रोहतक, मोहन भारद्वाज। अक्सर अपने फैसलों से सभी को चौकाने वाली भाजपा की रणनीति हरियाणा में अपने माइक्रो मैनेजमेंट फॉर्मूले से प्रदेश में पहली बार सत्ता की हैट्रिक लगाने में सफल रही। भाजपा ने लोकसभा चुनावों से पहले मार्च माह में सीएम का चेहरा बदला और मनोहर लाल को हटाकर नायब सैनी को प्रदेश की कमान सौंपकर सभी को चौका दिया था। लोकसभा चुनावों में पांच सीट गंवाने के बाद भी भाजपा अपनी रणनीति पर कायम रही और चुनावों के बाद ओमप्रकाश धनखड़ जैसे बड़े चेहरे को प्रदेशाध्यक्ष के पद से हटाकर सोनीपत से लोकसभा चुनाव हारने वाले नए चेहरे मोहन लाल बड़ौली को हरियाणा में पार्टी की कमान सौंपकर एक बार फिर सभी को चौका दिया।
विधानसभा के उम्मीदवार घोषित करते समय पार्टी के कद्दावर नेता प्रो. रामबिलास का टिकट काटकर कंवर सिंह यादव के रूप में एक नए चेहरे को राव दान सिंह जैसे बड़े नेता के सामने महेंद्रगढ़ से चुनाव मैदान में उतारा। कुछ निवर्तमान विधायकों की टिकट काटे को कुछ की सीट बदली। खास बात यह रही कि जिन सीटों पर भाजपा ने बदलाव का दांव खेला, वहां–वहां भाजपा कमल खिलाने में कामयाब रही।
भाजपा ने ये चेहरे बदले
नायब सैनी मुख्यमंत्री बनने के बाद मनोहर लाल की सीट करनाल से चुनाव लड़ा और विधायक बने। भाजपा ने बिना किसी झिझक के नायब सैनी की सीट बदलकर लाडवा से उम्मीदवार बना दिया। जिसे पर विरोधियों ने नायब सैनी के साथ भाजपा को भी कटघरे में खड़ा किया। इसके बाद दूसरा बड़ा फैसला लेते हुए प्रदेश में भाजपा के भीष्म पितामह कहे जाने वाले प्रो. रामबिलास शर्मा की महेंद्रगढ़ से टिकट काटकर हुड्डा समर्थक एवं कांग्रेस के कद्दावर नेताओं में शुमार राव दान सिंह के सामने नए चेहरे कंवर सिंह यादव को मैदान में उतारकर सभी को आश्चर्यचकित किया। करीब दो दशक बाद भाजपा में वापसी करने वाले नारनौंद के निवर्तमान विधायक रामकुमार गौतम की सीट बदलकर उन्हें सफीदों भेज दिया।
मनोहर सरकार वन में कैबिनेट मंत्री रही कविता जैन की सोनीपत से टिकट काटकर लोकसभा चुनावों के बाद भाजपा में आए सोनीपत के मेयर निखिल मैदान को अपना उम्मीदवार बना दिया। नायब सरकार में मंत्री बने संजय सिंह की जगह सोहना से तेजपाल तंवर को अपना उम्मीदवार बनाया। विधानसभा उपाध्यक्ष रणबीर गंगवा को नलवा से बरवाला भेजा और नलवा में नए चेहरे रणधीर पनिहार को अपना उम्मीदवार बना दिया। मनोहर सरकार वन का पार्ट रहे कृष्ण बेदी को शाहबाद से नरवाना से आरक्षित सीट से मैदान में उतारा।
देवेंद्र बबली को ले डूबा ओवर कॉन्फिडेंस
मनोहर सरकार में मंत्री रहे देवेंद्र बबली ने जजपा की टिकट पर एक लाख से अधिक वोट हासिल कर प्रदेश में सबसे बड़ी जीत हासिल की थी। 2019 में टोहाना विधानसभा में पड़े 1,77,622 में से 56.72 प्रतिशत वोट हासिल किए थे। पंचायत मंत्री रहते हुए देवेंद्र बबली का सरपंचों के साथ विवाद हुआ। किसान आंदोलन को लेकर भी देवेंद्र बबली आक्रामक रहे। जजपा के सरकार से बाहर होने के बाद देवेंद्र बबली भाजपा के साथ रहे, परंतु लोकसभा चुनावों में सिरसा से कांग्रेस प्रत्याशी कुमारी सैलजा का समर्थन किया।
लोकसभा चुनावों के बाद कांग्रेस से टिकट की गारंटी नहीं मिली, तो भाजपा में शामिल हो गए। सुभाष बराला के राज्यसभा में जाने के बाद भाजपा ने देवेंद्र बबली को टोहाना से अपना उम्मीदवार बना दिया। आठ अक्टूबर को आए नतीजों में देवेंद्र बबली कांग्रेस के परमवीर सिंह से 10836 वोटों से चुनाव हार गए। कांग्रेस के परमवीर सिंह को 88522 व भाजपा के देवेंद्र बबली को 77686 वोट मिले।
देवीलाल परिवार के बड़े चेहरे हारे, विधानसभा पहुंचे दो युवा
हरियाणा में लोकसभा की ही तरह 2024 के विधानसभा चुनावों के परिणाम भी आर्श्चय जनक रहे। देवीलाल की राजनीतिक विरासत के वारिस रहे ओमप्रकाश चौटाला के परिवार में 2019 में बिखराव हुआ तथा अजय की अगुवाई में दुष्यंत ने जननायक जनता पार्टी बना ली। दुष्यंत की अगुवाई में 2019 में अलग होने के बाद पहला विधानसभा चुनाव लड़ा और 10 सीटें जीतकर दुष्यंत मनोहर सरकार में डिप्टी सीएम बने। मार्च में मनोहर की जगह नायब सैनी को प्रदेश की सत्ता सौंपने के साथ भाजपा ने दुष्यंत को भी गठबंधन सरकार से अलग कर दिया।
2019 में उचाना से बांगर के शेर कहे जाने वाले बीरेंद्र सिंह की पत्नी प्रेमलता को हराकर विधानसभा पहुंचे, दुष्यंत 2024 में उचाना से अपनी जमानत भी नहीं बचा पाए। 2024 के चुनाव में देवीलाल परिवार की तीन पीढ़ियां एक साथ चुनाव हारी, हालांकि दो युवा चेहरे पहली बार विधानसभा पहुंचने में सफल रहे।
जिनमें भाजपा छोड़कर इनेलो में आए डबवाली से आदित्य देवीलाल चौटाला व रानिया से अभय चौटाला के बेटे अर्जुन चौटाला ने जीत दर्ज की। जबकि उचाना से दुष्यंत चौटाला अपनी जमानत भी नहीं बचा पाए। अर्जुन चौटाला ने देवीलाल के बेटे व अपने दादा रणजीत चौटाला तो आदित्य ने देवीलाल परिवार के सदस्य अमित सिहाग को हराया। देवीलाल परिवार से चुनाव हारने वालों में दिग्विजय चौटाला, सुनैना चौटाला का नाम भी शामिल है।
राजनीतिक घरानों को मतदाताओं ने नकारा
2024 के विधानसभा चुनाव में प्रदेश के बड़े राजनीतिक घरानों को प्रदेश की जनता ने नकार दिया। 2024 के चुनाव में पूर्व मुख्यमंत्री देवीलाल, भजनलाल, ओमप्रकाश चौटाला, बंसीलाल, राव बीरेंद्र सिंह के परिवार चुनाव लड़ रहे थे, जिनमें से तोशाम से बंसीलाल की पौत्री ने भाजपा की टिकट पर अपने कजिन कांग्रेस उम्मीदवार अनिरुद्ध चौधरी को हराया। पहली बार भाजपा की टिकट पर चुनाव मैदान में उतरी राव बीरेंद्र सिंह की पौत्री एवं केंद्रीय मंत्री राव इंद्रजीत सिंह की बेटी आरती राव चुनाव जीतने में सफल रही।
उचाना में बांगड़ के शेर चौ. बीरेंद्र सिंह व देवीलाल परिवार को एक साथ हार का मुंह देखना पड़ा। यहां भाजपा की टिकट पर पहली बार चुनाव मैदान में उतरे देवेंद्र अत्री ने चौ. बीरेंद्र सिंह के बेटे कांग्रेस उम्मीदवार एवं हिसार के पूर्व सांसद बृजेंद्र सिंह को 39 वोटों से हरा दिया। यहां देवीलाल के परिवार से तीसरी बार चुनाव मैदान में उतरे दुष्यंत चौटाला 10 हजार का आंकड़ा भी नहीं छू पाए।
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पूर्व मुख्यमंत्री भजनलाल का गढ़ आदमपुर भी 2024 में ढह गया तथा भजनलाल के पौत्र एवं भाजपा उम्मीदवार भव्य बिश्नोई पहली बार चुनाव में उतरे कांग्रेस उम्मीदवार पूर्व आईएएस चंद्रप्रकाश में 565 वोटों से चुनाव हार गए। हालांकि, पंचकूला से भजनलाल के बेटे एवं पूर्व डिप्टी सीएम चंद्रमोहन कांग्रेस की टिकट पर जीतने में सफल रहे। 2024 में पूर्व मुख्यमंत्रियों व बड़े राजनीतिक घरानों के डेढ़ दर्जन से अधिक सदस्य चुनाव लड़ रहे थे। बंशीलाल व राव बीरेंद्र सिंह को छोड़ दे तो सभी को हार का मुंह देखना पड़ा।