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हरियाणा विधानसभा के पांच अक्टूबर को होने वाले चुनाव के लिए प्रचार तीन अक्टूबर की शाम खत्म हो जाएगा। अपने चुनावी योद्धाओं को जीतने के लिए महारथियों के शब्दबाणों की गूंज प्रदेश में गूंज रही है।

मोहन भारद्वाज, रोहतक। हरियाणा में पांच अक्टूबर को होने वाले मतदान से पहले सभी पार्टियों ने जीत के लिए अपनी पूरी ताकत झोंक दी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तीन रैली कर चुके हैं और तीन अक्टूबर को प्रचार खत्म होने से पहले एक रैली और होने की संभावना है। भाजपा की तरफ से अमित शाह, राजनाथ सिंह, नितिन गडकरी, योगी आदित्यनाथ जैसे बड़े चेहरों के अलावा हिमंता बिस्वा शर्मा, स्मृति ईरानी, भजनलाल शर्मा, मोहन लाल यादव के अलावा कई केंद्रीय नेता प्रदेश में चुनाव प्रचार कर रहे हैं।

कांग्रेस की तरफ से राहुल गांधी दो रैली कर चुके हैं तथा अब बहन प्रियंका के साथ रथ यात्रा पर सवार हो चुके हैं। अशोक गहलोत, सचिन पायलट, भूपेश बघेल, पवन खेड़ा जैसे नेता प्रचार की कमान संभाले हुए हैं। जेल से बाहर आने के बाद दिल्ली के सीएम का पद छोड़ चुके अरविंद केजरीवाल की गाड़ी का पहिया भी नियमित रूप से हरियाणा में घूम रहा है। इनेलो बसपा की तरफ से स्वयं ओमप्रकाश चौटाला व मायावती तो जजपा गठबंधन की तरफ से दुष्यंत चौटाला व चंद्रशेखर आजाद रावण रैलियां कर रहे हैं। चुनाव प्रचार में उतरे नेता अपनी अपनी पार्टी की जीत सुनिश्चित करने के लिए एक दूसरे पर हमला करने के लिए जमकर शब्द बाण छोड़ रहे हैं।

बागियों ने बढ़ाई दोनों पार्टियों की मुश्किलें

टिकट न मिलने से नाराज बागी नेता दोनों पार्टियों के लिए समस्या बने हुए हैं। कुछ बागी निर्दलीय चुनाव लड़ रहे हैं तो कुछ दूसरी पार्टियों में शामिल होकर अपनों को ही चुनौती दे रहे हैं। इतना ही नहीं, कुछ सीटों पर बागी पार्टी उम्मीदवारों का खेल बिगाड़ने की स्थिति में हैं। भले ही इनेलो व जजपा गठबंधन कर चुनाव मैदान में उतरी हो और आप पहली बार पूरी ताकत के साथ प्रदेश के चुनावी रण में अपनी ताल ठोक रही हो, परंतु प्रदेश की अधिकतर सीटों पर मुख्य मुकाबला भाजपा और कांग्रेस के बीच ही दिखाई दे रहा है।

कांग्रेस को विरोधियों से ज्यादा अपनो से खतरा 

कांग्रेस कुमारी सैलजा व भूपेंद्र सिंह हुड्डा के बीच मुख्यमंत्री पद लड़ाई से गुटों में बटी हुई है तथा आलाकमान के हस्तक्षेप के बाद भी दोनों नेताओं के बीच की दूरी कम नहीं हो पाई। जिस कारण राहुल गांधी की असंध में हुई रैली के अलावा दोनों नेता अभी तक मंच साझा नहीं कर पाए हैं। चुनाव लड़ रहे कांग्रेस नेताओं के विवादित बोल भी चुनाव में कांग्रेस के लिए मुश्किलें खड़ी कर रहे हैं।

नूंह में मामन खान का जालिमों को नूंह से बाहर भेजने, नीरज शर्मा व कुलदीप शर्मा का वोटों के बदले नौकरी देने, शमशेर गोगी का सरकार बनने पर पहले अपने व अपने रिश्तेदारों के घर भरने व सिंगला का ज्यादा बोलने पर राशन कार्ड कटवाने की, नारनौंद में हुड्डा समर्थक द्वारा कुमारी सैलजा पर जातिगत टिप्पणी करने, सांसद जेपी के महिलाओं को लेकर विवादित टिप्पणी करने और हरियाणा चुनाव के बीच अमेरिका में राहुल गांधी के आरक्षण व सिख पर दिए ब्यान अब कांग्रेस के गले की फांस बनते जा रहे हैं। नेताओं के विवादित बोलों से विपक्ष को भी कांग्रेस पर हमला करने का बड़ा हथियार दे दिया है।

भाजपा को डरा रहा एंटी इनकंबेंसी का डर

पिछले 10 साल से प्रदेश में राज कर रही भाजपा को पांच अक्टूबर को होने वाले चुनाव में एंटी इनकंबेंसी का डर सता रहा है। किसान आंदोलन का भूत इसी साल मई में हुए लोकसभा चुनावों के बाद भाजपा का पीछा नहीं छोड़ रहा है। 10 साल की एंटी इनकंबेंसी से बचने के लिए भाजपा ने लोकसभा चुनावों से ठीक पहले मनोहर लाल को हटाकर नायब सिंह सैनी को न केवल प्रदेश का मुख्यमंत्री बनाया, बल्कि उनकी अगुवाई में चुनाव लड़ने का ऐलान कर विपक्ष के दलित व पिछड़ा कार्ड की धार को कुंद करने का भी प्रयास किया। 

बनेंगे या लड़ेंगे अस्तित्व की लड़ाई

परिवार में हुए बिखराब के बाद 2019 के विधानसभा व 2024 के लोकसभा चुनाव हाशिये पर पहुंची इनेलो इस बार बसपा के साथ गठबंधन कर प्रदेश के चुनावी रण में उतरी है। 2019 के चुनाव में पहली बार ही नए झंडे व डंडे के साथ उतरे दुष्यंत चौटाला को 2024 के लोकसभा चुनावों में जनता ने आईना दिखाया तो दुष्यंत अकेले लड़ने की हिम्मत नहीं जुटा पाए और चंद्रशेखर आजाद रावण की पार्टी के साथ समझौता कर लिया। कांग्रेस के साथ मिलकर लोकसभा की एक सीट पर चुनाव लड़ने वाली आप भी सभी सीटों पर चुनाव लड़ रही है।

उचाना सीट पर खुद तिकोने मुकाबले में फंसे दुष्यंत चौटाला और अरविंद केजरीवाल को पार्टी के प्रदर्शन से बहुत उम्मीद हैं तथा दोनों ही नेता प्रदेश में बनने वाली सरकार में की फैक्टर होने का दावा कर रहे हैं। बससा से हुए गठबंधन से उत्साहित अभय चौटाला इनेलो का प्रदेश में सबसे बड़ी पार्टी होने का दावा कर रहे हैं। ऐसे में देखना होगा कि 8 अक्टूबर को मतगणना के बाद दो पार्टियों में माने जा रहे मुख्य मुकाबले के बीच कोई बड़ा चमत्कार करने में सफल रहती है या फिर चुनाव लड़ने की कवायद अस्तित्व की लड़ाई तक सीमित रह जाती है।

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