रवींद्र राठी, बहादुरगढ़: हरियाणा में तीन महीने पहले लोकसभा की दस में से पांच सीटों पर जीत हासिल करने वाली भाजपा के सामने अब राज्य में हैट्रिक लगाने की चुनौती है। प्रदेश में अब तक कांग्रेस एक बार हैट्रिक बना चुकी है। लेकिन पिछली बार उसे हैट्रिक बनाए बगैर सत्ता से बेदखल होना पड़ा था। इसी को ध्यान में रखते हुए भाजपा ने अपनी चुनावी तैयारियों को ठोस रूप देना शुरू कर दिया है। यही कारण है कि पिछली बार की तरह इस बार 75 पार जैसा कोई हवाई नारा नहीं लगाया गया। हरियाणा गठन के बाद 1967 में प्रदेश विधानसभा में कुल 81 सीटें थी। फिर 1977 में 90 सीटें हो गई थी। इस बार भी 90 विधानसभा सीटों पर चुनाव होंगे।
सत्ता में भाजपा काबिज
बता दें कि वर्ष 1966 में हरियाणा बनने के बाद कांग्रेस ने लगातार तीन चुनावों (1967-1968-1972) में जीत हासिल कर सरकार बनाई। इसके बाद 1977 में जनता पार्टी सत्ता में आ गई। फिर 1982 में कांग्रेस सत्ता में लौट आई। इसके बाद 1987 में लोकदल ने सरकार बनाई, 1991 में कांग्रेस सत्ता में लौटी। अगले चुनाव में हविपा और भाजपा ने 1996 में मिलकर सरकार बनाई। 2000 में इनेलो सत्ता में काबिज हुई। इसके बाद कांग्रेस ने लगातार दो बार (2009-2014) सरकारें बनाई। अब बीते दो कार्यकाल (2014-2019) से भाजपा सत्ता में काबिज है। भाजपा नॉन जाट पॉलीटिक्स करती रही है। इसी कारण मनोहर लाल खट्टर को मुख्यमंत्री बनाया गया था। मनोहर लाल को दिल्ली बुलाने के साथ ही भाजपा ने ओबीसी चेहरा बनाकर नायब सिंह सैनी को मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठा दिया।
सात बार बनी कांग्रेस सरकार
हरियाणा बनने के बाद प्रदेश में 13 विधानसभा चुनाव हो चुके हैं। इन चुनावों में एक बार कांग्रेस हैट्रिक बना चुकी है। एक बार कांग्रेस और एक बार भाजपा लगातार दो कार्यकाल में सत्ता हासिल करने का रिकॉर्ड बना चुकी हैं। कांग्रेस कुल 7 बार प्रदेश में सरकार बना चुकी है। भाजपा भी दो बार हरियाणा की सत्ता संभाल चुकी है। जबकि जनता पार्टी, लोकदल, हविपा और इनेलो के नेतृत्व में भी एक-एक बार सियासी दल प्रदेश में सरकार बना चुके हैं।
शुरूआत में कांग्रेस की हैट्रिक
वर्ष 1967 में कांग्रेस को 48, जनसंघ को 12, निर्दलीय 16, स्वतंत्र पार्टी की 3, आरपीआई की 2 सीटें थी। पंडित भगवत दयाल शर्मा सीएम बने। 1968 में मध्यावधि चुनाव हुए। इसमें कांग्रेस को 48, विशाल हरियाणा पार्टी को 16, जनसंघ को 7, निर्दलीय 6, स्वतंत्र पार्टी की 2, भारतीय क्रांति दल और आरपीआई को एक-एक सीटें मिली थी। कांग्रेस ने इस बार बंसीलाल को सीएम बनाया। 1972 में कांग्रेस को 52, एनसीओ (कांग्रेस ओल्ड) को 12, निर्दलीय को 11, विशाल हरियाणा पार्टी की 3, जनसंघ की 2 और आर्य सभा को 1 सीट मिली थी। इस बार भी बंसीलाल सीएम की कुर्सी पर विराजे। लेकिन इंदिरा गांधी ने 1975 में बंसीलाल को केंद्र में मंत्री बना दिया और बनारसी दास गुप्ता को सीएम बनाया।
जनता पार्टी को मिला बहुमत
वर्ष 1977 में जनता पार्टी को 75, निर्दलीय को 7, विशाल हरियाणा पार्टी की 5 कांग्रेस को 3 ही सीट मिली थी। प्रचंड बहुमत के बाद देवीलाल को मुख्यमंत्री का पद सौंपा गया। हालांकि दो साल बाद भजनलाल तख्तापलट कर सीएम बन गए। भजनलाल जनता पार्टी छोड़कर पूरे मंत्रीमंडल के साथ कांग्रेसी बन गए। 1982 में कांग्रेस को 36, लोकदल को 31, निर्दलीय को 16, भाजपा को 6 व जनता पार्टी को एक ही सीट मिली थी। भजनलाल ने निर्दलियों को साथ मिलाकर सरकार बनाई और फिर से मुख्यमंत्री बन गए। हालांकि 4 साल बाद उनके स्थान पर बंसीलाल को सीएम बनाया गया।
पुत्रमोह में फंस गए देवीलाल
वर्ष 1987 में लोकदल को 60, भाजपा को 16, निर्दलीय को 7, कांग्रेस को 5, सीपीआई को एक व सीपीएम को भी एक ही सीट मिली थी। करीब ढाई साल देवीलाल सीएम रहे। इसके बाद उन्होंने ओमप्रकाश चौटाला को सीएम बनाया। लेकिन छह महीने बाद बनारसी दास गुप्ता को मुख्यमंत्री बनाया गया। ओमप्रकाश चौटाला फिर 5 दिन के लिए सीएम बने। इसके बाद हुकम सिंह 8 महीने तक मुख्यमंत्री रहे। फिर ओमप्रकाश चौटाला 15 दिन के लिए सीएम रहे। वर्ष 1991 में कांग्रेस को 51, जनता पार्टी को 16, हविपा को 12, निर्दलीय को 5, जनता दल को 3, भाजपा को 2 और बसपा को एक ही सीट मिली थी। कांग्रेस के सत्ता में लौटने के बाद भजनलाल को मुख्यमंत्री बनाया गया।
हविपा के बाद इनेलो सरकार
वर्ष 1996 में हविपा को 33, समता पार्टी को 24, भाजपा को 11, निर्दलीय को 10, कांग्रेस को 9 और तिवारी कांग्रेस को 3 सीट मिली थी। कांग्रेस छोड़कर हरियाणा विकास पार्टी बनाने वाले बंसीलाल भाजपा के साथ गठबंधन कर तीन साल से अधिक समय तक सीएम बने। फिर भाजपा ने गठबंधन तोड़ दिया और इनेलो के नेतृत्व में सरकार बनाई। ओमप्रकाश चौटाला सीएम बने और करीब 7 महीने बाद चुनाव का ऐलान का दिया। वर्ष 2000 में इनेलो को 47, कांग्रेस को 21, निर्दलीय को 11, भाजपा को 6, हविपा को 2 के अलावा एनसीपी, बसपा और आरपीआई को एक-एक सीट मिली थी। फिर से ओमप्रकाश चौटाला मुख्यमंत्री बने।
कांग्रेस-भाजपा की दो-दो बारी
वर्ष 2005 में कांग्रेस को 67, निर्दलीय को 10, इनेलो को 9, भाजपा को 2 के अलावा एनसीपी व बसपा को एक-एक ही सीट मिली थी। वर्ष 2009 में कांग्रेस को 40, इनेलो को 31, निर्दलीय को 7, हजकां को 6, भाजपा को 4 के अलावा शिरोमणी अकाली दल और बसपा को एक-एक सीट मिली थी। दोनों बार भूपेंद्र हुड्डा मुख्यमंत्री रहे। वर्ष 2014 में भाजपा को 47, इनेलो को 19, कांग्रेस को 15, निर्दलीय को 5, हजकां को 2 के अलावा शिरोमणी अकाली दल और बसपा को एक-एक सीट मिली थी। मनोहर लाल खट्टर मुख्यमंत्री बने। वर्ष 2019 में भाजपा को 40, कांग्रेस को 31, जजपा को 10, निर्दलीय को 7, इनेलो और हलोपा को एक-एक सीट मिली थी। मनोहर लाल फिर से सीएम बने। लेकिन मार्च में उनके स्थान पर नायब सैनी ने सत्ता संभाली।