Haryana politics News, Mohan Bhardawj। भाजपा विशेषकर नरेंद्र मोदी को केंद्र की सत्ता से बाहर करने के लिए 2023 के अंत में हुए पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों से पहले विपक्षी दलों ने आई एन डी आई ए गठबंधन बनाया था। राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा के बाद उत्साहित दिख रही कांग्रेस पांच राज्यों में मिली हार के बाद बैकफुट पर आई तथा गठबंधन को मजबूती देने की पहल की। गठबंधन में अभी भी सीट शेयरिंग चर्चा हुई और राहुल गांधी एक बार फिर न्याय यात्रा पर निकल पड़े। जिससे गठबंधन के बीच अभी भी सीट शेयरिंग पर पेंच फंसा हुआ है। आप के साथ जाने पर गठबंधन के अस्तित्व में आने से पहले ही तीखी प्रतिक्रिया दे चुके हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा आसानी से आप के साथ सीट शेयर करने के लिए तैयार नहीं हो सकते। ऐसे में यदि पार्टी आलाकमान ने स्थानीय नेताओं विशेषकर भूपेंद्र हुड्डा की अनदेखी की तो पार्टी भारी नुकसान झेलना पड़ सकता है। इतना ही नहीं विधानसभा चुनावों से पहले पंजाब में अमरिंद्र सिंह व सिधु की लड़ाई में अमरिंद्र को नजरअंदाज करने से हरियाणा में पंजाब की कहानी भी दोहराई जाए तो अतिश्योक्ति नहीं होगी।
कांग्रेस के पास नहीं हुड्डा का विकल्प
हरियाणा से भले ही रणदीप सिंह सुरजेवाला, कुमारी सैलजा पार्टी आलाकमान से नजदीकी के चलते राष्ट्रीय संगठन में अहम जिम्मेदारी निभा रहे हो, परंतु फिलहाल हरियाणा में कांग्रेस के पास भूपेंद्र सिंह हुड्डा का कोई विकल्प नहीं है। कांग्रेस के न केवल 80 फीसदी से अधिक विधायक भूपेंद्र सिंह हुड्डा के साथ है, बल्कि भूपेंद्र सिंह हुड्डा ही कांग्रेस का सबसे बड़ा चेहरा बने हुए हैं। यहीं कारण है कि हुड्डा से विवाद के चलते अशोक तंवर को न केवल अध्यक्ष का पद गंवाना पड़ा था, बल्कि कांग्रेस भी छोड़नी पड़ी थी। कांग्रेस की प्रदेशाध्यक्ष रहते हुए कुमारी सैलजा भी कभी सहज स्थिति में नहीं दिखी तथा लंबे समय तक पद पर रहते हुए संगठन तक नहीं बना पाई। करीब 10 साल से प्रदेश की सत्ता से बाहर रहते हुए एसआरके कांग्रेस आज भी हुड्डा के सामने बौनी ही नजर आती है।
कंडेला से दिल्ली यात्रा से बदली थी किस्मत
बिजली बिल माफी को लेकर किसानों पर हुई फायरिंग को देश में कंडेला कांड के नाम से जाना जाता है। 2002 की इस घटना में पुलिस की तरफ से की गई फायरिंग में आठ लोगों की जान चली गई थी तथा कई घायल हुए थे। जिसके बाद तत्कालीन मुख्यमंत्री ओमप्रकाश चौटाला का न केवल कंडेला में प्रवेश निषेध हो गया था, बल्कि जींद कैथल मार्ग भी छोड़ दिया था। संघर्ष के बाद कंडेला से दिल्ली तक पैदल यात्रा कर भूपेंद्र सिंह हुड्डा प्रदेश की सियासत में खुद को स्थापित करने में सफल रहे। भजनलाल के चेहरे पर कांग्रेस 2005 का विधानसभा चुनाव जीती, परंतु हुड्डा प्रदेश की राजनीति के पीएचडी कहे जाने वाले भजनलाल को पछाड़कर प्रदेश मुख्यमंत्री के पद पर काबिज होने में सफल रहे। 2009 में बहुमत नहीं मिला तो हुड्डा जोड़तोड़ कर फिर से मुख्यमंत्री बन गए। सत्ता से बेदखल हुए भले ही 10 साल होने जा रहे हों, परंतु 10 साल सत्ता में रहते हुए पार्टी संगठन पर बनाई अपनी पकड़ को आज भी कायम रखे हुए हैं।