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हरियाणा में विस चुनाव से पहले एक बार फिर सिसासी दांव पेंच शुरू हो गई है। 2018 में बसपा के साथ किया समझौता महज 9 माह चला था। 20 प्रतिशत दलित वोटरों को साधने के लिए अभय चौटाला ने विस चुनाव से पहले  एक बार फिर हाथी पर चढ़ने का मन बना लिया है।

मनोज भल्ला, रोहतक। हरियाणा में जैसे ही लोकसभा और विधानसभा चुनावों की रणभेरी बजती है बहुजन समाज पार्टी की सुप्रीमो मायावती का हाथी चिंघाड़ने लगता है। यह हाथी हर बार नई-नई सवारियों को अपनी पीठ पर बैठाता है और चुनाव संपन्न होते ही सवारियों को पटककर वापस अपनी सुप्रीमो के पास उत्तर प्रदेश लौट जाता है। मायावती का हाथी एक बार फिर हरियाणा लौट आया है और इस बार इंडियन नेशनल लोकदल के नेता अभय चौटाला इसकी सवारी करेंगे। अभय चौटाला 2018 में इस हाथी पर पहले भी सवारी कर चुके हैं लेकिन 9 महीने बाद ही हाथी ने उन्हें अपनी पीठ से गिरा दिया था। 5 साल बाद एक बार फिर अभय इस हाथी की सवारी करेंगे। इसकी आधिकारिक घोषणा 11 जुलाई को चंडीगढ़ में हो सकती है।

लखनऊ में लिखी समझौते की पटकथा

गठबंधन तोड़ने की चैंपियन मायावती एक बार फिर हरियाणा में होने होने वाले विधानसभा चुनावों को देखकर एक्टिव मोड में आ गई हैं। कई दिनों की माथापच्ची के बाद उन्होंने लखनऊ में अभय चौटाला से मुलाकात की और इनेलो से चुनावी गठबंधन कर लिया। 2018 में मायावती ने अभय चौटाला को राखी बांधकर मजबूत गठबंधन का संकेत दिया था लेकिन 9 महीने बाद ही यह समझौता टूट गया। अगले माह रक्षाबंधन आने वाला है और मायावती एक बार फिर अभय चौटाला को सियासी राखी बांधेंगी। हरियाणा में 2024 के लोकसभा चुनाव में बसपा और इनेलो को एक भी सीट नहीं मिली थी। अभय चौटाला और मायावती दोनों ही अपने-अपने प्रदेशों में कमजोर हैं और दोनों का जनाधार तेजी से शून्य की ओर जा रहा है। 2024 के लोकसभा चुनाव में इनेलो का 1.84 और बसपा का 1.23 वोट प्रतिशत रहा। ऐसी स्थिति में दोनों दलों ने एक बार फिर हरियाणा में एक साथ चुनाव लड़ने का समझौता किया है।

मायावती कई दलों से कर चुकी हैं गठबंधन

उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री और बसपा सुप्रीमो मायावती हरियाणा में पहले भी कई राजनीतिक दलों से गठबंधन कर चुकी हैं लेकिन उन्हें गठबंधन कभी रास नहीं आया। उनका हर गठबंधन कभी एक साल से ज्यादा नहीं चला। चौटाला परिवार से उन्होंने तीसरी बार गठबंधन किया है। वे दो बार अभय चौटाला और एक बार दुष्यंत चौटाला के साथ गठबंधन कर चुकी हैँ। 1998 में उन्होंने पहली बार इनेलो के साथ समझौता किया था जो कुछ समय बाद टूट गया। 2009 में मायावती ने कुलदीप बिश्नोई की पार्टी हजकां के साथ गठबंधन किया जो ज्यादा दिन नहीं टिक पाया। उसके बाद 2018 में एक बार फिर इनेलो के साथ गठबंधन किया जो 9 महीने में ही टूट गया। 2019 में मायावती ने राजकुमार सैनी की पार्टी लोकतंत्र सुरक्षा पार्टी से चुनावी गठबंधन किया लेकिन यह गठबंधन केवल एक महीने बाद ही टूट गया। इसके बाद बसपा सुप्रीमो ने जननायक जनता पार्टी के दुष्यंत चौटाला से समझौते की घोषणा की थी लेकिन लखनऊ पहुंचते ही उन्होंने एक महीने में इस समझौते को तोड़ दिया। मायावती का आरोप था कि दुष्यंत चौटाला ने सीटों के बंटवारे में गड़बड़ी की है।

हरियाणा के 20 प्रतिशत दलित वोटरों पर नजर

दरअसल मायावती की नजरें हमेशा हरियाणा के दलित वोट बैंक पर रही हैं। हरियाणा में लगभग 20 प्रतिशत दलित वोट बैंक है। जीटी बेल्ट, फतेहाबाद, सिरसा सहित कई जिलों में दलितों की अच्छी खासी संख्या है। एक समय हरियाणा में बहुजन समाज पार्टी का 15 फीसदी तक वोट बैंक था जो धीरे-धीरे कम होता चला गया। बसपा के प्रत्याशियों ने लोकसभा और विधानसभा चुनाव में कई बार अच्छा प्रदर्शन भी किया। हर विधानसभा क्षेत्र में बसपा का थोड़ा बहुत वोट बैंक है। पार्टी ने अपनी स्थिति मजबूत करने के लिए कुछ दिनों पहले ही पुराने प्रदेशाध्यक्ष की जगह धर्मपाल तिगरा को बसपा की कमान सौंपी हैं जिनका जीटी बेल्ट में अच्छा खासा प्रभाव है।

बसपा के पहले और आखिरी सांसद थे अमन नागर

पिछले चार दशक में बहुजन समाज पार्टी ने हरियाणा में अनेक चुनाव लड़े हैं लेकिन 1998 के बाद पार्टी का कोई भी उम्मीदवार संसद तक नहीं पहुंच पाया। 1998 में अमन नागरा बसपा के पहले और आखिरी निर्वाचित सांसद थे। कहा जाता है कि हाथी का पांव जमाने में अमन नागरा की अहम भूमिका थी। आठ चुनाव हारने के बाद उन्होंने अंबाला से भाजपा प्रत्याशी को हराकर जीत हासिल की थी। मायावती के मुंह मोड़ने के बाद अमन नागरा राजनीतिक हाशिए पर चले गए। इसके बाद बसपा का कोई प्रत्याशी लोकसभा चुनाव जीत नहीं पाया। प्रदेश में बसपा के अब तक 5 विधायक निर्वाचित हुए हैं। 2014 में टेकचंद शर्मा विधायक चुने गए थे। उसके बाद बसपा को किसी चुनाव में सफलता नहीं मिली।

17 आरक्षित सीटों पर मायावती की नजर

हरियाणा की 90 विधानसभा सीटों में 17 विधानसभा सीटें आरक्षित हैं। मायावती इन सभी सीटों पर अपने उम्मीदवार खड़े करना चाहती हैं। सिरसा और फतेहाबाद में दलितों की संख्या सबसे ज्यादा है इसलिए गठबंधन के अनुसार मायावती यहां से बसपा के उम्मीदवार मैदान में उतरेंगी। उनकी निगाहें अंबाला और दक्षिण हरियाणा की कुछ सीटों पर भी है। बताया जा रहा है मायावती 35 से अधिक सीटों पर अपने उम्मीदवार मैदान में उतरेंगी। इनेलो और बसपा की योजना जीतने से अधिक दलित और अन्य जातिगत वोटबैंक में सेंध लगाने की है। दलित वोटबैंक पर कांग्रेस और भाजपा का भी अच्छा खासा प्रभाव है जिसे बसपा अपनी ओर करना चाहती है।

कब किससे किया मायवती ने समझौता

1998  ओमप्रकाश चौटाला इनेलो
2009  कुलदीप बिश्नोई हजकां
2018  अभय चौटाला  इनेलो
2019  राजकुमार सैनी लोकतंत्र सुरक्षा पार्टी
2019  दुष्यंत चौटाला  जजपा
2024  अभय चौटाला इनेलो

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