सोनीपत: जाट लैंड का अहम हिस्सा माने जाने वाले सोनीपत जिले में मंगलवार को जारी हुए चुनावों के नतीजों ने हुड्डा का तिलिस्म तोड़ दिया। हर बार कांग्रेस का मजबूती से साथ देने वाले सोनीपत जिले ने इस बार कांग्रेस को नकार दिया। भूपेंद्र सिंह हुड्डा का गढ़ कहे जाने वाले सोनीपत जिले की छह विधानसभा सीटों में से केवल एक सीट ही कांग्रेस के पास बची है। जबकि 2019 में जिले की 6 में से 4 सीटों पर कांग्रेस प्रत्याशियों ने जीत दर्ज की थी। कांग्रेस के पक्ष में कथित तौर पर माहौल भी बताया जा रहा था, इसके बावजूद चार सीटों से सिमट कर एक सीट बचना, कांग्रेस के लिये अच्छे संकेत नहीं है।

भाजपा ने लगाई हुड्डा के गढ़ में सेंध

सोनीपत की जिन 3 सीटों को कांग्रेस ने गंवाया है, उनमें गोहाना और खरखोदा ऐसे विधानसभा हैं, जहां आज तक भाजपा ने कभी खाता नहीं खोला था। इतना ही नहीं इन दोनों सीटों से कई प्लान से कांग्रेसी विधायक ही बनते आ रहे थे। कमाल की बात ये है कि गोहाना विधानसभा से तो 2005 से ही कांग्रेस लगातार जीत दर्ज कर रही है और हर बार जगबीर मलिक विधायक बनते आ रहे हैं। वहीं खरखौदा विधानसभा से 2009 से ही कांग्रेस लगातार जीत दर्ज कर रही है और हर बार जयवीर वाल्मीकि विधायक बनते आ रहे हैं। बता दें कि सोनीपत जिले में छह विधानसभाएं आती हैं, इसमें सोनीपत, गन्नौर, गोहाना, खरखौदा, बरोदा और राई शामिल हैं।

क्यों माना जाता है गढ़

हरियाणा के गठन से भी पहले ओल्ड रोहतक में रोहतक के अलावा आज के सोनीपत और झज्जर जिले भी शामिल थे। इस पूरे इलाके को जाट मतदाताओं की अधिक संख्या के चलते जाट लैंड भी कहा जाता था। प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा मूल रूप से रोहतक के हैं और उनकी पत्नी आशा हुड्डा मूल रूप से खरखौदा की हैं। ऐसे में भूपेंद्र सिंह हुड्डा को सोनीपत में हमेशा से ही मान सम्मान मिलता आया है। इसके अलावा इनेलो के टूटने के बाद कोर वोटर कांग्रेस से जुड़ा था। इन सब चीजों को ध्यान में रखते हुए सोनीपत को भूपेंद्र सिंह हुड्डा का गढ़ माना जाता है।