Abua Awas Yojana: झारखंड में 2024 के विधानसभा चुनाव के बीच मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की पार्टी झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) एक बार फिर आदिवासी अधिकारों और कल्याण को अपने मुख्य एजेंडे में रख रही है। लेकिन सवाल उठता है, क्या JMM ने वाकई अपने कार्यकाल में आदिवासी समुदायों के जीवन में कोई बड़ा बदलाव लाया? या यह केवल वादों तक ही सीमित रहा?
'अबुआ आवास योजना' पर BJP का हमला
झारखंड सरकार की 'अबुआ आवास योजना' को लेकर बीजेपी ने गंभीर आरोप लगाए हैं। पार्टी के सह-प्रभारी हिमंता बिस्वा सरमा ने कहा, "यह योजना आदिवासी घरों के बजाय बाबूओं के घर बनाने की योजना बन गई है। बिना रिश्वत दिए कोई घर नहीं मिल सकता।"
क्या है 'अबुआ आवास योजना'?
15 अगस्त 2023 को शुरू की गई अबुआ आवास योजना का उद्देश्य झारखंड के 25 लाख से अधिक लोगों को पक्का मकान उपलब्ध कराना था। सरकार ने वादा किया कि प्रत्येक लाभार्थी को ₹2 लाख में तीन कमरों वाला मकान मिलेगा। यह योजना आदिवासी समुदायों के लिए किफायती और सुरक्षित आवास सुनिश्चित करने के लिए बनाई गई थी।
लेकिन ज़मीनी हकीकत कुछ और ही बयान करती है। रिपोर्ट्स के अनुसार, लाभार्थियों को योजना का लाभ उठाने के लिए रिश्वत देनी पड़ रही है। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, हजारों आदिवासी परिवारों को मकान दिए गए हैं। लेकिन योजना की पारदर्शिता पर सवाल खड़े हो रहे हैं क्योंकि आधिकारिक वेबसाइट पर बनाए गए मकानों की सटीक जानकारी उपलब्ध नहीं है।
भ्रष्टाचार और कुप्रबंधन के आरोप
इस योजना में भ्रष्टाचार सबसे बड़ी बाधा बनकर उभरा है। आदिवासी परिवारों ने आरोप लगाया कि उन्हें मकान की राशि जारी कराने या निर्माण कार्य तेजी से कराने के लिए अधिकारियों, ठेकेदारों, और ग्राम प्रधानों को रिश्वत देनी पड़ती है। लंबी प्रशासनिक प्रक्रियाओं और कागजी कार्रवाई में फंसे लाभार्थी अपनी समस्याओं को लेकर असंतोष व्यक्त कर रहे हैं।
प्रशासनिक लापरवाही और अधिकारों का उल्लंघन
योजना में पारदर्शिता की कमी और प्रशासनिक लापरवाही की शिकायतें भी सामने आई हैं। लाभार्थियों को स्कीम की जानकारी नहीं मिलती, जिससे उनके अधिकारों का हनन हो रहा है।
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क्या आदिवासी समुदाय सरकार से खुश है?
हेमंत सोरेन सरकार ने आदिवासी कल्याण के लिए कई योजनाओं की घोषणा की। लेकिन 'अबुआ आवास योजना' समेत इन योजनाओं का लाभ वास्तव में बहुत कम लोगों तक पहुंचा। आदिवासी समुदाय का एक बड़ा हिस्सा आज भी अपने हक के लिए संघर्ष कर रहा है।
चुनावों पर पड़ेगा असर
आदिवासी समुदाय के असंतोष और वादों के अधूरे रहने से आगामी विधानसभा चुनावों में JMM को चुनौती का सामना करना पड़ सकता है। क्या आदिवासी समुदाय JMM पर भरोसा जताएगा या इसे एक और विफल राजनीतिक विकल्प मानकर खारिज करेगा?