यमुनानगर: कांच ही बांस की बहंगियां व आंख ही फुटेला बटोहिया ई भार छठ मैया जाए जैसे छठ मैया के पारंपरिक गीतों की गूंज से वीरवार शाम को यमुना के पावन तट पर दो दिवसीय मेले व छठ महापर्व का शुभारंभ हुआ। हजारों श्रद्धालुओं ने यमुना में स्नान कर डूबते सूर्य को अर्घ्य दिया और वहां बनी छठ माता की वेदियों पर पूजा सामग्री चढ़ाकर पूजा अर्चना की। इससे पहले श्रद्धालु अपने घरों से बांस की टोकरी में पूजा का सामान सिर पर रख कर पारंपरिक गीत गाते हुए यमुना तट पर पहुंचे।

यमुना के तट पर जुटे हजारों श्रद्धालु

छठ मैया महापर्व उत्सव पर हर वर्ष शहर के नजदीक स्थित यमुना के बाढ़ी माजरा व हमीदा हैड के नजदीक पावन तट पर हजारों श्रद्धालु जुटते हैं। जिले में बिहार और उत्तर प्रदेश समेत अन्य प्रदेशों के हजारों की संख्या में लोग निवास करते हैं। जो छठ पर्व पर प्रतिवर्ष यमुना के तट पर एकत्र होकर पूजा अर्चना करते हैं। रविवार शाम को छठ पर्व के उत्सव का जैसे ही शुभारंभ हुआ तो श्रद्धालुओं की भीड़ ने यमुना में पवित्र स्नान किया और डूबते सूर्य को अर्घ्य दिया। इसके बाद यमुना के तट पर बनी छठ मैया की वेदियों पर पूजा अर्चना की।

छठ मैया महापर्व पर 36 घंटे का निर्जल उपवास

पूर्वी उत्तरांचल के श्रद्धालुओं ने बताया कि कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष में छठी तिथि पर महिलाएं 36 घंटे का निर्जल व्रत रखती हैं। व्रत के दौरान दो दिन तक छठ मनाई जाती है। पहले दिन छोटी और दूसरे दिन बड़ी छठ मनाई जाती है। छोटी छठ पर महिलाएं अपने परिवार के साथ बांस की टोकरी में सभी प्रकार के फल-फूल लेकर सज-धज कर यमुना के तीर्थ नगर पुल के पास बनी छठ माता की वेदियों पर पहुंचती हैं और दिए जलाकर पूजा अर्जना करती हैं। छठ पर्व के शुभारंभ पर महिलाओं ने वेदियों के पास चावल चढ़ाकर छठ माता का पारंपरिक गीत, कांच ही बांस की बहंगियां गाकर वातावरण को छठ मय बना दिया।

कच्चे बांस की टोकरी में पूजा सामग्री लाने का महत्व

श्रद्धालुओं ने बताया कि छठ के पारंपरिक गीत का अर्थ है कि कच्चे बांस की बनी टोकरी जिसे महिलाओं ने अपने सिर पर रखा है, जो फलों व सब्जियों के बोझ से लचक रही है। उसे देखकर एक राही (यात्री) पूछता है कि यह कहां लेकर जा रही हो। इस पर महिलाएं कहती हैं, तेरी आंख फूट गई हैं, देखता नहीं मैं इस टोकरी में फल-फूल लेकर छठ माता का पूजन करने जा रही हूं। छठ माता का यह देवी गीत है, जिसे घर से सरोवर तक महिलाएं गाती जाती हैं। इस व्रत के मूलत: देवता सूर्य भगवान हैं, जिन्हें दिन ढलने के बाद स्त्रियां घुटनों तक पानी में खड़े होकर उनसे पति व पुत्र की लंबी आयु की कामना करती हैं।