बहादुरगढ़: टोक्यो पैरा-ओलंपिक में रजत पदक जीतने के बाद बहादुरगढ़ के योगेश कथूनिया ने अब पेरिस पैरा-ओलंपिक में भी सिल्वर मेडल जीत लिया है। योगेश ने गत वर्ष चीन में हुए पैरा-एशियन गेम्स में भी रजत पदक जीता था। पुरुषों के एफ-56 चक्का फेंक स्पर्धा में 42.22 मीटर दूरी तय कर योगेश ने सिल्वर मेडल हासिल किया। बेटे के रजत पदक जीतने के बाद परिजनों ने निवास पर नाच-गाकर और मिठाई बांटकर खुशी का इजहार किया।

42.22 मीटर दूर फेंका चक्का

बता दें कि जिन खिलाड़ियों की रीढ़ की हड्डी क्षतिग्रस्त होती है और शरीर के निचले हिस्से में विकार होता है, वे एफ-56 वर्ग में भाग लेने वाले खिलाड़ी बैठकर प्रतिस्पर्धा करते हैं। योगेश ने पुरुषों के एफ-56 चक्का फेंक स्पर्धा में 42.22 मीटर की दूरी तय करते हुए रजत पदक जीता। करीब 29 वर्षीय योगेश ने पहला थ्रो 42.22 मीटर, दूसरा 41.50 मीटर, तीसरा 41.55 मीटर, चौथा 40.33 मीटर और पांचवां 40.89 मीटर का फेंका। हालांकि योगेश ने 2021 में टोक्यो पैरा-ओलंपिक में एफ-56 डिस्कस थ्रो में शानदार प्रदर्शन करते हुए 44.38 मीटर की दूरी तक चक्का फेंक कर सिल्वर मेडल जीता था।

9 साल की उम्र में पैरालाइसिस

योगेश कथूनिया का जन्म 1997 में हुआ था। 2006 में महज 9 वर्ष की आयु में योगेश को पैरालाइसिस हो गया था। उसकी मां मीना देवी ने फिजियोथेरेपी सीखी और अपने बेटे को फिर से चलने में मदद की। योगेश ने दिल्ली के किरोड़ीमल कॉलेज से ग्रेजुएशन किया। वहां उसने डिस्कस थ्रो को अपने जीवन का हिस्सा बना लिया। योगेश ने अपनी मेहनत, लगन और निष्ठा से कई बार साबित किया कि सफलता केवल शरीर की मोहताज नहीं है। योगेश के दादा हुकमचंद सेना में सूबेदार रहे हैं और पिता ज्ञानचंद भी सेना में कैप्टन रहे।

योगेश के नाम कई उपलब्धियां

गौरतलब है कि योगेश ने बर्लिन में 2018 में हुई ओपन ग्रेंडप्रिक्स में डिस्कस थ्रो में स्वर्ण पदक जीता था। इंडोनेशिया में 2018 में हुए एशियन पैरा गेम्स में चौथे स्थान पर रहा था। पेरिस में 2019 में हुई ओपन ग्रेंडप्रिक्स डिस्कस थ्रो में स्वर्ण पदक जीता था। उसी साल दुबई में हुई वर्ल्ड चैंपियनशिप में कांस्य पदक जीता था। उसके बाद एशियन पैरा गेम्स-2023 में 42.13 मीटर के साथ रजत पदक हासिल किया था।

वापसी पर होगा भव्य स्वागत

योगेश के रजत पदक जीतने के बाद उसके घर के बाहर परिजनों ने नाच-गाकर जश्न मनाया। मिठाई बांटकर खुशी का इजहार किया। योगेश के पिता ज्ञानचंद के अनुसार यह रजत पदक पूरे देश का मेडल है। बेशक रंग बदलकर सुनहरा होता तो अधिक खुशी होती। हालांकि सिल्वर मेडल भी बड़ी बात है और अब भी बेहद खुश हैं। योगेश 9 सितंबर को वापिस लौटेगा। उसका एयरपोर्ट से बहादुरगढ़ तक भव्य स्वागत किया जाएगा। मां मीना देवी ने कहा कि सभी को उम्मीद गोल्ड की थी और योगेश ने बोला भी था, लेकिन मेरे लिए यह गोल्ड ही था और कल भी गोल्ड रहेगा।