Surajkund Fair: हरियाणा के फरीदाबाद में चल रहे सूरजकुंड मेले में साल 1899 में बने नक्काशीदार पलंग और डायनिंग टेबल लोगों के आकर्षण का केंद्र बना हुआ है। आंध्र प्रदेश के तिरुपति से पलंग लेकर पहुंचे हस्तशिल्प दौरा स्वामी का कहना है कि उनके पूर्वज ने इस पलंग को स्वतंत्रता सेनानियों लिए बनाया था। यह पलंग सूरजकुंड मेले में स्वतंत्रता की लड़ाई लड़ने वाले वीर-सपूतों की दास्तां को भी बयां कर रहा है।

हस्तशिल्प का यह काम पुश्तैनी है। वह लकड़ी के नक्काशीदार कुर्सी, टेबल, पलंग, भगवान की मूर्तियां आदि बनाते हैं। आजादी से पहले उनके पूर्वज तिरुपति के राजा-महराजाओं, जमींदार और अंग्रेज अफसर के लिए कई तरह के सामान बनाते थे। उस दौर के पैसे वालों और अंग्रेज अफसर में पलंग, डाइनिंग टेबल, आराम फरमाने वाली कुर्सी की अधिक मांग थी।

आंध्र प्रदेश में आज भी है इसका चलन

उन्होंने आगे बताया कि उनके कस्टमर के अनुसार पलंग और अन्य सामानों पर नक्काशी की जाती थी। लकड़ी के पलंग पर खरादे से सिरहाने की ओर भगवान की चित्र भी उकेरी जाती थी। डायनिंग टेबल पर भी हाथी, शेर, हिरण, पंछी आदि की चित्र बनाए जाते थे।  आंध्र प्रदेश के कई शहरों, गांवों, खासकर तिरुपति में यह चलन आज भी है। लोग लग्जरी बॉक्स वाले बेड के जगह पर लकड़ी के नक्काशीदार पलंग और लकड़ी के खरादे भगवान की मूर्ति आदि को पसंद करते हैं।

100 साल के मामा बताते हैं उस काल की कहानी

दौरा स्वामी ने बताया कि कला पचहारी नामक एक मामा अभी जीवित हैं और उनकी उम्र 100 साल से भी अधिक है। उनके मामा ने अपने पिता से लकड़ी से सामान बनाने की कला सीखी। उनके मामा अक्सर कहते हैं कि हमने गुलामी का काल देखा है। अंग्रेज अफसर किस कदर जुल्म ढाते थे। सामान बनवाकर पैसे तक नहीं देते थे और मारपीट भी करते थे।

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स्वतंत्रता सेनानियों की कहानी बयां कर रहा पलंग

दौरा स्वामी के मामा कहते हैं देश की आजादी की लड़ाई लड़ने वाले स्वतंत्रता सेनानियों के लिए उन्होंने निस्वार्थ भाव से कई पलंग और कुर्सी बनाए। अंग्रेज अफसर की नजरों से बचाकर उसे उनके घर या कार्यालय तक पहुंचाते थे। मेला में लाया गया पलंग देश की आजादी की लड़ाई की कहानी भी लोगों के बीच बयां कर रहा है।