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Haryana Assembly Elections: हरियाणा में इस साल का चुनाव चुनौतीपूर्ण रहने वाला है। एक बार फिर सत्ता पाने के लिए बीजेपी की दक्षिणी हरियाणा की 29 सीटों पर है, इसे लेकर पार्टी ने पहले से ही तैयारी शुरू कर दी थी।  

रोहतक, मोहन भारद्वाज। हरियाणा में 5 अक्टूबर को होने वाले विधानसभा चुनावों में तीसरी बार सत्ता पाने के लिए जीटी बेल्ट के साथ चार चेहरों से दक्षिणी हरियाणा की 29 सीटों पर बीजेपी की नजर है, जिनमें अब भी मेवात की तीन सीट बीजेपी के लिए बड़ी चुनौती रहेंगी। 2014 में पहली बार प्रदेश की सत्ता में आई बीजेपी ने 2019 में 41 सीटों से जीतकर दूसरी बार सरकार बनाई। बीजेपी को दो बार सत्ता तक पहुंचाने में दक्षिणी हरियाणा और जीटी बेल्ट का खास महत्व रहा।

जहां भाजपा के पास राव इंद्रजीत सिंह, कृष्ण पाल गुज्जर, प्रो रामबिलास शर्मा और राव नरबीर सिंह जैसे बड़े चेहरों की मौजूदगी कारगर साबित हुई है। अब बंसीलाल की राजनीतिक वारिश किरण चौधरी  और श्रुति को साथ लाकर भिवानी-महेंद्रगढ़, गुरुग्राम और फरीदाबाद लोकसभा की 29 सीटों में से 2019 में मिली 19 सीटों की संख्या में इजाफा करने का सपना देख रही है।

बीजेपी को उल्टा पड़ा था बीरेंद्र सिंह पर खेला दांव

बीजेपी ने 2014 के चुनाव से पहले न केवल प्रदेश कांग्रेस के दिग्गज नेता बीरेंद्र सिंह को अपने साथ मिलाया, बल्कि बिना चुनाव लड़े उन्हें राज्यसभा में भेजकर केंद्रीय कैबिनेट मंत्री भी बनाया। बीजेपी बीरेंद्र सिंह का चेहरा आगे कर जाट बेल्ट को साधना चाहती थी, परंतु बीरेंद्र सिंह का दांव बीजेपी को उल्टा पड़ गया। पहली बार चुनाव मैदान में उतरी बीरेंद्र सिंह की पत्नी प्रेमलता 2014 में तो जैसे तैसे जीत गई, लेकिन 2019 में  दुष्यंत चौटाला के सामने अपनी सीट नहीं बचा पाई।

जाट बेल्ट तो दूर जींद जिले और उचाना से सटी सीटों पर भी बीरेंद्र सिंह का जादू नहीं चल पाया और भाजपा को हार का सामना करना पड़ा। बीजेपी ने तो बीरेंद्र सिंह को केंद्रीय कैबिनेट मंत्री, पत्नी को विधायक और आईएएस बेटे को सांसद बना दिया, परंतु जाट बेल्ट में बीरेंद्र सिंह बीजेपी के लिए दोनों चुनावों में खोटे सिक्के ही साबित हुए।

किरण ने दोहराई बीरेंद्र सिंह की लाइन

बीजेपी में शामिल होते ही मोदी सरकार वन में कैबिनेट मंत्री बनने के बाद बीरेंद्र सिंह ने कहा था कि कांग्रेस में जो सम्मान 50 दशक में नहीं मिला, भाजपा ने चंद दिनों में उससे कहीं अधिक दे दिया। राज्यसभा के लिए चुने जाने के बाद किरण ने भी कुछ ऐसे ही शब्दों से बीजेपी का गुणगान किया।

भाजपा ने किरण को आगे कर दक्षिणी हरियाणा का हिस्सा माने जाने वाली भिवानी महेंद्रगढ़ सीट में आने वाली भिवानी व दादरी की अधिक से अधिक सीटों पर कमल खिलाने का सपना देख रही है। किरण भाजपा के इस सपने को पूरा करने में कितनी सफल होगी, यह तो चार अक्टूबर को विधानसभा चुनावों की गिनती होने के बाद ही पता चल पाएगा।

बड़े चेहरों में भाजपा से पीछे कांग्रेस

गुरुग्राम, फरीदाबाद, पलवल, नूंह, दादरी, रेवाड़ी, महेंद्रगढ़-नारनौल  और भिवानी में नई परिस्थितियों में कांग्रेस भाजपा से अब भी कमजोर दिखाई पड़ती है। कांग्रेस न केवल बड़े चेहरों के मामले में भाजपा से पीछे हैं, बल्कि संगठन के मामले में भी पिछड़ रही है। अहीरवाल की राजनीति में टॉप पर राव इंद्रजीत सिंह व दूसरे नंबर पर राव नरबीर सिंह का नाम आता है। फिलहाल दोनों ही भाजपा में हैं।

यहां कांग्रेस में कैप्टन अजय यादव को बड़ा चेहरा माना जाता है। जिनके मुकाबले भाजपा में प्रो. रामबिलास शर्मा, सुधा यादव  और अभय सिंह यादव जैसे नेताओं का नाम उछलने लगा है। पलवल और फरीदाबाद में कृष्णपाल गूजर, करण सिंह दलाल और महेंद्र प्रताप बड़े नेता माने जाते हैं। फिलहाल कृष्णपाल गुजर दोनों से कहीं आगे खड़े दिखाई देते हैं। महेंद्रगढ़ में रामबिलास शर्मा और  राव दान सिंह के बीच ही मुकाबला देखा जाता है। किरण और श्रुति के बीजेपी में आने से कांग्रेस दान सिंह के चेहरे से भाजपा को भिवानी महेंद्रगढ़ में कड़ी टक्कर दे पाएंगी, इसकी संभावनाएं कम ही दिखाई दे रही है।

2019 में जीती थी 19 सीट

साल 2019 के चुनाव में बीजेपी ने रेवाड़ी, गुरुग्राम, पलवल, फरीदाबाद, भिवानी, महेंद्रगढ़ और दादरी की 29 में से 19 सीटें जीती थी। चेहरे बदलने से भाजपा अपनी सबसे मजबूत मानी जाने वाली रेवाड़ी और बादशाहपुर की सीट नहीं बचा पाई थी। बादशाहपुर से तत्कालीन कैबिनेट मंत्री राव नरबीर सिंह और रेवाड़ी से विधायक रणधीर कापड़ीवास का टिकट कटा था।

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मेवात और दादरी में भाजपा अपना खाता भी नहीं खोल पाई थी। दादरी की दो सीटों में से एक निर्दलीय और एक जेजेपी के खाते में गई थी, जबकि मेवात की तीनों सीट कांग्रेस ने जीती थी। वहीं, भिवानी दादरी में बीजेपी को तीन सीट मिली थी। किरण के साथ आने के बाद से बीजेपी सभी 6 सीटों पर नजर लगाए बैठी हुई है।

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