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पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी ने हरियाणा के किसानों से बात करके उनकी आवाज को संसद में उठाने का भरोसा दिया। हालांकि पश्चिम बंगाल के किसानों की स्थिति पर नजर डालें तो यह दांव पूरी तरह से सियासी नजर आ रहा है। पढ़िये यह रिपोर्ट...

पश्चिम बंगाल से तृणमूल कांग्रेस का पांच सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल सोमवार को जींद के दातासिंह वाला बॉर्डर पर पहुंचा। यहां टीएमसी सांसदों ने किसानों की समस्या सुनकर उनकी बात टीएमसी प्रमुख ममता बनर्जी से कराई। ममता बनर्जी ने किसानों को आश्वासन दिया कि वे उनकी आवाज को संसद के भीतर उठाएंगी। अब सवाल आता है कि जब हरियाणा और पंजाब के नेता अभी तक किसानों की सुध लेने नहीं पहुंचे, तो टीएमसी को इसकी जरूरत क्यों पड़ गई। अगर आपको भी इस सवाल का जवाब सूझ नहीं रहा है, तो आपको नेशनल सैंपल सर्वे ऑफिस यानी एनएसएसओ की इस रिपोर्ट को अवश्य पढ़ लेना चाहिए।

पश्चिम बंगाल के किसानों की आय नहीं बढ़ी 

एनएसएसओ की रिपोर्ट के मुताबिक, 2019 में देश के किसानों की मासिक आय 10212 रुपये थी। पंजाब की बात करें तो यहां औसत मासिक आय 26701 और हरियाणा के किसानों की औसत मासिक आय 22841 रुपये रही। अब पश्चिम बंगाल की बात करें तो यहां किसानों की औसत मासिक आय में इजाफा नहीं देखा गया। 2012-13 में जहां देशभर के किसानों की औसत मासिक आय 6426 रुपये थी, वहीं 2019 में पश्चिम बंगाल के किसानों की मासिक औसत आय 6,762 दर्ज की गई। मतलब यह है कि करीब छह साल बाद भी पश्चिम बंगाल के किसानों की मासिक औसत आय में सिर्फ 336 रुपये का इजाफा हुआ। अगर अभी तक आप टीएमसी प्रतिनिधिमंडल के हरियाणा दौरे का कारण नहीं समझ पाए हैं, तो आगे का आंकड़ा पढ़िये, जिससे टीएमसी के दौरे का पूरा गणित समझ में आ जाएगा।

पश्चिम बंगाल के किसान भी कर्जे में

एनएसएसओ की रिपोर्ट बताती है कि देश का हर दूसरा किसान कर्जे में है। 2019 में पंजाब तीसरे स्थान पर था, जहां किसानों पर सबसे ज्यादा कर्ज है। 2023 में संसद में दी जानकारी बताती है कि इस बार पंजाब पहले नंबर पर था, जहां प्रत्येक किसान परिवार पर औसतन 2 लाख 3 हजार कर्जा है। यही नहीं, पश्चिम बंगाल के किसान भी उन राज्यों में शुमार है, जहां कर्जे के चलते आत्महत्या तक के कदम उठा रहे हैं। 

एनसीबी रिपोर्ट बताती है कि 2022 में देशभर में 11,290 किसानों ने आत्महत्या की। महाराष्ट्र, कर्नाटक और आंध्र प्रदेश में किसानों ने ज्यादा आत्महत्याएं की, वहीं पश्चिम बंगाल भी उन राज्यों में शुमार है, जहां कर्जे के चलते किसानों ने अपनी जान दे दी। पंजाब-हरियाणा की बात करें तो यह दर काफी कम है, लेकिन टीएमसी अपने राज्य के किसानों की बजाए पंजाब-हरियाणा के किसानों के प्रति अधिक चिंतित है। ममता बनर्जी ने पंजाब-हरियाणा के किसानों की मांग को संसद में उठाने का आश्वासन दिया है। इसके पीछे की असली वजह क्या है, इसका अंदाजा अब आप स्वयं लगा सकते हैं। 

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