सोनीपत: एनएच-334पी पर भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (एनएचएआई) ने देश का दूसरा मानव रहित टोल प्लाजा शुरू कर दिया है। सेंसर के जरिये टोल प्लाजा पर वाहनों का टोल कटेगा। टोल कलेक्शन की पूरी प्रक्रिया स्वचलित रहेगी। गांव झिंझौली के पास बनाए गए इस टोल प्लाजा (Toll Plaza) पर एक-एक अस्थायी कैश लेन भी जारी रहेगी। बिना बूथ के टोल प्लाजा पर सोनीपत से लेकर बवाना तक 29.6 किमी के सफर के लिए कार चालक को 65 रुपए चुकाने पड़ेंगे।

सेंसर के जरिए कटेगा टोल

एनएच-334पी पर टोल कलेक्शन की पूरी प्रक्रिया स्वचालित है और सेंसर के जरिए फास्टैग से स्वत: टोल शुल्क कट जाएगा। अभी लोगों को जागरूक करने और सभी वाहनों पर फास्टैग सुनिश्चित करने के लिए एक-एक अस्थायी कैश लेन भी होगी। एनएचएआई की तरफ से गांव बड़वासनी से लेकर दिल्ली (Delhi) के बवाना औद्योगिक क्षेत्र तक 694 करोड़ रुपए से 29.6 किलोमीटर लंबे राष्ट्रीय राजमार्ग-334पी का निर्माण किया गया है। चार मार्गीय राष्ट्रीय राजमार्ग को गांव बड़वासनी के पास एनएच-352ए से लिंक किया है और दिल्ली के अंदर द्वारका एक्सप्रेस वे से जोड़ा जा रहा है।

यहां के लोगों को होगा फायदा

इस मार्ग के जुड़ने के बाद सोनीपत, जींद के अलावा चंडीगढ़, पंजाब, हिमाचल प्रदेश और जम्मू-कश्मीर से लोगों को फायदा होगा। पश्चिमी-दक्षिणी दिल्ली, आईजीआई एयरपोर्ट और गुरुग्राम (Gurugram) के लोग अर्बन एक्सटेंशन रोड-2 के जरिए एनएच-44 तक भी आसानी से पहुंच पाएंगे। इससे आसपास के इलाकों में आर्थिक विकास को बढ़ावा मिलेगा। भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण के प्रोजेक्ट निदेशक जगभूषण शर्मा ने बताया कि राष्ट्रीय राजमार्ग-334पी पर देश का दूसरा मानव रहित टोल प्लाजा चालू कर दिया गया है। सेंसर के जरिए वाहनों का टोल काटा जा रहा है। निर्धारित दरों के आधार पर ही वाहन चालकों से टोल वसूल किया जाएगा।

टोल पर शुरू किया एडवांस टोल मैनेजमेंट सिस्टम

टोल प्लाजा को एडवांस टोल मैनेजमेंट सिस्टम और रेडियो फ्रिक्वेंसी आइडेंटीफिकेशन (आरएफआईडी) सिस्टम से जोड़ा गया है। जैसे ही वाहन सेंसर की जद में आएगा तो टोल राशि कट जाएगी और अत्याधुनिक सेंसर युक्त बूम बैरियर स्वत: खुल जाएंगे। इस टोल प्लाजा पर स्वचालित नंबर प्लेट पहचान प्रणाली के पायलट प्रोजेक्ट पर भी काम किया जा रहा है। भविष्य में जीएनएसएस (GNSS) आधारित टोल शुरू होगा तो फास्टैग और बूम बैरियर की भी जरूरत नहीं पड़ेगी। इस तकनीक के जरिए हाईवे पर चढ़ते ही प्रत्येक गाड़ी की एक यूनिक आईडी बनेगी।