Janmashtami 2024: हरियाणाा का 'श्री हरि' यानी भगवान कृष्ण से गहरा नाता, ये जगह कान्हा की लीलाओं की रही साक्षी

Janmashtami 2024: 26 अगस्त को जन्माष्टमी का पर्व धूमधाम से मनाया जाएगा। यहां जानिये हरियाणा के ऐसे प्राचीन मंदिरों के बारे में, जिनका कान्हा जी से सीधा संबंध...;

By :  Amit Kumar
Update:2024-08-25 16:52 IST
हरियाणा के प्रसिद्ध मंदिर, जिनका कान्हा से गहरा नाता।Janmashtami 2024 Haryana
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Janmashtami 2024: भगवान श्रीकृष्ण से हरियाणा की धरती का गहरा नाता है। इस पवित्र धरती पर कई ऐसे प्राचीन स्थल हैं, जो कि कान्हा की लीलाओं की साक्षी रही हैं। 26 अगस्त को जन्माष्टमी का पर्व धूमधाम से मनाया जाएगा। ऐसे में इस जन्माष्टमी पर आपको हरियाणा के ऐसे प्राचीन मंदिरों के बारे में बताने जा रहे हैं, जिनका भगवान कृष्ण से सीधा संबंध रहा है। भक्त इन धार्मिक स्थलों पर आकर स्वयं को धन्य महसूस करते हैं। अगर कभी आपका भी हरियाणा आना हो, तो कान्हा से जुड़े इन धार्मिक स्थलों पर अवश्य जाना चाहिए। नीचे जानिये श्रीकृष्ण से जुड़े हरियाणा के धार्मिक स्थलों के बारे में...

करनाल का अलावला तीर्थ
करनाल का अलावला तीर्थ।

करनाल स्थित माता शाकुंभरी तीर्थ का भी भगवान कृष्ण से सीधा संबंध है। मान्यता के अनुसार, भगवान कृष्ण ने महाभारत युद्ध में हिस्सा लेने के लिए कुरुक्षेत्र का रूख किया था। उस वक्त पांडवों ने इसी स्थान पर उनका स्वागत करने के लिए स्वागत द्वार बनाया था। भगवान कृष्ण को हरियाली से भरपूर यह स्थान बेहद पसंद आया था। आज भी इस स्थान को प्राचीन कृष्ण द्वार के रूप में जाना जाता है। मान्यता ये भी है कि श्रीराम के पुत्र लव-कुश ने भी अलावला में लंबा समय गुजारा था। ग्रामीणों का कहना है कि पहले इस गांव को लवकुशपुरा के नाम से पहचाना जाता था, लेकिन अपभ्रंश के चलते लोग इसे अलावला के नाम से पुकारने लगे। ग्रामीणों की मांग है कि इस गांव का नाम लवकुशपुरा ही होना चाहिए।

बहादुरगढ़ का मुरली मनोहर मंदिर
मुरली मनोहर मंदिर, बहादुरगढ़।

दिल्ली से करीब 20 किलोमीटर की दूरी पर स्थित बहादुरगढ़ जिले पर भी भगवान कृष्ण की कृपा रही है। बताया जाता है कि बहादुरगढ़ के मुरली मनोहर मंदिर का निर्माण तो स्वयं भगवान कृष्ण की इच्छा से हुआ था। बताया जाता है कि करीब 400 साल पहले राजस्थान से राधा-कृष्ण की प्रतिमाएं मंगवाई थी। यह प्रतिमाएं पंजाब जानी थी। इन प्रतिमाओं को बैलगाड़ी से लाया जा रहा था। बहादुरगढ़ पहुंचने पर अचानक बैलगाड़ी में सवार दोनों लोगों को गहरी निद्रा आ गई। विश्राम के बाद जब उनकी आंख खुली तो बैलगाड़ी आगे नहीं बढ़ी। इस पर जब प्रतिमाओं को हिलाने डुलाने की कोशिश की गई, तो भी सफलता नहीं मिली। इस पर पंडितों को बुलाया गया। पंडितों ने कहा कि कृष्ण और राधा रानी इसी स्थान पर विराजमान होना चाहते हैं। यह सुनकर सेठ ने भी स्वीकृति दे दी। इस मंदिर के दर्शन करने के लिए दूर-दूर से भी लोग भारी संख्या में पहुंचते हैं।

कैथल स्थित ग्यारह रुद्री मंदिर
कैथल का श्री ग्यारह रुद्री शिव मंदिर।

कैथल स्थित ग्यारह रुद्री मंदिर का भी भगवान कृष्ण से गहरा संबंध है। बताया जाता है कि महाभारत का युद्ध शुरू होने से पहले अर्जुन ने इसी स्थान पर शिव अराधना की थी ताकि वे महादेव से पाशुपत अस्त्र प्राप्त कर सकें। भगवान शिव ने इस स्थान पर अर्जुन को दर्शन देकर उनकी मन्नत पूरी की थी। महाभारत का युद्ध समाप्त होने के बाद श्रीकृष्ण ने इसी स्थान पर 11 रुद्रों की स्थापना की थी ताकि वीरगति को प्राप्त सैनिकों की आत्मा को शांति मिले। हर जन्माष्टमी पर इस मंदिर को बेहद भव्य तरीके से सजाया जाता है।

कुरुक्षेत्र में हुआ राधा-कृष्ण का अंतिम मिलन
ब्रह्मसरोवर तट पर तमाल वृक्ष की छांव में हुआ कृष्ण-राधा रानी का आखिरी मिलन।

हरियाणा का कुरुक्षेत्र जिला, जहां महाभारत का युद्ध हुआ था, वहीं राधा-कृष्ण के आखिरी मिलन का भी साक्षी रहा है। थानेसर स्थित ब्रह्मसरोवर के उत्तर तट पर गौड़िया मठ में तमाल वृक्ष है, जिसकी छाया में राधा-कृष्ण का आखिरी मिलन हुआ था। इसका उल्लेख श्रीमद्भागवत पुराण में भी है। इसके अलावा 5 साल की उम्र में भी भगवान कृष्ण कुरुक्षेत्र आए थे। यहां क्लिक कर पढ़िये इसके पीछे की वजह...

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