Haryana: राज्यसभा सांसद दीपेंद्र सिंह हुड्डा ने सरकार को घेरते हुए कहा कि किसानों को एमएसपी देने वाले बीजेपी के वादे की पोल एकबार फिर खुल गई। क्योंकि प्रदेश की मंडियों में आज किसानों की सरसों एमएसपी से 900-1000 रुपए कम रेट पर बिक रही है। सरकारी खरीद नहीं होने के चलते किसान प्राइवेट एजेंसियों के हाथों लुट रहे हैं। कांग्रेस और किसानों द्वारा बार-बार मांग उठाए जाने के बावजूद सरकार ने अब तक सरसों की खरीद शुरू नहीं की। इक्का-दुक्का जगह पर जहां सरकारी एजेंसी पहुंच रही हैं, वहां भी नमी का बहाना बनाकर खरीद नहीं की जा रही। मजबूरी में किसानों को प्राइवेट हाथों में अपनी फसल बेचनी पड़ रही है।
सरसों की खरीद सुचारू रूप से करे सरकार
दीपेंद्र हुड्डा ने सरकार से जल्द सरसों की सुचारू खरीद शुरू करने व गेहूं की आवक के लिए भी पहले से तमाम तैयारियों को पूरा करने की मांग उठाई। ताकि सरसों के किसानों की तरह गेहूं उत्पादकों को घाटा ना उठाना पड़े। दीपेंद्र हुड्डा ने व्यापारियों की मांगों का समर्थन करते हुए कहा कि आढ़तियों को कांग्रेस कार्यकाल की तरह पूरी आढ़त व मजदूरों को पूरी मजदूरी मिलनी चाहिए। आढ़ती, मजदूरों और किसानों की पेमेंट में किसी तरह की देरी नहीं होनी चाहिए। देरी होने पर उन्हें ब्याज समेत पूरा भुगतान करना चाहिए।
हर वर्ष देरी से खरीद शुरू कर रही भाजपा सरकार
सांसद दीपेंद्र ने कहा कि 10-15 दिन से मंडियों में सरसों की आवक हो रही है। हर सीज़न में फसल की आवक का सही समय पता होते हुए भी सरकार देरी से खरीद शुरू करने का ऐलान करती है। लेकिन किसानों के साथ सबसे बड़ा धोखा तब हुआ, जब अपने ऐलान के मुताबिक भी सरकार ने खरीद नहीं की। ऊपर से एक बार फिर किसानों को मेरी फसल मेरा ब्यौरा पोर्टल के जंजाल में उलझाने का पूरा मकड़जाल फैला दिया । फिर एक बार सरकार ने पोर्टल के हिसाब से खरीद शुरू करने का ऐलान किया। जबकि पार्टल की गड़बड़ियां जगजाहिर हैं।
प्रदेश में 9.25 लाख किसानों ने पोर्टल पर पंजीकरण करवाया
दीपेंद्र हुड्डा ने कहा कि एक रिपोर्ट के मुताबिक प्रदेश के 9.25 लाख किसानों ने 61.45 लाख एकड़ का पंजीकरण पोर्टल पर करवाया था। लेकिन इसमें से 10.40 लाख एकड़ भूमि का रिकॉर्ड मिसमैच पाया गया। सरकार का कहना है कि जिसका रिकॉर्ड मैच नहीं होगा, उसकी खरीद नहीं होगी। यानी सरकार के गड़बड़झाले का खामियाजा किसानों को भुगतना पड़ेगा। कांग्रेस कार्यकाल के दौरान किसानों को हमेशा एमएसपी या ऊंचे रेट मिलते थे। यह इसलिए संभव हो पाता था क्योंकि सरकार फसलों के मंडी में आते ही फौरन खरीद शुरू कर देती थी। इसके चलते मार्किट में फसलों के रेट ऊपर हो जाते थे। लेकिन मौजूदा सरकार जानबूझकर शुरूआत में सरकारी खरीद नहीं करवाती ताकि मार्किट में फसल के रेट गिर जाएं।