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हरियाणा के रेवाड़ी में लीज की बसों ने यात्रियों की जान को खतरे में डाला हुआ है। लीज की एक बस चंडीगढ़ के लिए रवाना हुई, लेकिन रास्ते में उसका एक्सल निकल गया, जिससे यात्रियों की जान पर बन गई। चालक ने किसी तरह बस को रोककर यात्रियों को सुरक्षित बाहर निकाला।

रेवाड़ी: सुरक्षित सफर की उम्मीद के साथ रोडवेज (Roadways) बसों में यात्रा करने वाले यात्रियों की जान विभाग में लीज के आधार पर चल रही बसों ने खतरे में डाली हुई है। अफसर की मेहरबानी से ठेकेदार अनफिट बसों को भी खुलकर लंबे रूटों पर दौड़ा रहे है, परंतु जीएम की ओर से यात्रियों की सुरक्षा को लेकर कोई कदम नहीं उठाए जा रहे। दो दिन पूर्व खेड़ा बॉर्डर के पास लीज की एक बस आग की भेंट चढ़ गई, तो बुधवार को चंडीगढ़ जा रही लीज की एक बस का एक्सल निकल गया। चालक ने किसी तरह बस को नियंत्रित करते हुए यात्रियों की जान बचाई। इन बसों का रास्ते में ब्रेक डाउन होना आम बात हो चुकी है, परंतु अधिकारी कोई एक्शन नहीं ले रहे।

जयसिंहपुर खेड़ा के पास खराब हुई बस

बीते सोमवार को लीज की एक बस जयपुर के लिए रवाना होने के कुछ देर बाद ही जयसिंहपुर खेड़ा के पास खराब हो गई। बस से धुआं उठता हुआ दिखाई दिया तो बस चालक और परिचालक ने यात्रियों को बस से उतार दिया। चंद मिनटों के बाद ही बस में आग लग गई। अगर समय रहते बस से यात्रियों को नहीं उतारा जाता तो इससे बड़ा हादसा हो सकता था। इन बसों से आए दिन हादसे हो रहे हैं, जिससे यात्रियों की जान जोखिम में पड़ी रहती है। सब कुछ जानते हुए भी जीएम की ओर से बदहाल बसों को लंबे रूटों से हटाने या इनकी मेंटिनेंस कराने की दिशा में कदम नहीं उठाए जा रहे।

दूसरे डिपो के चालक-परिचालक परेशान

अनुबंध के आधार पर चलने वाली बसें समय पर मेंटिनेंस के अभाव में बस स्टैंड से निकलने के बाद आए रास्ते में खराब हो रही हैं। इसके बाद इन बसों के यात्रियों को दूसरे डिपो या दूसरे राज्यों की बसों में बैठा दिया जाता है। इन बसों के कारण रेवाड़ी डिपो पर बदनामी का ऐसा दाग लग चुका है कि आए दिन की घटना होने के बाद दूसरे डिपो व राज्यों की बसों के चालक-परिचालक अपनी बसों में यात्रियों को बैठाने से मना कर देते हैं।

ठेकेदार की सेहत पर नहीं पड़ रहा फर्क

ठेके की शर्तों के अनुसार निर्धारित किलोमीटर पूरे होने के बाद अगर बस खराब हो जाती है, तो ठेकेदार को बस से मिलने वाला पैसा मिल जाता है। यात्री दूसरे बसों में धक्के खाने को मजबूर हो जाते हैं। दूसरी बसों में पहले ही यात्री होने के कारण लीज की बसों से दूसरी बसों में शिफ्ट किए जाने वाले यात्री खड़े होकर लंबा सफर तय करने को मजबूर हो जाते हैं। अगर बस हादसे का शिकार होती है, तो ठेकेदार को इंश्योरेंस कंपनी से क्लेम लेने में कोई परेशानी नहीं आती।

बसों के टायर तक नहीं चलने के लायक

लीज की अधिकांश बसों के टायर तक बुरी तरह घिसे हुए हैं। इन टायरों को समय पर बदलवाया नहीं जाता। एक पखवाड़ा पूर्व खाटूश्याम से आ रही बस का एक टायर रास्ते में ही फट गया। इससे भी हादसा होने से टल गया। सीकर के पास टायर बदलवाकर यात्रियों को गंतव्य तक पहुंचाया गया। सूत्रों के अनुसार इन बसों में इंडिकेटर से लेकर हेडलाइट तक सही हालात में नहीं हैं। इसके बावजूद अफसरों की मेहरबानी से यह बसें लंबे रूटों पर सरपट दौड़ रही हैं।

झज्जर से पुरानी बसों को किया शिफ्ट

रोडवेज सूत्रों के अनुसार झज्जर (Jhajjar) डिपो में चल रही ठेकेदार की 10 बसों को कुछ समय पहले सिर्फ इसलिए रेवाड़ी डिपो भेज दिया गया कि यह बसें खटारा हो चुकी थी। डिपो में इस समय लीज की 35 बसों का संचालन हो रहा है। कुछ बसों को छोड़कर बाकी की समय पर मेंटिनेंस या सर्विस तक नहीं होती। खराब टायरों तक को नहीं बदला जाता। सेटिंग का खेल होने के कारण इन बसों को छोटे रूटों पर चलाने की बजाय लंबे रूटों पर चलाया जा रहा है, ताकि ठेकेदार को इसका पूरा फायदा मिल सके।

जांच के नाम पर की जा रही लीपापोती

जीएम रोडवेज देवदत्त ने बताया कि आए दिन लीज की बसों के ब्रेकडाउन होने की जांच कराई जा रही है। जब भी कोई बस हादसे का शिकार होती है या फिर शिकार होते बच जाती है, तो इसी तरह की बयानबाजी की जाती है। जांच व कार्रवाई के नाम पर सिर्फ लीपापोती है। जेब गर्म करने वालों के लिए यात्रियों की जान बहुत सस्ती साबित हो रही है। यूनियन के प्रधान राजपाल यादव व यशपाल यादव ने बताया कि 70 फीसदी बसों की मेंटिनेंस समय पर नहीं होती। कई बार मांग किए जाने के बावजूद अधिकारी कोई कदम नहीं उठा रहे हैं।

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