नरेन्द्र वत्स, रेवाड़ी: प्रदेश में सरकार गठन का रास्ता दक्षिणी हरियाणा से होकर गुजरता है। जब भी इस क्षेत्र के मतदाताओं ने किसी पार्टी का खुलकर साथ दिया, वही पार्टी प्रदेश की सत्ता पर काबिज होती रही। लोकसभा चुनावों में कांग्रेस ने भले की प्रदेश की पांच लोकसभा सीटों पर जीत दर्ज की हो, लेकिन इन चुनावों में पार्टी को एक ही सीट पर महज दो वोटों से जीत हासिल हुई है। लोकसभा चुनावों से पहले भूपेंद्र सिंह हुड्डा और उनके बेटे ने अहीरवाल क्षेत्र में भाजपा के गढ़ को तोड़ने में पूरी ताकत लगा दी थी। अब विधानसभा चुनावों से पहले दीपेंद्र ने इस क्षेत्र में सक्रियता बढ़ा दी है।
2014 में भाजपा ने जीती थी 10 सीट
2014 के विधानसभा चुनावों में भाजपा मोदी लहर में दक्षिणी हरियाणा की सभी दस सीटों पर काबिज होने में कामयाब रही थी। वर्ष 2019 के विधानसभा चुनावों में पार्टी की आपसी गुटबाजी के चलते बादशाहपुर और रेवाड़ी सीट पार्टी के हाथ से निकल गई। प्रदेश में सरकार बनाने की स्थिति में रहने वाले प्रमुख दलों की नजरें हमेशा दक्षिणी हरियाणा की अहीर बाहुल्य 10 सीटों पर रहती है। वर्ष 2000 के विधानसभा चुनावों में इस क्षेत्र में ओपी चौटाला को लोगों का खुलकर साथ मिला था। इनेलो को दस में से 6 विधायक मिले थे, जिनके दम पर चौटाला ने सरकार बनाई थी। इससे अगले ही चुनाव में कांग्रेस को इस क्षेत्र में अच्छी सफलता मिली, तो कांग्रेस ने तत्कालीन प्रदेशाध्यक्ष चौ. भजनलाल को दरकिनार करते हुए हुड्डा की सीएम पद पर ताजपोशी कर दी थी।
भूपेंद्र हुड्डा ने क्षेत्र के विधायकों को दिए थे अहम पद
भूपेंद्र हुड्डा ने क्षेत्र के अधिकांश कांग्रेसी विधायकों की कमान सीधे तौर पर अपने हाथ में लेते हुए उन्हें पदों के तोहफे देने में कमी नहीं छोड़ी थी। अनीता यादव और राव दान सिंह को सीपीएस बनाया गया था। वर्ष 2005 के विधानसभा चुनावों से पहले अहीरवाल की राजनीति में राव इंद्रजीत सिंह और कैप्टन अजय सिंह यादव के बीच वर्चस्व की जंग खूब चली थी। राव दानसिंह, राव नरेंद्र सिंह, अनीता यादव व राव धर्मपाल उस समय कैप्टन दरबार में हाजिरी लगाते नजर आते थे। इन चुनावों के बाद अहीरवाल की राजनीति में बड़ा उलटफेर हुआ। कैप्टन अजय भजनलाल का खेमा छोड़कर अहीरवाल के विधायकों के साथ हुड्डा खेमे में शामिल हो गए थे।
अहीरवाल पर जोर लगाने का मिला इनाम
वर्ष 2019 के लोकसभा चुनावों में कोसली हलके में मिली बड़ी हार ने दीपेंद्र हुड्डा की संभावित जीत को हार में बदलने का काम किया था। दीपेंद्र ने इसके बाद से ही कोसली और अहीरवाल क्षेत्र पर फोकस करना शुरू कर दिया था। लोकसभा चुनावों से पहले उन्होंने अनिल पाल्हावास और जगदीश यादव को कांग्रेस ज्वाइन कराई थी। उसका इनाम उन्हें कोसली हलके में एक दशक बाद 2 मतों की जीत से मिला। इस सीट पर जीत हासिल करना ही दीपेंद्र के लिए बहुत बड़ी चुनौती माना जा रहा था।
भाजपा के लिए गुटबाजी सबसे बड़ी बाधा
कांग्रेस ने अहीरवाल में भाजपा के गढ़ को तोड़ने के लिए पूरी ताकत लगा दी है, वहीं भाजपा के सामने आंतरिक गुटबाजी इस बार उसे बड़ा नुकसान पहुंचा सकती है। पार्टी के लिए सबसे बड़ी चुनौती इस क्षेत्र के सबसे ताकतवर नेता माने जाने वाले राव इंद्रजीत सिंह को खुश करने की है। राव लोकसभा चुनावों के बाद से ही पार्टी से नाराज नजर आ रहे हैं। उनकी नाराजगी भाजपा के लिए कई सीटों पर नुकसान कारण बन सकती है। नाराजगी को दूर करने के लिए पार्टी को सार्थक प्रयास करने होंगे।