सुभाष शर्मा, अंबाला: कस्बे में महंत हिना अब अपनी गुरु चंद्रकांता की सेवा को आगे बढ़ाने में कोई कसर नहीं छोड़ रही। उनकी सेवाओं की चर्चा अब पूरे कस्बे में हो रही है। अब हिना किन्नर 100 साल पुरानी गद्दी को संभाल रही है। उन्हें डेरे का प्रमुख बनाया गया है। समाज में यह धारणा है कि यदि किन्नर ने किसी को दिल से दुआ दी तो वो खाली नहीं जाती। त्यौहार, शादी ब्याह और घर में नन्हे मेहमानों के आने पर किन्नर अक्सर नाच गाकर नजराना मांगते हैं । कई दशक तक महंत चंद्रकांता की अगुवाई में किन्नर समाज बधाई लेता रहा है। अब 35 वर्षीय हिना महंत इस गद्दी पर आसीन है। महंत हिना ने अपने समुदाय के काफी अनछुए पहलुओं पर बातचीत की।

6 महीने की थी हिना, जब परिवार ने छोड़ा

गद्दी नसीन हिना महंत ने दुखी मन से बताया कि उसे पता ही नहीं है कि उसके माता पिता कौन है? उन्हें तो यह तक मालूम नहीं कि उनका जन्म किस शहर में हुआ, किस तारीख, किस साल में हुआ। उसने अपने माता पिता का चेहरा तक याद नहीं। बस उसे डेरे पर यही बताया कि जब वह छह महीने की थी, तब उसके माता पिता उसे यहां छोड़ गए थे। हिना ने बताया कि उसे डेरे में रहने वाली दादी शबनम ने पाला। दादी शबनम ने ही उसे बताया कि उसका नाम मनजीत कौर है। बाद में डेरे में उनका नाम बदलकर हिना रखा गया। शबनम दादी ने उसका बहुत ही प्यार से पालन पोषण किया।

100 साल से भी अधिक पुराना है डेरा

कस्बे में किन्नर समाज का डेरा 100 साल से भी अधिक पुराना है। कहते है कि पहले जिले में ही किन्नर समाज का डेरा हुआ करता था, वहीं से किन्नरों को संख्या के हिसाब से बधाई मांगने के लिए गांव बांटे गए थे। बाद में फिर साहा, मुलाना, बराड़ा में अलग-अलग डेरे बनाए गए, लेकिन सभी डेरे अंबाला डेरे से जुड़े हुए है। हिना ने बताया कि पहले मुलाना गद्दी पर उनकी गुरु चंद्रकांता महंत थी। कुछ साल पहले उनकी मृत्यु के बाद अब वह गद्दी पर बैठी है। इस समय उनके साथ तीन किन्नर और भी है। डेरे में किन्नरी की संख्या काम के हिसाब से घटती बढ़ती रहती है। वह पूजा पाठ में विश्वास करती है। किन्नर समाज बहुचरा देवी की भक्ति करता है। बहुचरा देवी उनकी कुल देवी है। उनकी उन में विशेष आस्था है। बहुचरा देवी जिन्हें मुर्गे वाली माता कहा जाता है, उनका स्थान उज्जैन में है।

धर्म पद्धति के अनुसार होता है संस्कार

पहले समाज में एक धारणा थी कि किन्नर समाज में जब किसी की मृत्यु होती है तो उसे ताड़ना दी जाती है। यहां तक कि उसका अंतिम संस्कार गुप्त रखा जाता है। मृतक का अग्निदाह किया जाता था या उसे दफन किया जाता था। यहां कहा जाता रहा है कि मृतक किन्नर को पीटा जाता है। इसके पीछे यह भी धारणा थी कि वह दोबारा पृथ्वी पर किन्नर के रूप में पैदा न हो। अब इस धारणा के बारे में हिना ने बताया कि यह पुरानी बात रही होगी, अब ऐसा नहीं है। यदि मृतक किन्नर हिन्दू है तो उसका अन्तिम संस्कार हिन्दू पद्धति के अनुसार होगा और यदि मुस्लिम है तो उसका अंतिम संस्कार मुस्लिम पद्धति से होगा।