ऐतिहासिक ढोसी पहाड़ी बनेगी पर्यटन केंद्र : ऋषि च्यवन की तपोस्थली पर अगले माह 57 करोड़ से बनेगा रोप-वे, राजस्थान जाने वाले पर्यटकों को रोकेंगे
नारनौल में नेशनल हाईवे इन्फ्रास्ट्रक्चर एवं लॉजिस्टिक कॉर्पोरेशन के तत्वावधान में ऐतिहासिक व धार्मिक महत्व के ढोसी के पहाड़ पर रोप-वे निर्माण की प्रक्रिया इस माह के अंत तक पूरी होने जा रही है।;

ऐतिहासिक ढोसी पहाड़ी बनेगी पर्यटन केंद्र : नारनौल में नेशनल हाईवे इन्फ्रास्ट्रक्चर एवं लॉजिस्टिक कॉर्पोरेशन के तत्वावधान में ऐतिहासिक व धार्मिक महत्व के ढोसी के पहाड़ पर रोप-वे निर्माण की प्रक्रिया इस माह के अंत तक पूरी होने जा रही है। विभाग की सूचना के मुताबिक अप्रैल के महीने में इस पर निर्माण का कार्य धरातल पर प्रारंभ कर दिया जाएगा। 57 करोड़ रुपये की लागत से तैयार होने वाला यह रोप-वे इस क्षेत्र में पहला रोप-वे होगा, जो ढोसी के पौराणिक महत्च के तीर्थ स्थल पर आम जनता की पहुंच सुगम बनाएगा।
पूर्व सीएम मनोहरलाल खट्टर ने की थी पर्यटन स्थल बनाने की घोषणा
नांगल चौधरी के तत्कालीन विधायक डॉ. अभय सिंह यादव के आग्रह पर तत्कालीन मुख्यमंत्री मनोहरलाल इस स्थल के व्यक्तिगत निरीक्षण के लिए हेलीकॉप्टर से सितम्बर 2018 में पहाड़ पर उतरे थे। उसी दिन उन्होंने इसे एक पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने के लिए घोषणा की थी। प्रारंभ में इस पहाड़ पर ऊपर चढ़ने के लिए पीडब्ल्यूडी विभाग की ओर से सड़क निर्माण की योजना बनी थी, लेकिन पहाड़ के वर्तमान स्वरूप को क्षति पहुंचने की संभावनाओं को देखते हुए बाद में राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण की ओर से इस पर रोप-वे निर्माण का फैसला हुआ, जो 57 करोड़ रुपये की लागत से अब तैयार किया जाएगा।
पहाड़ के ऊपर बन सकता है अंतर्राष्ट्रीय स्तर का प्राकृतिक उपचार केन्द्र
इस संदर्भ में पूर्व सिंचाई मंत्री डॉ. अभय सिंह यादव ने पर्यटन मंत्री हरियाणा को पत्र लिखकर इस स्थल को एक बहुआयामी पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने का सुझाव दिया है। इसकी विस्तृत जानकारी देते हुए पूर्व मंत्री ने बताया कि उन्होंने सरकार से आग्रह किया है कि पहाड़ की प्राकृतिक छटा को देखते हुए पहाड़ के ऊपर एक अंतर्राष्ट्रीय स्तर का प्राकृतिक उपचार केन्द्र स्थापित किया जाए। चारों तरफ से पहाड़ की चोटियों से घिरा हुआ, बीच का समतल स्थल अपने आप में ही एक स्वास्थ्यवर्धक मनमोहक तथा रमणीय स्थल है। जिस पर प्राकृतिक उपचार भविष्य में एक अन्तर्राष्ट्रीय आकर्षण का केंद्र बन सकता है। इसके साथ ही पहाड़ की ऊंची चोटियों पर कुछ समतल चट्टानें पैराग्लाइडिंग व रोप क्लाइम्बिंग जैसे एडवेंचर खेलों के लिए आकर्षण का केंद्र बन सकती हैं। यादव ने अपने पत्र लिखा है कि यह पहाड़ महर्षि च्यवन जैसे संत की तपो स्थली होने के अतिरिक्त महाभारत काल का यह पौराणिक महत्व का स्थल है। जहां पहाड़ पर मंदिर व चंद्रकूप जैसी जगहों को ऐतिहासिक और धार्मिक पर्यटन के लिए विकसित किया जा सकता है। वहीं पहाड़ पर विभिन्न प्रदेशों के शाकाहारी व्यंजनों के लिए एक आधुनिक फूड कोर्ट की व्यवस्था की जा सकती है। इसके साथ ही पहाड़ के नीचे पहाड़ की गोद में एक आधुनिक सुविधाओं से युक्त टूरिस्ट काम्प्लेक्स का निर्माण किया जा सकता है। जहां पर्यटकों के ठहराव की व्यवस्था हो सकती है।
नारनौल में कई ऐतिहासिक स्थल, राजस्थान जाने वाले पर्यटक रुक सकते हैं
पूर्व मंत्री का विचार है कि ढोसी को एक पर्यटन केन्द्र के रूप में विकसित करते हुए समस्त जिले के ऐतिहासिक महत्व के स्थलों को इससे जोड़ा जा सकता है। नारनौल की ऐतिहासिक इमारतें जैसे बीरबल का छत्ता, चोर गुंबद, जलमहल, शाहकुलीखां का मकबरा, मिर्जा अली की बावड़ी, महेंद्रगढ़ का किला व माधोगढ़ का रानी महल इत्यादि सभी ऐतिहासिक महत्व के स्थलों को इसके साथ जोड़ा जा सकता है। पूर्व मंत्री ने विशेष रूप से सर्दी के मौसम में राजस्थान को नारनौल से होकर जाने वाले हजारों पर्यटकों का जिक्र करते हुए कहा कि यह सभी पर्यटक ऐतिहासिक स्थलों को देखने राजस्थान के कई शहरों में जाते हैं। इसी कड़ी में यदि नारनौल में पर्यटन का विकास होता है, तो इन पर्यटकों का भी कुछ दिनों के लिए नारनौल में ठहराव हो सकता है, जो इस क्षेत्र में व्यापार व रोजगार की संभावनाएं बढ़ाएगा तथा महेंद्रगढ़ जिला देश के पर्यटन मानचित्र पर अपनी उपस्थिति दर्ज करवा सकता है। अपने पत्र में यादव ने यह भी सुझाव दिया है कि किसी अनुभवी व विख्यात एजेंसी की ओर से सरकारी व निजी संयुक्त भागीदारी में इस पर्यटन क्षेत्र का विकास करवाया जाए, ताकि इस क्षेत्र में पर्यटन का सतत् विकास होता रहे।
ढोसी पहाड़ी पर हुई थी च्यवनप्राश की खोज, महाभारत काल से जुड़ा इतिहास
हरियाणा और राजस्थान की सीमा पर स्थित ढोसी पहाड़ी कई कारणों से प्रसिद्ध है। यह पहाड़ी आयुर्वेद की खोज च्यवनप्राश से जुड़ी हुई है। मान्यता है कि यह पहाड़ी ऋषि च्यवन की तपोस्थली रही है और इस पहाड़ी पर ही पहली बार च्यवनप्राश बनाया गया था। इस पहाड़ी पर पांडव भी अपने अज्ञातवास के दौरान आए थे। इस पहाड़ी में आयुर्वेद के महान तत्व पाए जाते हैं।
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