाबी बिरादरी के लोग खुलेआम उन पर निष्क्रियता के आरोप जड़ रहे हैं और इसी के चलते पंजाबी समाज नवीन गोयल में उम्मीदों की किरण तलाश रहा है। दूसरी ओर बीजेपी के ब्राह्मण चेहरे मुकेश शर्मा को भी समाज का पूरा साथ नहीं मिल रहा। कारण इसी समाज के जीएल शर्मा भी टिकट की रेस में थे। उनकी टिकट कटी तो वह कांग्रेस में चले गए लेकिन उनके साथ का वोट बैंक बीजेपी से दूर होने के साथ ही कुछ कांग्रेस में तो कुछ नवीन गोयल के पक्ष में जाता दिख रहा है। शायद यही कारण हैं कि कांग्रेस-बीजेपी प्रत्याशी के साथ ही पार्टी नेताओं की नींद उड़ी हुई नजर आ रही है