'गड्डे आली गजबन्न छोरी बहादुरगढ़ का बम, बिजली सी टूट पड़ी मारे गए हम...' यह गाना हरियाणवी फिल्म चंद्रावल से है। यह फिल्म मार्च 1984 में रिलीज हुई थी, जिसके बाद बच्चे-बच्चे की जुबां पर बहादुरगढ़ का नाम चढ़ गया था। आप भी हरियाणा की इस औद्योगिक नगरी बहादुरगढ़ का नाम जानते होंगे, लेकिन क्या आप इसके नाम के पीछे की कहानी भी जानते हैं।

अब आप सोच रहे होंगे कि शायद बहादुरगढ़ का नाम बहादुरी की वजह से रखा गया होगा, लेकिन ऐसा नहीं है। दरअसल इस शहर की कहानी अजीब है, जिसे सुनकर हरियाणा की एक्ट्रेस 'चंद्रावल' का भी हैरान होना लाजमी है। तो देरी किस बात, बताते हैं कि बहादुरगढ़ का नाम कैसे पड़ा...

जागीर में मिला था बहादुरगढ़ शहर

इतिहासकारों का कहना है कि इस शहर की स्थापना मुगल शासक आलमगिरी द्वितीय ने की थी। उन्होंने दिल्ली सल्तनत की कमान 1754 ईस्वी में संभाली थी। सुल्तान बनने के बाद आलमगिरी को ऐसे लोगों की जरूरत थी, जो कि उसके विश्वसनीय बने रहे।

इसी कड़ी में उन्होंने इस शहर को जागीर के रूप में फर्रुखनगर के बलूच शासक बहादुरखान और तेज खान को दे दिया था। पहले इस शहर को शराफाबाद के नाम से जाना जाता था, लेकिन बहादुर खान के नाम की वजह से इसे बहादुरगढ़ का नाम रख दिया गया। उसने यहां पर किला भी बनवाया, जिसे बहादुरगढ़ किले के नाम से जाना गया।

बहादुरी दिखाकर बहादुरगढ़ को कब्जे में लिया

करीब 40 सालों तक बहादुरगढ़ पर बलूच सेनाओं का कब्जा रहा। 1793 में महाराष्ट्र से निकले मराठा वंश सिंधिया ने बलूच सेना को पराजित कर बहादुरगढ़ पर कब्जा कर लिया। बावजूद इसके इस शहर को बहादुरगढ़ के नाम में कोई बदलाव नहीं किया गया। ब्रिटिश शासन ने 1803 में सिंधिया पर हमला किया। इसमें सिधिंया को हार का सामना करना पड़ा, जिसके बाद संधि हुई। इस संधि के अनुसार, बहादुरगढ़ का नियंत्रण झज्जर के नवाब मोहम्मद इस्माइल खान को सौंप दिया गया।

बहादुरी दिखाने पर बहादुरगढ़ से वापस ले लिया कब्जा

अंग्रेजों ने बहादुरगढ़ का नियंत्रण नवाबों को दे दिया, लेकिन 1857 के स्वतंत्रता संग्राम में नवाबों ने भी बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया। अंग्रेजों ने बादशाह बहादुर शाह का समर्थन करने वालों को घेर लिया। इनमें कई क्रांतिकारियों को फांसी दी गई, कई क्रांतिकारियों को जेल की सलाखों के पीछे धकेल दिया।

बहादुरगढ़ के नवाब भी स्वतंत्रता संग्राम में शामिल हुए थे, लेकिन अंग्रेजों के सामने आत्मसमर्पण कर दिया। अंग्रेजों ने उसकी जान बख्श दी, लेकिन बहादुरी दिखाने के लिए बहादुरगढ़ का कब्जा वापस ले लिया। उसे मासिक पेंशन पर रखकर लाहौर भेज दिया, जबकि बहादुरगढ़ के साथ पूरे झज्जर को राज्य के रूप में समाप्त कर दिया।

आजादी के 40 साल बाद झज्जर को मिला राज्य का दर्जा

देश को अंग्रेजों के शासन से मुक्ति मिलने के 40 साल बाद 1997 को झज्जर को जिले का दर्जा दिया गया। बहादुरगढ़ झज्जर जिले के अंतर्गत आता है। यह आर्थिक दृष्टि के अलावा जनसंख्या, शिक्षा और प्रशासनिक हिसाब से भी झज्जर से आगे हैं। चूंकि यह दिल्ली से बेहद नजदीक है, लिहाजा आने वाले समय में बहादुरगढ़ का हरियाणा के सबसे समृद्ध इलाकों में शुमार होना तय है।

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